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जाने क्यों मनाया जाता है छठ का त्योहार और क्या है इसके महत्व

My Jyotish Expert Updated 10 Nov 2021 03:07 PM IST
chhath puja 2021
chhath puja 2021 - फोटो : google
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भारत में छठ एक ऐसा त्यौहार है जिसको बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। हमारे हिंदू धर्म में ज्यादातर त्योहारों में मूर्तियों की पूजा की जाती है, लेकिन वही छठ पर्व में मूर्ति की पूजा नहीं होती है, बल्कि छठ के पर्व में सूर्य, उषा, प्रकृति, जल, और वायु पूजा होती है। छठ का त्यौहार भारत के ज्यादातर हिस्सों में मनाया जाता है, इस त्यौहार के दिन स्त्रियां छठ मैया का पूजा करती हैं। वहीं कई जगहों पर छठ का पर्व मुस्लिम बिरादरी के लोग भी मनाते हैं। यह त्यौहार बिहार उत्तर प्रदेश में बहुत ज्यादा प्रचलित है। आपको बता दें छठ के पर्व में स्त्रियां 2 या 3 दिन तक व्रत रहती हैं। छठ एक ऐसा त्यौहार है जो वैदिक काल से चला आ रहा है। और इस त्यौहार को मनाने वाले भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में भी लोग हैं। यह त्यौहार खासकर इस स्त्रियों के लिए बहुत महत्व रखता है। क्योंकि इस दिन स्त्रियां अपना उपवास खत्म करके छठ मैया की पूजा करती हैं।


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कहा जाता है छठ का पर्व वह व्यक्ति नहीं मना सकते हैं, जिनके घर में किसी की मृत्यु हो गई हो। कुछ लोग यह भी मानते हैं कि छठ का व्रत रखने से स्त्रियों को पुत्र की प्राप्ति होती है। छठ के पर्व में पहनावा भी अहम माना जाता है, इस पर्व में स्त्रियों के लिए साड़ी और पुरुषों के लिए धोती कुर्ता शुभ माना जाता है। तो आइए जानते हैं आखिर क्यों मनाया जाता है छठ का पर्व, और इसके कौन-कौन से महत्व हैं।

क्यों मनाया जाता है छठ पूजा

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि के दिन मनाए जाने वाला छठ का पर्व विश्व विख्यात है। भारत में देश इस त्यौहार को मनाने वाले हैं लाखों लोग हैं।  इस त्यौहार के मनाने वाले लोगों के लिए कई सारे मान्यताएं हैं। एक मान्यता के अनुसार कहा जाता है। छठ पर्व का शुरुआत महाभारत काल में हुआ था, जब सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्य देव की पूजा करना शुरू कर दिया था। आपको बता दें, कर्ण महाभारत काल के एक ऐसे योद्धा थे जिनके डर से असुर थरथर कांपते थे। कर्ण पांडवों के सबसे बड़े भाई थे। कहा जाता है कर्ण सूर्य देव के बहुत बड़े भक्त थे। वह प्रतिदिन पानी में खड़े होकर सूर्यदेव के कई घंटों तक पूजा करते थे। जिनके कृपा से वह एक महान योद्धा बन गए। इसी तर्ज पर आज हम लोग छठ का त्यौहार मनाते हैं।

वही पुराणों के अनुसार माने तो छठ का त्यौहार पुत्र रत्न की प्राप्ति के लिए मनाया जाता है, क्योंकि यह बात कथा में सिद्ध होती हुई नजर आती है। कि राजा प्रियवद को कोई संतान नहीं थी, तब महर्षि कश्यप ने पुत्रेष्टि यज्ञ कराकर उनकी पत्नी मालिनी को यज्ञाहुति के लिए बनायी गयी खीर दी। इसके प्रभाव से उन्हें पुत्र हुआ परन्तु वह मृत पैदा हुआ। प्रियवद पुत्र को लेकर श्मशान गये और पुत्र वियोग में प्राण त्यागने लगे। उसी वक्त ब्रह्माजी की मानस कन्या देवसेना प्रकट हुई और कहा कि सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण मैं षष्ठी कहलाती हूँ।

हे! राजन् आप मेरी पूजा करें तथा लोगों को भी पूजा के प्रति प्रेरित करें। राजा ने पुत्र इच्छा से देवी षष्ठी का व्रत किया और उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। यह पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को हुई थी। 

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