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जानिए राजकुमारी मीराबाई कैसे बनीं कृष्ण की दीवानी और उनसे जुड़ी अन्य ज़रूरी बातें

My Jyotish Expert Updated 22 Nov 2021 09:56 AM IST
राजकुमारी मीराबाई
राजकुमारी मीराबाई - फोटो : google
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श्री कृष्ण {Shree Krishna } को जगत गुरु के नाम से जाना जाता हैं। जब भी भगवान श्री कृष्ण का जिक्र होता हैं उनके भक्तों के विषय में भी जिरह होती हैं। भगवान श्री कृष्ण ने द्वापर युग में अवतार लिया था लेकिन भगवान की सबसे अनन्य भक्त मानी जाती हैं मीराबाई {Meerabai } , आपको बता दें कि मीराबाई कलयुग में एक समाज सुधारक एवं संत थीं। मीराबाई जी ने अपने काल में एक उदाहरण के रूप में सामने आई , उन्होंने समाज के सभी कुरीतियों के खिलाफ अपनी आवाज़ बुलंद की थी। आध्यात्मिक जगत में मीरा बाई ने अलग ही ऊंचाई को प्राप्त किया था। माधव की सबसे प्रिय भक्त मीरा बाई जी के जन्म के विषय में यूँ तो कोई पुख़्ता प्रमाण नहीं हैं कि उनका जन्म कब हुआ था, लेकिन मान्यताओं के अनुसार सन 1448 के आस पास माना जाता हैं कि मीरा बाई जी का जन्म हुआ था। अश्विन माह की शरद पूर्णिमा {sharad purnima }की तिथि को मीराबाई की जयंती की रूप में हर साल मनाया जाता हैं। इस वर्ष शरद पूर्णिमा 20 अक्टूबर को मनाई जायेगी। ऐसा कहा जाता हैं कि मीराबाई जी का जन्म एक राजघराने में हुआ था। राजकुमारी मीरा अपने बालपन से ही श्री कृष्ण के भक्ति के रंग में रंग गई थीं। आइये जानतें हैं इस लेख के माध्यम से राजकुमारी मीरा से समाज सुधारिका एवं भगवान श्री कृष्ण की भक्त मीराबाई जी बनने तक का सफर : 


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बचपन से ही मीरबाई को लगी कृष्ण से प्रीत -

राजकुमारी मीरा के कृष्ण भक्त बनने के पीछे एक कथा सुनने को  मिलती है, जिसके अनुसार बताया जाता हैं कि  एक समय की बात है जब उनके पड़ोस में किसी धनवान व्यक्ति के यहां बारात आई थी। उस समय मीराबाई बाल्यकाल की अवस्था में ही थी। सभी स्त्रियां छत पर खड़ी होकर बारात देख रही थीं। मीराबाई भी बारात देखने के लिए छत पर आ गईं बारात को देख मीरा ने अपनी माता से पूछा कि मेरा दूल्हा कौन है इस पर मीराबाई की माता ने उपहास में ही भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति की तरफ इशारा करते हुए कह दिया कि यही तुम्हारे वर हैं, यह बात मीराबाई के बालमन में एक गांठ की तरह समा गई और वे कृष्ण को ही अपना पति मानने लगी।  



मीराबाई का जीवन

मीराबाई जोधपुर, राजस्थान के मेड़वा राजकुल की राजकुमारी थी। ये अपने पिता रतन सिंह की एकमात्र संतान थी। मीराबाई जब छोटी थीं तो उनकी मां का देहांत हो गया, इसके बाद उनके दादा राव दूदा उन्हें मेड़ता ले आए और यहीं पर उनकी देख-रेख में मीराबाई का पालन-पोषण हुआ। मीराबाई का मन बचपन से ही कृष्ण-भक्ति में रम गया था। राजकुमारी ने अपने  बालपन से ही अपने मन को श्री कृष्ण को समर्पित कर दिया था और बचपन से युवावस्था तथा अपना सम्पूर्ण जीवन उन्होंने श्री कृष्ण को अपना सब कुछ मान कर समर्पित कर दिया था। मीराबाई ने कृष्ण को ही अपने पति के रुप में स्वीकार लिया था इसलिए वे विवाह नहीं करना चाहती थी, इसके बाद उनकी इच्छा के विरुद्ध राजकुमार भोजराज के साथ उनका विवाह कर दिया गया।


 
पति की मृत्यु के बाद और ज्यादा बढ़ गई मीरा की कृष्ण भक्ति 

मीराबाई के विवाह के कुछ समय बाद ही उनके पति का देहांत हो गया जिसके बाद वे और भी ज्यादा कृष्ण भक्ति में लीन होती चली गईं। मीराबाई को उनके पति के साथ सती करना चाहा लेकिन वे इसके लिए नहीं मानी क्योंकि वे कृष्ण को अपना स्वामी मानती थी। कहा जाता है कि इसी कारण उन्होंने अपना श्रंगार भी नहीं उतारा। ऐसा कहा जाता हैं कि उनके पति का अंतिम संस्कार उनकी अनुपस्तिथि में ही किया गया था।

मीराबाई के पति का देहांत होने के बाद उनकी भक्ति दिनों-दिन बढ़ती चली गई। वे मदिर में जाकर इतनी लीन हो जाती थी कि श्रीकृष्ण की मूर्ति के सामने घंटो तक नाचती रहती थी। इसी कारण मीराबाई की कृष्ण भक्ति उनके पति के परिवार को अच्छी नहीं लगती थी। इसलिए उन्हें कई बार मारने का प्रयास भी किया गया कभी विष  देकर तो कभी जहरीले सांप के द्वारा। परंतु श्रीकृष्ण की कृपा से मीराबाई को कुछ नहीं हुआ।  



कृष्ण की मूर्ति में समा गई मीराबाई 

मीराबाई के मारने का प्रयास किया, इसके बाद वे वृंदावन और फिर वहां से द्वारिका चली आई। इसके बाद वे साधु-संतो के साथ रहने लगी व कृष्ण की भक्ति में रमी रहीं। मीराबाई की मृत्यु के विषय में कहा जाता है कि उन्होंने जीवन भर भगवान कृष्ण की भक्ति की और अंत समय में भी वे भक्ति करते हुए कृष्ण की मूर्ति में समा गई थी।  



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