Amla Navami Vrat 2022: आंवला नवमी पर जरूर पढ़ें ये व्रत कथा दूर होंगे सभी कष्ट
आंवला नवमी के दिन भगवान विष्णु और आंवले के वृक्ष की पूजा के साथ-साथ दान-पुण्य करने का भी विशेष महत्व रहता है. कार्तिक शुक्ल नवमी को अक्षय या आंवला नवमी के नाम से मनाया जाता है. इस दिन स्नान, पूजन, तर्पण और अन्नदान आदि करने से अक्षय फलों की प्राप्ति होती है. कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को द्वापर युग की शुरुआत का समय भी माना जाता है. एक युग के आरंभ होने की ये तिथि अत्यंत पवित्र होती है.जन्मकुंडली ज्योतिषीय क्षेत्रों में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है
आंवला नवमी के दिन दान और धर्म का अधिक महत्व होता है. मान्यता है कि इस दिन दान करने से वर्तमान के साथ-साथ अगले जन्म में भी पुण्य मिलता है. शास्त्रों के अनुसार आंवला नवमी के दिन आंवले के पेड़ की पूजा की जाती है. कहते हैं ऐसा करने से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है.
इस दिन व्रत पूजा का पाठ करने के साथ ही इस व्रत कथा का पाठ अवश्य करना चाहिए.
आंवला नवमी कहानी
हिंदू धर्म में कार्तिक मास का बहुत महत्व है. क्योंकि इस महीने में कई बड़े व्रत पर्व आते हैं. इसी प्रकार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को आंवला पूजन का दिन होता है. इस दिन भगवान विष्णु के साथ आंवले के पेड़ की विधिवत पूजा की जाती है. ऐसा माना जाता है कि इस आंवले के पेड़ में श्री हरि विष्णु का वास होता है. इसलिए अच्छे स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि के लिए आंवले के पेड़ की पूजा की जाती है.
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इसके साथ ही परिवार पेड़ के नीचे बैठकर सात्विक भोजन करता है. ऐसी मान्यता है कि इस दिन आंवले के पेड़ की पूजा करने के साथ ही इस व्रत कथा का पाठ भी करना चाहिए. ऐसा करने से भगवान विष्णु के साथ-साथ मां लक्ष्मी भी बहुत प्रसन्न होती हैं. आइए जानते हैं आंवला नवमी की व्रत कथा.
अमला नवमी कथा
आंवला नवमी की कथा के अनुसार बहुत समय पहले एक सेठ था. वह हर साल आंवला नवमी के दिन आंवले के पेड़ के नीचे बैठकर ब्राह्मणों को खाना खिलाते थे. इसके साथ ही वह उपहार के रूप में सोना-चांदी आदि भी देते हैं. परन्तु ये सब बातें शेत के पुत्रों को कतई शोभा नहीं देतीं. ऐसे में उनका अपने पिता से काफी झगड़ा होता था. इन सब बातों से तंग आकर सेठ घर छोड़कर दूसरे गांव में जाकर बस गया.
इसके साथ ही रहने के लिए एक छोटी सी दुकान भी रखी. इसके साथ ही उस दुकान के सामने आंवले का एक पेड़ लगा हुआ था. भगवान की कृपा इतनी हुई कि दुकान खूब चलने लगी. इसके साथ ही प्रत्येक वर्ष आंवला नवमी के दिन उनके शासन को तोड़े बिना विधिवत पूजा कर ब्राह्मणों को भोजन कराया. दूसरी ओर सेठ के पुत्रों का व्यवसाय ठप हो गया.
ऐसे में सेठ के पुत्रों को समझ में आने लगा कि वे अपने पिता के भाग्य से ही खाते हैं. अपनी गलती का एहसास होने पर वह अपने पिता के पास गया और अपनी गलती के लिए माफी मांगने लगा. फिर पिता की सलाह के बाद वे भी आंवले के पेड़ की पूजा करने लगे और दान देने लगे. इस प्रभाव से सेठ के पुत्रों का घर पहले की तरह समृद्धि में आ गया और सुख-समृद्धि के साथ रहने लगा.
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