हिंदू धर्म में पितरों का बहुत महत्व है.16 दिनों तक चलने वाला श्रृद्धा में पितरों को हव्य, कव्य और जल प्रदान करतें हुए बड़े विधी विधान से पुरा किया जाता हैं। गंगा आदि पवित्र नदियों के तटों के अलावा घरों में भी तर्पण किए जाते हैं। पितृपक्ष में पितरों का आगमन दक्षिण दिशा से होता है, शास्त्रों के अनुसार, दक्षिण दिशा में चंद्रमा के ऊपर की कक्षा में पितृलोक की स्थिति है। इस दिशा को यम की भी दिशा माना गया है। इसलिए दक्षिण दिशा में पितरों का अनुष्ठान किया जाता है।इस दौरान पितरों की पूजा की जाती है और उनके नाम से तर्पण, श्राद्ध, पिंडदान और ब्राह्मण भोजन करवाया जाता है। पितृ पूजा में कई बातें ऐसी हैं जो रहस्यमयी हैं और लोगों के मन में सवाल उत्पन्न करते हैं कि आखिर ऐसा क्यों होता है। जैसे दोपहर में हीं क्यों पुजा किए जातें हैं। पितरों को चावल और आटे का पिंड क्यों,पितरों की पूजा में सफेद फूल ही क्यों मृत्यु तिथि पर ही पितरों को भोजन क्यों,दक्षिण की ओर ही पितरों को क्यों देते हैं जल ऐसे कई सवाल हैं जिसको पुरे किए बगैर पितारो को विधि विधान से नहीं पुरा किया जा सकता हैं। आपके मन उन सभी सवालों का जवाब लेकर आएं हैं।
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