Dev Purnima : इस दिन शिव द्वारा त्रिपुरा राक्षस का हुआ था अंत
कार्तिक पूर्णिमा को देव दीपावली के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन गंगा स्नान और दीपदान का बहुत महत्व है. यह पर्व इलाहाबाद, अयोध्या, वाराणसी आदि तीर्थ स्थानों समेत संपूर्ण भारत वर्ष में श्रद्धा एवं उल्लास के साथ मनाया जाता है.
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यह समय पूजा पाठ एवं शुभ कार्यों के लिए अत्यंत उत्तम होता है. मान्यताओं के अन्सार इस दिन भगवान शिव द्वारा त्रिपुर राक्षस का वध किया गया था.
त्रिपुरोत्सव का विशेष समय
कार्तिक पूर्णिमा को देव दीपावली के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन गंगा स्नान और दीपदान का बहुत महत्व है. यह इलाहाबाद, अयोध्या, वाराणसी आदि तीर्थ स्थानों में बड़े पैमाने पर मनाया जाता है.
जागरण तीर्थ और देवी-देवताओं के प्रिय निवास चित्रकूट में स्थित कामदगिरी पर्वत पर रोशनी का यह त्योहार बहुत ही उत्साह उल्लास के साथ मनाया जाता रहा है. गंगा के घाट पर दीपों की श्रंखला भी जाती है, जो बेहद आकर्षक लगती है. जैसे, दीपों का उत्सव देव प्रबोधिनी या हरिबोधिनी एकादशी से शुरू होता है.
कार्तिक पूर्णिमा कथा
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा के दिन, भगवान शिव ने राक्षस त्रिपुरा का वध किया था. त्रिपुरा नामक राक्षस ने एक लाख वर्ष तक घोर तपस्या की. स्वर्ग के राजा इंद्र सहित सभी देवता भयभीत हो गए. तपस्या भंग करने के लिए अप्सराओं को भेजा गया था. अप्सराओं ने तपस्या को तोड़ने के लिए सभी प्रयास किए, लेकिन त्रिपुरा उनके जाल में नहीं फंसा. उनके आत्म-संयम से प्रसन्न होकर ब्रह्मा प्रकट हुए और उनसे वरदान मांगने को कहा.
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उसे मनुष्य और देवताओं द्वारा न मारे जाने का वरदान मिला था. त्रिपुर के कार्यों द्वारा चारों और हलचल मच गई थी. उसके अत्याचारों से मुक्ति के लिए देवताओं ने योजना बनाई और उसे कैलाश पर्वत पर बैठे भगवान शिव के साथ युद्ध में शामिल कर लिया. दोनों के बीच भयंकर युद्ध छिड़ गया. अंत में शिव ने ब्रह्मा और विष्णु की सहायता से त्रिपुरा का वध किया.
यह समय अत्यंत पवित्र होता है. कार्तिक स्नान आज ही समाप्त होता है.यह मनुष्य के चार पुरुषार्थों- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष में मोक्ष प्राप्त करने का समय माना जाता है. इसलिए यदि इस दिन व्रत किया जाए तो व्यक्ति को हजार अश्वमेध और सौ राजसूय यज्ञों का फल मिल सकता है. यदि कार्तिक पूर्णिमा के दिन कृतिका नक्षत्र हो तो वह महाकार्तिकी माना जाता है, जो बहुत ही पुण्यदायी होता है. भरणी नक्षत्र होने पर भी विशेष फल मिलता है. भरणी नक्षत्र 6 नवंबर की शाम को होगा. रोहिणी नक्षत्र हो तो उसका फल और भी बढ़ जाता है.
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