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जानें बद्रीनाथ धाम से जुड़ी कुछ खास बातें
देवभूमि उत्तराखंड में अलकनंदा नदी के किनारे नीलकंठ पर्वत पर हिंदू धर्म का प्रमुख तीर्थ स्थान बद्रीनाथ स्थित है। यह मंदिर छः महीने भक्तों के लिये खुलता है और शीत ऋतु के छः महीने मंदिर के कपाट बंद रहते हैं। इस वर्ष मंदिर मई के आरंभ में खुला है। यह मंदिर हिंदू धर्म के लोगों के लिए बहुत मायने रखता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार यह वह स्थान है जहाँ पर भगवान विष्णु ने कठोर तप किया था और उनके तप के दौरान देवी लक्ष्मी ने बेर (जिसे बद्री भी कहते हैं) का पेड़ बनकर भगवान विष्णु को छाया दी थी। तब देवी लक्ष्मी से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने वर दिया था कि यह स्थान बद्रीनाथ के नाम से प्रसिद्ध होगा। आज हम आपको इसी बद्रीनाथ धाम से जुड़ी कुछ खास बातें बताने वाले हैं।
सबसे पहले जानते हैं कि मंदिर के कपाट कैसे खोले जाते हैं। इस मंदिर के कपाट की तीन चाबियां है और सबसे रोचक बात यह है कि ये तीनों चाबियां अलग अलग लोगों के पास होती है और इन तीनों चाबियों को एक साथ लगाने पर ही मंदिर के कपाट खुलते हैं। इन तीन में से एक चाबी उत्तराखंड के टिहरी राजपरिवार के राजपुरोहित के पास होती है, जिनका संबंध नौटियाल परिवार से है। वहीं दूसरी चाबी बद्रीनाथ धाम के हक हकूकधारी मेहता लोगों के पास होती है और तीसरी चाबी हक हकूकधारी भंडारी लोगों के पास होती है। मंदिर के कपाट पूरी विधि विधान से खोले जाते हैं और उसके बाद मंदिर में कपाट खुलते ही सबसे पहले रावल (पुजारी) प्रवेश करते हैं।
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जब मंदिर में पुजारी प्रवेश करते हैं तो वह सबसे पहले गर्भगृह में जाते हैं और वहाँ से आने वाले वर्ष में देश की स्थिति कैसी रहेंगी उसका पता चलता है। अब आप यह सोच रहे होंगे कि यह पता कैसे चलता है। तो आपको बता दें जब मंदिर के कपाट बंद होते है तो मंदिर के कपाट बंद करने से पहले मूर्ति पर घी का लेप लगाया जाता है और उसके ऊपर कपड़ा लपेटा जाता है। यह कपड़ा माणा गांव की कवारी लड़कियों के द्वारा तैयार किया जाता है। छः महीने बाद जब कपाट खुलते हैं तो पुजारी सबसे पहले मंदिर में प्रवेश करने के बाद गर्भगृह में जाते हैं और कपड़ा हटाकर देखते हैं यदि मूर्ति पूरी तरह से घी में लिपटी है तो आने वाले साल में देश में खुशहाली रहेंगी वहीं यदि घी कम है तो सूखा या बाढ़ की स्थिति बन सकती है। मूर्ति पर मिलने वाली घी की स्थिति के अनुसार देश के पूरे वर्ष के हालात के बारे में पता चलता है।
धर्मग्रंथों में मिलने वाले उल्लेख के अनुसार भगवान नर नारायण ने बद्री वन में ही तपस्या की थी। मान्यता है कि इस मंदिर की स्थापना आदि गुरु शंकराचार्य ने की थी। इस मंदिर में ध्यान मुद्रा में भगवान विष्णु की एक मीटर ऊंची प्रतिमा है। इसी के साथ यहाँ पर धन के देवता कुबेर और लक्ष्मी नारायण की प्रतिमाएं भी स्थापित है। मंदिर में पंच बदरी की पूजा की जाती है जो कि भगवान विष्णु के पांच स्वरूप है। मंदिर में बद्रीनाथ के मुख्य मंदिर के अलावा अन्य चार स्वरूप श्री योगध्यान बद्री, श्री भविष्य बद्री, श्री वृद्घ बद्री और श्री आदिबद्री भी है।
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यदि आप बद्रीनाथ धाम जाना चाहते हैं तो आपको बता दें की इससे सबसे करीबी रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है। यहाँ से बद्रीनाथ 297 किलोमीटर की दूरी पर है। ऋषिकेश रेलवे स्टेशन से बस या कार से बद्रीनाथ पहुँचा जा सकता है। एयरपोर्ट की बात करें तो इससे नजदीकी एयरपोर्ट देहरादून का जोली क्राफ्ट एयरपोर्ट है। इस एयरपोर्ट से बद्रीनाथ करीब 314 किलोमीटर दूर है। देहरादून से बद्रीनाथ आराम से पहुँच सकते हैं। सड़क मार्ग से ऋषिकेश होते हुए बदरीनाथ धाम आसानी से पहुंचा जा सकता है।
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