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Sawan 2021: सावन के पावन महीने में जानिए कावड़ यात्रा से जुड़े इतिहास , नियम, व मान्यताएँ

kumari sunidhiraj Myjyotish expert Updated Sun, 25 Jul 2021 01:06 PM IST
kanwar yatra
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सावन के पावन महीने का महत्व पौराणिक कथाओं के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान भगवान शिव ने दुनिया को बचाने के लिए विष का सेवन किया था। हालाँकि, देवी पार्वती ने उनके शरीर में जहर को आगे प्रवेश करने से रोकने के लिए जल्दी से उनका गला पकड़ लिया। फलस्वरूप उनका कंठ नीला पड़ गया और वे नीलकंठ कहलाने लगे। विष सेवन के बाद, भगवान शिव का शरीर जलने लगा। इसलिए उसे जलन को शांत करने के लिये , सभी देवी-देवताओं ने उनपर जल अर्पित करना शुरू कर दिया। यहीं से शिव को जल चढ़ाने और कांवड़ यात्रा की प्रथा शुरू हुई। साल का सबसे  पवित्र महीना, सावन, भगवान शिव के भक्तों के लिए वार्षिक तीर्थयात्रा की शुरुआत का प्रतीक है। लाखों भक्त भगवान शिव का आशीर्वाद लेने के लिए कांवर तीर्थ यात्रा पर जाते हैं।कांवरिया यात्रा के हिस्से के रूप में अपने क्षेत्रों में शिव मंदिरों में चढ़ाने के लिए गंगा नदी से पवित्र जल इकट्ठा करते हैं उत्तराखंड में हरिद्वार, गौमुख और गंगोत्री और बिहार के सुल्तानगंज में गंगा नदी का सुद्ध जल लाने के लिए श्रद्धालु आते हैं।कांवड़ यात्रा भारत के पूर्वी राज्यो जैसे  उत्तर प्रदेश , बिहार , उत्तराखंड में व्यापक रूप से लोकप्रिय है। लाखों भक्त विशाल समूहों में आते हैं और पूरे मार्ग में शिव भजन नृत्य और गायन में भाग लेते हैं। वही ट्रैफिक पुलिस किसी भी प्रकार की भीड़भाड़ होने से रोकने के लिए विशेष नियम भी बनाए गए हैं। इनके अलावा, सरकार द्वारा भी व्यापक रूप से  कई विश्राम घर और भोजन केंद्र की भी व्यवस्था की जाती है । वही पिछले वर्ष कोरोना  (COVID-19) महामारी के कारण कांवड़ यात्रा को  स्थगित कर दी गई थी। 

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