Durga Saptashati : किसने लिखा था दुर्गा सप्तशती पाठ, जिसे पढ़ने से पूरे हो जाते हैं सारे काम!
नवरात्रि में दुर्गा सप्तशती का पाठ करना पुण्य फलदायक माना गया है और बहुत से लोग इसका पाठ करते हैं. और उनको इसका शुभ फल भी मिलता है तो जानते हैं यह किसने लिखी थी और इसके पाठ का क्या महत्व बताया गया है.
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नवरात्रि में दुर्गासप्तशती के पाठ का खास महत्व बताया गया है.
नवरात्र में लोग अलग अलग तरीके से मां दुर्गा को खुश करने की कोशिश करते हैं. नवरात्र में ही कई लोग इसका पाठ करते है. कहा जाता है कि दुर्गा सप्तशती का पाठ करना फलदायक होता है और कई लोगों के बिगड़े काम बन जाते हैं. दुर्गा सप्तशती पाठ में कई अध्याय होते हैं और नवरात्र के दिनों में इसके पाठ से अन्न, धन, यश, कीर्ति आदि की प्राप्ति होती है. दुर्गासप्तशती के पाठ में 13 अध्याय होते हैं, जिसमें मां दुर्गा द्वारा किए गए राक्षसों के वध आदि के बारे में बताया गया है.
लेकिन, क्या आप जानते हैं कि आखिर दुर्गासप्तशती के पाठ किसने लिखे थे और कब लिखे थे. तो आज हम आपको बताते हैं कि दुर्गासप्तशती पाठ की कहानी, जिसे पढ़ने के बाद बिगड़े काम बन जाते हैं…
क्या है दुर्गासप्तशती?
दुर्गा सप्तशती मार्कण्डेय पुराण का एक अंश है. इसमें इसमें ७०० श्लोक होने के कारण इसे ‘दुर्गा सप्तशती’ भी कहा जाता है. कहा जाता है कि ये मार्कण्डेय ओर ब्रह्मा जी के मध्य देवी की महिमा पर हुई ज्ञान चर्चा है. मार्कण्डेय पुराण के इस अंश को निकालकर दुर्गा सप्तशती अलग ग्रंथ बना दिया गया है. अब इसे वेदव्यास के मार्कण्डेय पुराण से लिया गया है, इसलिए कई वेदव्यास जी को लेखक मानते हैं. दुर्गा सप्तशती के 3 भाग में महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती नाम से 3 चरित्र हैं.
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बता दें कि यह देवीमाहात्म्यम् है, जिनका मतलब है देवी की महानता का बखान. हिन्दुओं का एक धार्मिक ग्रन्थ है जिसमें देवी दुर्गा की महिषासुर नामक राक्षस के ऊपर विजय का वर्णन है. इसमें अलग राक्षसों के वध के बारे में बताया है. अब जानते हैं इसके किस अध्याय में क्या लिखा है…
पहला अध्याय- मधु कैटभ वध
दूसरा अध्याय- महिषासुर सेना का वध
तीसरा अध्याय- महिषासुर का वध
चौथा अध्याय- इंद्र देवता द्वारा देवी की स्तुति
पांचवां अध्याय- अंबिका के रुप की प्रशंसा
छठा अध्याय- धूम्रलोचन वध
सातवां अध्याय- चंड और मुंड का वध
आठवां अध्याय- रक्तबीज वध
नवां अध्याय- निशुम्भ वध
दसवां अध्याय- शुम्भ वध
ग्यारहवां अध्याय- देवताओं द्वारा देवी की स्तुति
बारहवां अध्याय- देवी चरित्रों के पाठ का माहात्म्य
तेरहवां अध्याय- सुरथ और वैश्य को देवी का वरदान
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