प्रसिद्ध राधा-रानी मंदिर में नहीं टूटी 5000 साल पुरानी परंपरा , पुजारियों ने ही कराई पूजा
आज राधा अष्टमी के मौके पर मंदिर में पूजा गोस्वामी समाज का पुरुष पुजारी यानी सेवादार ने ही पूजा कराई। एक महिला ने दावा किया है की हम राधा रानी के इस मंदिर की पूजा कराएंगे। उस महिला को ये अधिकार देने की बात चल रही थी लेकिन ये बस हवा उड़ा था। ये बात तो शनिवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट तक जा पहुंची। हाई कोर्ट ने भी अपना फैसला देने से मना कर दिया। राधाष्टमी पर मथुरा के बरसाने में स्थित राधा रानी मंदिर में बड़ा आयोजन होता है। इस मौके पर यहां लगने वाले मेले में लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं। मान्यता है की राधा रानी का ये मंदिर लगभग 5000 साल पुराना है।
बताया जाता है की इस राधा रानी मंदिर की स्थापना कृष्ण वंसजो ने करवाई थी। अगर बात राधा रानी की हो तो उनके प्रियतम तो होंगे ही। बांके बिहारी मंदिर के बाद मथुरा में धार्मिक महत्व का दूसरा सबसे महत्वपूर्ण मंदिर माना जाता है। मंदिर के सेवादार के पद पर परंपरा के मुताबिक एक परिवार के लोगों को ही मौका मिलता रहा है। तीन टुकड़ों में बंटे परिवार को एक-एक साल के लिए सेवादार नियुक्त किया जाता है। एक साल के कार्यकाल में परिवार के कई सदस्यों को काम करने का मौका मिलता है, इसके लिए परिवार के सदस्यों ने आपस में नियम तय किया हुआ है।
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जब महिला ने किया सेवादार बनाने का दावा
इस राधा रानी मंदिर के अपने कुछ नियम है। नियम के मुताबिक इस साल 27 अप्रैल से 20 अक्टूबर 2022 तक के लिए हरबंस लाल गोस्वामी को राधा रानी मंदिर का सेवादार के पद पर काम करना था, हालांकि हरबंस लाल की मृत्यु 1999 में ही हो चुकी थी। इस नाते इस अवधि में उनके भाई के पौत्र रासबिहारी को सेवादार नियुक्त होना था। परिवार में रासबहारी की नियुक्ति को लेकर कोई विवाद नहीं था। रासबिहारी ने तय वक्त पर अपना कार्यभार ग्रहण भी कर लिया। इस बीच माया देवी नाम की एक महिला ने खुद को हरबंस लाल गोस्वामी की विधवा होने का दावा करते हुए मंदिर का सेवादार बनाए जाने का दावा किया। निचली अदालत के एक आदेश से माया देवी को सेवादार मानते हुए प्रशासन ने उस पद पर काबिज भी करा दिया था। हालांकि बाद में छाता सर्किल के सिविल जज जूनियर डिविजन का आदेश जिला अदालत से लेकर हाईकोर्ट तक रद्द हो गया था।
हाईकोर्ट ने महिला की मंशा को बताया था गलत
हाई कोर्ट ने इस महिला को राधा रानी के मंदिर का सेवादार नहीं माना। हाई कोर्ट ने महिला की मंशा को गलत बताते हुए कहा की आपका मंशा इस मंदिर को लेकर गलत है तो हम इस याचिका को खारिज करते है। ये अनजान महिला ना तो पुरुष है और ना ही गोस्वामी परिवार से है। परिवार के लोगों को इस बात पर कोई भी आपत्ति नहीं थी। परिवार ने माया देवी को हरबंस लाल की पत्नी मानने से भी इनकार किया था और उन पर झूठा दावा करने का आरोप लगाया था। अदालतों से आए फैसलों में माया देवी को हरबंस लाल गोस्वामी की पत्नी भी नहीं माना गया था।
सुनवाई के बावजूद कोर्ट से रासबिहारी को राहत नहीं
इन्हीं आदेशों के आधार पर रास बिहारी ने छाता सर्किल के सिविल जज जूनियर डिविजन के यहां अर्जी दाखिल कर राधा अष्टमी पर खुद को सेवादार के तौर पर काबिज कराए जाने का आदेश दिए जाने की मांग की थी। छाता के सिविल जज ने फौरन कोई आदेश देने से इनकार करते हुए सुनवाई के लिए 8 सितंबर की तारीख तय कर दी थी। सिविल जज की कोर्ट में 2 सितंबर को सुनवाई हुई थी। अब 4 सितंबर को होने वाले राधा अष्टमी के पर्व पर खुद को सेवादार के रूप में मंजूरी दिए जाने की मांग को लेकर रासबिहारी ने शनिवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट में अर्जी दाखिल की। मामले को अर्जेंट बताते हुए अदालत से छुट्टी के दिन भी सुनवाई किए जाने की अपील भी की थी। जस्टिस विवेक चौधरी की सिंगल बेंच ने शनिवार को छुट्टी के दिन भी इस मामले में सुनवाई की। हालांकि सुनवाई के बावजूद कोर्ट ने रासबिहारी को कोई फौरी राहत नहीं दी,अदालत ने कोई भी अंतरिम आदेश जारी करने से मना कर दिया।
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कोर्ट ने आदेश देने से क्यों किया इनकार?
अदालत ने सुनवाई के दौरान कहा कि राधा अष्टमी की वजह से मंदिर में मेला लगा हुआ है। वहां लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ एक दिन पहले से ही इकट्ठा हो चुकी है। ऐसे में सेवादार बदले जाने का आदेश दिए जाने से कानून व्यवस्था की स्थिति बिगड़ सकती है। जन्माष्टमी की तरह भगदड़ जैसे हालात हो सकते हैं। श्रद्धालुओं की जानमाल को खतरा हो सकता है। इसलिए इस मामले में कोई अंतरिम आदेश दिया जाना उचित नहीं होगा। वहीं कोर्ट ने विपक्षी महिला माया देवी को नोटिस जारी कर उससे जवाब दाखिल करने को कहा है।
12 सितंबर को फिर से सुनवाई
अदालत इस मामले में 12 सितंबर को फिर से सुनवाई करेगी। याचिकाकर्ता की तरफ से उनके वकील आशुतोष शर्मा ने बहस की ,सेवादार बनने का दावा करने वाले रासबिहारी इससे पहले 27 से 29 अगस्त तक मंदिर परिसर में भूख हड़ताल पर बैठ चुके हैं। तबीयत बिगड़ने पर पुलिस ने उन्हें जबरन हटाया था।
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