सावन माह की शीतला सप्तमी पूजन से मिलेगा संतान सुख का वरदान और दूर होंगे सभी रोग दोष
शीतला सप्तमी देवी शीतला को समर्पित है, यह देवी पार्वती का अवतार भी मानी जाती हैं. शीतला पूजन का समय साल में दो बार विशेष रुप से मनाया जाता है. पहले चैत्र मास में कृष्ण पक्ष में और फिर श्रावण मास में शुक्ल पक्ष की सप्तमी को यह समय विशेष होता है. सप्तमी पूजा उत्तर भारतीय राज्यों में काफी लोकप्रिय रही है जिसमें महिलाएं भक्ति भाव से इस दिन को मनाती हैं.
शीतला देवी पूजा शांति और सुख प्राप्ति के साथ ही बच्चों के अच्छे स्वास्थ्य के लिए की जाती है. कुछ स्थानों में शीतला अष्टमी का पर्व भी मनाया जाता है जिसे उत्तर भारतीय राज्यों जैसे गुजरात, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में अधिक लोकप्रिय रुप से मनाते हुए देखा जा सकता है. एक अन्य बासौदा पूजा देवी शीतला को समर्पित है और यह पूजा होली के बाद कृष्ण पक्ष अष्टमी को मनाई जाती है. शीतला देवी का पूजन कुछ विशेष दिनों में काफी प्रभावी होता है जिसे भारत के विभिन्न स्थानों पर अलग अलग रुप में मनाते देखा जा सकता है.
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शीतला सप्तमी 2022: पूजा विधि
देवी शीतला को देवी दुर्गा और माता पार्वती का अवतार माना जाता है, सावन माह में आने वाली शीतला सप्तमी पर शक्ति पूजन द्वारा सभी शुभ फलों की प्राप्ति संभव हो पाती है. देवी का आशीष समस्त प्राकृतिक आपदाओं से भी सुरक्षा प्रदान करता है. देवी में प्रकृति की उपचार शक्ति मौजूद है अत: माता का पूजन करने से सभी कष्ट भी दूर होते जाते हैं.
इस शुभ दिन पर भक्त सुबह जल्दी उठकर ठंडे पानी से स्नान करते हैं. फिर वे माता शीतला की पूजा करते हैं और आनंदमय, स्वस्थ और शांतिपूर्ण जीवन प्राप्त करने के लिए विभिन्न अनुष्ठान करने के लिए मंदिर जाते हैं. लोग पूजा से एक दिन पहले बने भोजन का सेवन करते हैं महिलाएं इस दिन अपने बच्चों की भलाई और अच्छे स्वास्थ्य के लिए उपवास रखती हैं इस दिन पके हुए और गर्म भोजन का सेवन वर्जित होता है. क्योंकि माता शीतला को शीतल पदार्थ ही प्रिय होते हैं इसलिए इस दिन कोई भी गरम पदार्थ उपयोग नहीं किया जाता है. फिर वे शीतला माता व्रत कथा के साथ पूजा का समापन करते हैं.
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शीतला माता पूजन महत्व
देवी शीतला का पूजन चेचक और चेचक जैसी बीमारियों से सुरक्षित रहने हेतु किया जाता है. माताएं अपने बच्चों के रोग इत्यादि से बचाव के लिए शीतला माता का पूजन करती हैं. शीतला शब्द का अर्थ शीतलता से है. यह त्योहार उत्तर प्रदेश, राजस्थान और गुजरात जैसे ग्रामीण क्षेत्रों में मुख्य रूप से मनाया जाता है.देश के दक्षिणी हिस्सों में, देवता को देवी मरिअम्मन या देवी पोलेरम्मा के रूप में पूजा जाता है. इसलिए, यह त्योहार आंध्र प्रदेश और कर्नाटक के क्षेत्रों में पोलाला अमावस्या के नाम से भी मनाया जाता है.
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