विज्ञापन
विज्ञापन
Durva ashtami 2022 : जाने इस दिन क्यों मनाई जाती है दूर्वा अष्टमी
दूर्वा अष्टमी का अनुष्ठान भाद्रपद माह की अष्टमी के दिन पर किया जाता है. यह एक विशेष धार्मिक अनुष्ठान है जो लगभग सभी धर्म कर्म के कार्यों में उपयोग की जाने वाली एक आवश्यक वस्तु, दूर्वा अर्थात घास की पूजा करने के लिए मनाया जाता है. यह हिंदू पंचांग के अनुसार 'भाद्रपद' के चंद्र महीने में 'शुक्ल पक्ष' के दौरान अष्टमी तिथि को मनाया जाता है. दूर्वा अष्टमी का पर्व 03 सितंबर, शनिवार को मनाया जाएगा.
हिंदू मान्यताओं के अनुसार, दूर्वा अष्टमी को पूरी श्रद्धा के साथ रखने से व्यक्ति के जीवन में समृद्धि और शांति आती है. यह शुभ दिवस पश्चिम बंगाल और भारत के अन्य पूर्वी क्षेत्रों में अत्यधिक उल्लास और उत्साह के साथ मनाया जाता है. बंगाल में, इसे लोकप्रिय रूप से 'दुराष्टमी व्रत' के रूप में जाना जाता है. इस दिन देवी दुर्गा जी का पूजन भी किया जाता है.
जन्मकुंडली ज्योतिषीय क्षेत्रों में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है
दूर्वा अष्टमी के पूजा नियम
दूर्वा अष्टमी के दौरान अनुष्ठान मुख्य रूप से महिलाओं द्वारा मनाया जाता है. वे सूर्योदय से पहले उठते हैं, जल्दी स्नान करते हैं और पूजा की रस्मों को देखने से पहले नए कपड़े पहनते हैं.इस दिन, महिलाएं दूर्वा घास को विशेष अनुष्ठान और पूजा करती हैं. शुभ दूर्वा घास की पूजा फूल, फल, अक्षत, धूप, दही और अन्य आवश्यक पूजा वस्तुओं से की जाती है.
इस दिन महिलाएं व्रत भी रखती हैं. दूर्वा अष्टमी व्रत के दिन पर भगवान शिव और भगवान गणेश की भी पूजा करते हैं. भगवान को प्रसन्न करने के लिए फलों और फूलों के साथ-साथ दूर्वा घास भी अर्पित की जाती है. महिलाएं अपने बच्चों की लंबी उम्र और समृद्धि के लिए पूरे समर्पण के साथ पूजा करती हैं. यह उनके वैवाहिक जीवन में शांति और प्रेम वृद्धि करने में भी मदद करता है. दूर्वा अष्टमी पर, व्रत करने वाले एवं भक्त को ब्राह्मणों को भोजन और वस्त्र देना चाहिए. ऐसा करने से उन्हें अनंत धन और सौभाग्य की प्राप्ति होगी. इस के अतिरिक्त इस दिन प्रकृत्ति का पूजन करने से जीवन में किसी प्रकार की कमी नहीं रहती है.
मात्र रु99/- में पाएं देश के जानें - माने ज्योतिषियों से अपनी समस्त परेशानियों का हल
दूर्वा अष्टमी का महत्व
हिंदू धर्म में दूर्वा घास का विशेष धार्मिक महत्व है. यह समृद्धि का प्रतीक है और इसकी पवित्रता और समर्पण के साथ पूजा की जाती है. किंवदंतियों के अनुसार यह माना जाता है कि समुद्र मंथन के बाद जब असुर और देवता 'अमृत' ले जा रहे थे, ऐसा माना जाता है कि अमृत की कुछ बूंदें दूर्वा घास पर गिरीं और तब से यह शुभ और अमर हो गई. जो व्यक्ति दूर्वा अष्टमी को पूरे समर्पण के साथ दूर्वा घास की पूजा करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.
ये भी पढ़ें
- Vastu Tips : वास्तु के अनुसार घर में इस पौधे को लगाते ही हो जायेंगे मालामाल
- Jyotish Remedies: भगवान शिव को भूलकर भी अर्पित न करें ये चीजें
- Jyotish shastra: राहु का विवाह और संबंधों पर पड़ता है गहरा असर
- Jyotish Remedies: चंद्रमा का असर क्यों बनाता है मेष राशि को बोल्ड
- सिंह राशि के लिए साल 2022 रहेगा सफलता से भरपूर, पढ़े क्या होगा ख़ास
- जानिए कैसे बुध का गोचर व्यक्ति के लिए प्रभावी बन सकता है