जानें चातुर्मास कब है, इस समय विवाह-शादी ही नहीं इन कामों को करने से भी बचना चाहिए
चातुर्मास व्रत का आरंभ रविवार, 10 जुलाई 2022 से शुरु होगा और 4 नवंबर 2022 हरिप्रबोधिनी एकादशी के दिन चातुर्मास की समाप्ति होगी. जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, चतुर्मास व्रत चार महीने की अवधि तक चलता है, उत्सव आमतौर पर देव शयन एकादशी पर आषाढ़ महीने में शुरू होता है और देव प्रबोधनी एकादशी पर कार्तिक महीने में समाप्त होता है. यह समय जुलाई के महीने में शुरू होता है और नवंबर तक चलता है. चतुर्मास के दौरान श्रावण, भाद्रपद, अश्विना और कार्तिक चार महीने होते हैं जिनमें चतुर्मास की अवधि को शामिल किया जाता है. इन महीनों को हिंदू पौराणिक कथाओं में सबसे पवित्र महीने माना जाता है. अधिकांश धार्मिक व्रत या महत्व के व्रत इस अवधि के दौरान मनाए जाते हैं.
चातुर्मास को बहुत शुभ माना जाता है और इस समय पर भजन कीर्तन एवं व्रत कार्य किए जाते हैं. प्रमुख व्रतों में से एक धार्मिक प्रवचनों में भाग लेना भी होता है, सभी प्रमुख मंदिरों में इन दिनों तक चलने वाले विशेष प्रवचन आयोजित किए जाते हैं.
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चातुर्मास में इन चीजों से करें परहेज
चतुर्मास काल में भक्त आमतौर पर किसी भी प्रकार के मांसाहारी भोजन का सेवन करने से परहेज करते हैं. चातुर्मास काल के दौरान लहसुन और प्याज में तैयार भोजन का उपयोग करना निषेध होता है.
चातुर्मास के दौरान कुछ विशेष खाद्य पदार्थों से बचना चाहिए. यह समय चार महीने से अधिक समय तक चलता है, इसलिए विशेष भोज्य पदार्थों का चयन ही उचित होता है. श्रावण मास के दौरान आमतौर पर हरी पत्तेदार सब्जियों से परहेज किया जाता है. भाद्रपद मास में दही और उससे बनी अन्य वस्तुओं का सेवन करने से बचना चाहिए. आश्विन मास में दूध से बनी चीजों का परहेज करना चाहिए. कार्तिक मास के दौरान दालों से परहेज किया जाता है.
विवाह, सगाई, गृह प्रवेश, मुंडन इत्यादि मांगलिक शुभ कार्यों को इस समय पर नहीं किया जाता है.
चोरी, चुगली निंदा इत्यादि जैसे गलत कार्यों से बचना चाहिए ऎसा करने से शुभ कर्मों का नाश होता है.
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चातुर्मास पर किए जाने वाले कार्य
चातुर्मास के चार महीनों की अवधि में भक्त धार्मिक ग्रंथों जैसे रामायण, गीता और भगवद पुराण को पढ़ने में समय बिताते हैं. इन महीनों को भगवान विष्णु के विश्राम का समय माना जाता है, भक्त उनकी कहानियों को सुनने और जरूरतमंदों की सेवा करने में समय व्यतीत करते हैं.भगवान शिव के भक्त भी चातुर्मास काल की प्रतीक्षा करते हैं क्योंकि इसी काल में श्रावण मास भी आता है. श्रावण के दौरान सोमवार को भक्तों द्वारा शुभ माना जाता है और वे इस अवधि के दौरान उपवास की विशेष तैयारी करते हैं.
चातुर्मास काल के दौरान संत आमतौर पर ज्यादा आवागमन से बचते हैं. ऐसा वे जीवन के किसी भी रूप को नुकसान पहुंचाने से बचने के लिए करते हैं क्योंकि बरसात के मौसम को कीड़ों के प्रजनन का समय माना जाता है. ऐसा माना जाता है कि धार्मिक काल के दौरान किसी भी जीव को मारने से संतों को नुकसान हो सकता है और वे अपने आंदोलनों को उसी के अनुसार प्रतिबंधित करते हैं.
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