खास बातें
Sampurna Pujan Vidhi: घर में पूजा करते समय कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी है, जिसके लिए कुछ नियम बताए गए हैं, यदि आप इन बातों को ध्यान में रखकर पूजा करते हैं, तो अवश्य ही भगवान की कृपा आप पर बनी रहेगी।
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Sampurna Pujan Vidhi: हम लोग रोजाना पूजा तो करते हैं, लेकिन पूजा के सही नियमों की जानकारी नहीं होती है। घर में पूजा करते समय कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी है। जैसे, यदि घर में मूर्ति है तो उसकी प्राण प्रतिष्ठा कराएं, इष्ट देव या देवी की पूजा के दौरान पंचदेवों की पूजा करना भी जरूरी है। पूजा के पहले देव का आवाहन जरूरी है। यह भी जानें कि यदि आप पूजा के 5 प्रकारों में से इज्या पूजा कर रहे हैं तो उसके उपचार यानी तरीके भी जानें। इसी के साथ यदि पूजा नियमपूर्वक करेंगे तो पूजा का आपको संपूर्ण लाभ मिलेगा। यहां प्रस्तुत है नित्य और व्रत एवं त्योहार पर की जाने वाली पूजा की सरल एवं संपूर्ण विधि।
संध्योपासना या संध्यावंदन के 5 प्रकार
1. प्रार्थना, 2. ध्यान-साधना, 3. भजन-कीर्तन 4. यज्ञ और 5. पूजा-आरती। हालांकि व्यक्ति की जिस में जैसी श्रद्धा होती वह उसी प्रकार से भगवान की पूजा करता है। तो चलिए जानते हैं पूजा-आरती की संपूर्ण जानकारी।
प्राण-प्रतिष्ठा
1. शालग्राम शिलायास्तु प्रतिष्ठा नैव विद्यते।
अर्थ: शालग्राम की प्राण-प्रतिष्ठा नहीं होती। बाकी की करना जरूरी है।
2. शैलीं दारुमयीं हैमीं धात्वाद्याकार संभवाम्।
प्रतिष्ठां वै प्रकुर्वीत प्रसादे वा गृहे नृप॥
अर्थ: पत्थर, काष्ठ, सोना या अन्य धातुओं की मूर्तियों की प्रतिष्ठा घर या मंदिर में करनी चाहिए।
3. गृहे चलार्चा विज्ञेया प्रसादे स्थिर संज्ञिका।
इत्येत कथिता मार्गा मुनिभिः कुर्मवादिभिः॥
अर्थ: घर में चल प्रतिष्ठा और मंदिर में अचल प्रतिष्ठा करना चाहिए। यह कर्म-ज्ञानी मुनियों का मत है। 'गंगाजी में, शालग्राम शिला में तथा शिवलिंग में सभी देवताओं का पूजन बिना आह्वान-विसर्जन किया जा सकता है।'
4. गृहे लिंगद्वयं नाच्यं गणेशत्रितयं तथा।
शंखद्वयं तथा सूर्यो नार्च्यो शक्तित्रयं तथा॥
द्वे चक्रे द्वारकायास्तु शालग्राम शिलाद्वयम्।
तेषां तु पुजनेनैव उद्वेगं प्राप्नुयाद् गृही॥
अर्थ: घर में 2 शिवलिंग, 3 गणेश, 2 शंख, 2 सूर्य, 3 दुर्गा मूर्ति, 2 गोमती चक्र और 2 शालिग्राम की पूजा करने से गृहस्थ मनुष्य को अशांति होती है।
5. एका मूर्तिर्न सम्पूज्या गृहिणा स्केटमिच्छता।
अनेक मुर्ति संपन्नाः सर्वान् कामानवाप्नुयात॥
अर्थ : कल्याण चाहने वाले गृहस्थ एक मूर्ति की पूजा न करें, किंतु अनेक देवमूर्ति की पूजा से कामना पूरी होती है।
6. पंचदेव पूजा : जिस भी देवता का पूजन किया जा रहा है उससे पूर्व पंचदेवों का पूजन किया जाना जरूरी है।
आदित्यं गणनाथं च देवी रुद्रं च केशवम्।
पंच दैवत्यामि त्युक्तं सर्वकर्मसु पूजयेत॥
अर्थ : सूर्य, गणेश, दुर्गा, शिव, विष्णु- ये पंचदेव कहे गए हैं। इनकी पूजा सभी कार्यों में करना चाहिए।
पूजन के 5 प्रकार
- अभिगमन: देवालय अथवा मंदिर की सफाई करना, निर्माल्य (पूर्व में भगवान को अर्पित की गई वस्तुएं हटाना)। ये सब कर्म 'अभिगमन' के अंतर्गत आते हैं।
- उपादान: गंध, पुष्प, तुलसी दल, दीपक, वस्त्र-आभूषण इत्यादि पूजा सामग्री का संग्रह करना उपादान कहलाता है।
- योग: ईष्टदेव की आत्मरूप से भावना करना योग है।
- स्वाध्याय: मंत्रार्थ का अनुसंधान करते हुए जप करना, सूक्त-स्तोत्र आदि का पाठ करना, गुण-नाम आदि का कीर्तन करना, ये सब स्वाध्याय हैं।
- इज्या: उपचारों के द्वारा अपने आराध्य देव की पूजा करना इज्या के अंतर्गत आती है।
पूजन के उपचार
- पांच उपचार: गंध, पुष्प, धूप, दीप और नेवैद्य।
- दस उपचार: पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र निवेदन, गंध, पुष्प, धूप, दीप और नेवैद्य।
- सोलह उपचार: पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, आभूषण, गंध, पुष्प, धूप, दीप, नेवैद्य, आचमन, ताम्बुल, स्तवपाठ, तर्पण और प्रदक्षिणा-नमस्कार।
- सांगता सिद्धि: पूजन के अंत में सांगता सिद्धि के लिए दक्षिणा भी चढ़ाना चाहिए।
मंत्र: प्रत्येक देवता का अपना मंत्र होता है जिसके द्वारा उनका आह्वान किया जाता है। प्रत्येक चीज अर्पित किए जाने के समय प्रत्येक का वैदिक मंत्र निर्धारित है। जैसे पत्रं पुष्पं च समर्पयामि। इसी तरह धूप दीप, आचमन, नैवेद्य आदि सभी के मंत्र है।
शौच: शौच का अर्थ है स्नान आदि से शरीर शुद्धि करना। पूजा के पहले यह करना जरूरी है। जल से शरीर के सभी छिद्रों को साफ करना।
आचमन : आचमन का अर्थ होता है विधिपूर्वक जल पीना। प्रार्थना, दर्शन, पूजा, यज्ञ आदि आरंभ करने से पूर्व शुद्धि के लिए मंत्र पढ़ते हुए जल पीना ही आचमन
पूजा का समय : घर में 12 बजे के पूर्व पूजा और आरती समाप्त हो जाना चाहिए। दिन के 12 से 4 बजे के बीच पूजा या आरती नहीं की जाती है।
आरती: पूजा के अंत में आरती करना जरूरी है। आरती को 'आरात्रिक' अथवा 'नीराजन' के नाम से भी पुकारा गया है। आराध्य के पूजन में जो कुछ भी त्रुटि या कमी रह जाती है, उसकी पूर्ति आरती करने से हो जाती है। आरती के अंत में कपूर आरती करते हैं। इस दौरान यह श्लोक बोलते हैं- कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम्। सदा वसन्तं हृदयारविन्दे भवं भवानी सहितं नमामि।।...आरारती समर्पयामी।
दीपक: धारणतया 5 बत्तियों वाले दीप से आरती की जाती है जिसे 'पंचप्रदीप' कहा जाता है। इसके अलावा 1, 7 अथवा विषम संख्या के अधिक दीप जलाकर भी आरती करने का विधान है।
दीपक की ज्योति: दीपक की लौ की दिशा पूर्व की ओर रखने से आयु वृद्धि, पश्चिम की ओर दुःख वृद्धि, दक्षिण की ओर हानि और उत्तर की ओर रखने से धनलाभ होता है। लौ दीपक के मध्य लगाना शुभ फलदायी है। इसी प्रकार दीपक के चारों ओर लौ प्रज्वलित करना भी शुभ है।
पूजा की दिशा: पूजाघर ईशान या उत्तर दिशा में होना चाहिए। घर के ईशान कोण में ही पूजा करें। पूजा के समय हमारा मुंह ईशान, पूर्व या उत्तर में होना चाहिए।
पूजन-आरती सामग्री: धूप बत्ती (अगरबत्ती), कपूर, केसर, चंदन, यज्ञोपवीत 5, कुंकु, चावल, अबीर, गुलाल, अभ्रक, हल्दी, आभूषण, नाड़ा, रुई, रोली, सिंदूर, सुपारी, पान के पत्ते, पुष्प माला, कमल गट्टे, धनिया खड़ा, सप्त मृत्तिका, सप्तधान्य, कुशा व दूर्वा, पंच मेवा, गंगा जल, शहद (मधु), शकर, घृत (शुद्ध घी), दही, दूध, ऋतु फल, नैवेद्य या मिष्ठान्न (पेड़ा, मालपुए इत्यादि), इलायची (छोटी), लौंग मौली, इत्र की शीशी, सिंहासन (चौकी, आसन), पंच पल्लव, (बड़, गूलर, पीपल, आम और पाकर के पत्ते), पंचामृत, तुलसी दल, केले के पत्ते, औषधि, (जटामासी, शिलाजीत आदि), पाना (अथवा मूर्ति), गणेशजी की मूर्ति, अम्बिका की मूर्ति, सभी देवी-देवताओं को अर्पित करने हेतु वस्त्र, जल कलश (तांबे या मिट्टी का), सफेद कपड़ा (आधा मीटर), लाल कपड़ा (आधा मीटर), पंचरत्न (सामर्थ्य अनुसार), दीपक, बड़े दीपक के लिए तेल, बंदनवार, ताम्बूल (लौंग लगा पान का बीड़ा), श्रीफल (नारियल), धान्य (चावल, गेहूं), पुष्प (गुलाब एवं लाल कमल), एक नई थैली में हल्दी की गांठ, खड़ा धनिया व दूर्वा आदि अर्घ्य पात्र सहित अन्य सभी पात्र।
पूजा का क्रम
- शुद्धिकरण
- आचमन
- शिखा बंधन
- प्राणायाम
- न्यास
- पृथ्वी पूजा
- पंचदेव पूजा
- देव आवाहन
- देव आसन
- देव स्नान एवं वस्त्र
- गंध, पुष्प, माला, धूप, दीप अर्पण
- नैवेद्य एवं प्रसाद अर्पण
- पुन: आचमन
- अक्षत, कुमकुम और चंदन अर्पण
- अंत में आरती और प्रसाद वितरण
कैसे करें पूजा, जानिए पूजन विधि
- सूर्योदय पूर्व उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर साफ धौति पहनें।
- पूजा स्थल की जल से शुद्धि करें और पूजा सामग्री को एक थाल में पूजा स्थल पर रखें।
- पूजा स्थल पर एक आम या शीशम की लकड़ी का पाट लगाएं और उसके ऊपर सफेद या पीला वस्त्र बिछाएं।
- पूजा स्थल के उत्तर दिशा में पंचदेवों की स्थापना और कलश स्थापना करें।
- इसके बाद मध्य में अपने ईष्ट देव तस्वीर या मूर्ति को पाट पर विराजमान करें।
- उनकी तस्वीर या मूर्ति पर जल छिड़कर कर पवित्र करें। साफ वस्त्र से उन्हें पोछ दें।
- उन्हें सुंदर वस्त्र पहनाएं।
- घी का दीप प्रज्वलित करें और अगरबत्ती जलाएं।
- इसके बाद उनका आवाहन करें।
- इसके बाद उन्हें माला पहनाएं।
- माला पहनाने के बाद उनके चरणों में फूल अर्पित करें।
- इसके बाद उनकी पूजा करें। यानी उन्हें गंध, पुष्प, हल्दी, कुंकू अर्तित करें।
- साथ साथ ही पंचदेवों की पूजा भी करें।
- इसके बाद उनका मनपसंद नैवेद्य अर्पित करें। पंचामृत अर्पित करें।
- इसके बाद उनकी विधिवत आरती उतारें।
- इसके बाद चाहें तो उनकी चालीसा या कोई पाठ करें।
- अंत में प्रसाद वितरण करें।
पूजा में भाव जरूरी: गीता में श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि हे अर्जुन! जैसे प्रेम करने वाले दो प्रेमी मन से मन को लगाकर प्रेम करते हैं, वैसे ही भक्ति की जाती है। ये विधियां तो बनाने वालों ने बना दी हैं। मैं उन विधियों द्वारा पूजा करने वाले की पूजा भी स्वीकार कर लेता हूं परंतु मैं ये नहीं देखता कि मेरा भक्त विधि अनुसार पूजा कर रहा है कि नहीं। केवल पूजा करने वाले की भावना देखता हूं। उसके मन में मेरे प्रति प्रेम और भक्ति भाव हे या नहीं, ये देखता हूं। जिस पूजा में विधि ही विधि हो और प्रेम तथा भक्ति ना हो, उस पूजा द्वारा कोई भी मुझे प्राप्त नहीं कर सकता। मुझे संपूर्ण साधने की एक ही विधि है मुझमें मन लगाएं, मुझमें ध्यान लगाएं।
यदि आपके पास पूजा से संबंधित कोई सवाल है, तो आप हमारे ज्योतिषाचार्यों से बात कर सकते हैं।