Chhath Puja 2022: छठ मैया की आरती और इस कथा के साथ पूर्ण रुप से मिला है छठ माता का आशीर्वाद
कार्तिक मास की छठी तिथि सूर्य षष्ठी एवं छठ के रुप में मनाई जाती है. दिवाली के 6 दिन बाद मनाया जाने वाला यह पर्व जीवन में सुख एवं समृद्धि को प्रदान करता है. इस पर्व में सूर्य देव और छठ मैया की पूजा की जाती है. इसके अलावा छठ पूजा के दिन सूर्य को अर्घ्य देने का भी विधान है.
जन्मकुंडली ज्योतिषीय क्षेत्रों में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है
हिंदू पंचांग के अनुसार, छठ पूजा हर साल कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष के छठे दिन की जाती है और यह चार दिवसीय त्योहार होता है जो बहुत उत्साह के साथ संपन्न होता है. छठ पर्व के विभिन्न चार दिनों में विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों और रीति-रिवाजों में छठी माता की आरती एवं कथा करना अत्यंत शुभदायक होता है.
छठ मैया की आरती
जय छठी मईया ऊ जे केरवा जे फरेला खबद से, ओह पर सुगा मेड़राए।
मारबो रे सुगवा धनुख से, सुगा गिरे मुरझाए॥जय॥
ऊ जे सुगनी जे रोएली वियोग से, आदित होई ना सहाय।
ऊ जे नारियर जे फरेला खबद से, ओह पर सुगा मेड़राए॥जय॥
मारबो रे सुगवा धनुख से, सुगा गिरे मुरझाए।
ऊ जे सुगनी जे रोएली वियोग से, आदित होई ना सहाय॥जय॥
अमरुदवा जे फरेला खबद से, ओह पर सुगा मेड़राए।
मारबो रे सुगवा धनुख से, सुगा गिरे मुरझाए॥जय॥
ऊ जे सुगनी जे रोएली वियोग से, आदित होई ना सहाय।
शरीफवा जे फरेला खबद से, ओह पर सुगा मेड़राए॥जय॥
मारबो रे सुगवा धनुख से, सुगा गिरे मुरझाए।
ऊ जे सुगनी जे रोएली वियोग से, आदित होई ना सहाय॥जय॥
ऊ जे सेववा जे फरेला खबद से, ओह पर सुगा मेड़राए।
मारबो रे सुगवा धनुख से, सुगा गिरे मुरझाए॥जय॥
ऊ जे सुगनी जे रोएली वियोग से, आदित होई ना सहाय।
सभे फलवा जे फरेला खबद से, ओह पर सुगा मेड़राए॥जय॥
मारबो रे सुगवा धनुख से, सुगा गिरे मुरझाए।
ऊ जे सुगनी जे रोएली वियोग से, आदित होई ना सहाय॥जय॥
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छठ पर्व से जुड़ी है पौराणिक कथा
संतान प्राप्ति एवं उसके सुख की कामना हेतु छठ पर्व को अत्यंत ही विशेष माना गया है. छठ पर्व की कथा के अनुसार राजा प्रियव्रत और उनकी पत्नी के कोई संतान नहीं थी. इस बात से राजा और उसकी पत्नी दोनों हमेशा दुखी रहते थे. संतान की इच्छा को पूरा करने हेतु राजा और उनकी पत्नी महर्षि कश्यप के पास पहुंचे. महर्षि कश्यप ने एक उनके लिए संतान प्राप्ति हेतु यज्ञ किया और परिणामस्वरूप प्रियव्रत की पत्नी गर्भवती हो गई, नौ महीने बाद, रानी ने जिस पुत्र को जन्म दिया, किंतु वह मृत पैदा हुआ.
यह देखकर प्रियव्रत और रानी को बहुत दुख हुआ. संतान के दु:ख के कारण राजा ने पुत्र सहित श्मशान में प्राण त्यागने और आत्महत्या करने का मन बना लिया. जैसे ही राजा ने अपने प्राण त्यागने का प्रयास किया, एक देवी प्रकट हुई, जो मानस की पुत्री देवसेना थी. देवी ने राजा से कहा कि उनका जन्म ब्रह्मांड की मूल प्रकृति के छठे भाग से हुआ है. उन्होंने कहा "मैं षष्ठी देवी हूं,
अगर आप मेरी पूजा करेंगे और दूसरों को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित करेंगे तो मैं आपको अवश्य संतान का सुख प्रदान करंगी. कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि के दिन राजा ने देवी षष्ठी की आज्ञा का पालन करते हुए पूरे विधि-विधान से व्रत रखकर देवी षष्ठी की पूजा की. व्रत-पूजा और देवी षष्ठी की कृपा से राजा को संतान रुप में पुत्र की प्राप्ति हुई. कहा जाता है कि राजा ने यह व्रत कार्तिक शुक्ल षष्ठी को किया था और तभी से छठ पूजा शुरू हुई.
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