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जानिए क्या है सर्वपितृ अमावस्या का महत्व और कैसे करें पितरों का श्राद्ध

My jyotish expert Updated 01 Oct 2021 02:37 PM IST
sarvapitra amavasya significance
sarvapitra amavasya significance - फोटो : google photo
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सनातन धर्म में श्राद्ध का विशेष महत्व है। लेकिन अगर किसी को अपने पितरों की पुण्य तिथि याद न हो तो इस स्थिति में सर्व पितृ श्राद्ध अमावस्या के दिन उन पितरों का श्राद्ध किया जा सकता है। मान्यता है कि इस दिन श्राद्ध किए जाने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है। तो आइए जानते हैं कि क्या है सर्व पितृ श्राद्ध अमावस्या का महत्व और क्यों है यह तिथि इतनी खास?

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शास्त्रों के अनुसार आश्विन माह कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को सर्व पितृ श्राद्ध तिथि कहा जाता है। इस दिन भूले-बिसरे पितरों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध किया जाता है। कहते हैं कि इस दिन अगर पूरे मन से और विधि-विधान से पितरों की आत्मा की शांति श्राद्ध किया जाए तो न केवल पितरों की आत्मा शांत होती है बल्कि उनके आशीर्वाद से घर-परिवार में भी सुख-शांति बनी रहती है। परिवार के सदस्यों की सेहत अच्छी रहती है और जीवन में चल रही परेशानियों से भी राहत मिलती है।

मान्यता है कि पितरों का अगर श्राद्ध न किया जाए तो उनकी आत्मा पृथ्वी पर भटकती रहती है। जिसके प्रभाव से घर-परिवार के लोगों को भी आए दिन दु:ख-तकलीफ का सामना करना पड़ता है। इसलिए बहुत जरूरी है कि अगर आप पितरों की पुण्य तिथि भूल चुके हैं तो इस तिथि पर उनका श्राद्ध कर दें। इसके अलावा ध्यान रखें कि इस दिन भूलकर भी क्रोध न करें, किसी दूसरे शहर की यात्रा पर न जाएं। यूं तो पूरे पितृ पक्ष में तेल नहीं लगाना चाहिए। लेकिन इस दिन तो विशेषकर तेल नहीं लगाना चाहिए। इस दिन जब आप श्राद्ध करें तो उसमें लोहे के बर्तन, बासी फल-फूल और अन्न का उपयोग न करें। इसके अलावा मांस-मदिरा, उड़द दाल, मसूर, चना, खीरा, जीरा, सत्तू और मूली का भी सेवन न करें, यह पूर्णतया वर्जित है।

इस साल आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या 06 अक्टूबर, बुधवार को है। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, जिन परिजनों को अपने पितरों की देहांत तिथि ज्ञात नहीं है, वह सर्व पितृ अमावस्या के दिन श्राद्ध और तर्पण कर सकते हैं। ... इस दिन पितरों को विदाई देते समय उनसे किसी भी भूल की क्षमा याचना भी करनी चाहिए

सर्व पितृ अमावस्या 2021: समस्त पितरों का इस अमावस्या को श्राद्ध किये जाने को लेकर ही इस तिथि को सर्वपितृ अमावस्या कहा जाता है।

शास्त्रों में कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि यानि अमावस्या का विशेष महत्व बताया गया है। समस्त पितरों का इस अमावस्या को श्राद्ध किये जाने को लेकर ही इस तिथि को सर्वपितृ अमावस्या कहा जाता है। सबसे अहम तो यह तिथि इसीलिए है क्योंकि इस दिन सभी पितरों का श्राद्ध किया जा सकता है।  25 तत्वों में से 17 सूक्ष्म तत्व शरीर में रहते हैं। मान्यता है कि हमारे शरीर से मरते समय क्रमश: प्राण, अपान, समान, उदान और व्यान आदि पांच तरह की वायु निकल जाती हैं। बचे हुए स्थूल शरीर को अग्नि में जला दिया जाता है और सूक्ष्म शरीरधारी आत्मा परलोक चली जाती है जिसे हम पितर कहते हैं। इसलिए वेद-शास्त्रों में मृतक का श्राद्ध में पिंडदान आदि का विधान है। भाद्रपद मास की पूर्णिमा से आश्विन मास के कृष्ण पक्ष से लेकर अमावस्या तक जिस भी तिथि को मृत्यु हुई हो उस दिन श्राद्ध करने का विधान है। सर्वपितृ अमावस्या को सभी ज्ञात-अज्ञात पितरों का तर्पण और श्राद्ध करने का विधान है।


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