क्यों करते हैं कुश घास का प्रयोग : -
वेदों और पुराणों के पाठो में कुश घास को पवित्र माना जाता है । इसे कुशा , दर्भ या डाभ के नाम से भी जाना जाता है । आमतौर पर सभी धार्मिक कार्यो में होने वाले कुश से बने आसन को आसानी से बिछाया जा सकता है और कुश से बनी हुई पवित्री को अनामिका अंगुली में धारण किया जाता है । अथर्ववेद , मत्स्य पुराण और महाभारत में भी कुश घास का महत्व बताया गया है । ऐसा माना जाता है कि पूजा - पाठ और ध्यान के दौरान व्यक्ति के शरीर में एक ऊर्जा उत्पन्न होती है । कुश के आसन पर बैठकर व्यक्ति द्वारा किए गए पूजा - पाठ और ध्यान से शरीर में पैदा हुई संचित ऊर्जा जमीन के अंदर नहीं जा पाती है । इसके अलावा व्यक्ति धार्मिक कार्यों में कुश से बनी अंगूठी इसलिए पहना करते हैं ताकि उसकी अध्यात्मिक शक्ति पूंज दूसरी उंगली में ना जा सके । रिंग फिंगर यानी कि अनामिका के नीचे सूर्य का स्थान होने के कारण यह सूर्य की उंगली बताई जाती है । सूर्य से व्यक्ति को जीवनी शक्ति , तेज और यश प्राप्त होता है । दूसरा कारण यह बताया जाता है कि इस ऊर्जा को पृथ्वी में जाने से रोकने के लिए भी व्यक्ति कुश अंगूठी को धारण करता है । पूजा - पाठ के दौरान यदि भूल से भी व्यक्ति के हाथ की उंगली जमीन पर लग जाती है तो उस बीच उसमें कुश आ जाता हैं जिससे ऊर्जा की रक्षा होती हैं । इसीलिए अक्सर ही लोग कुशा की अंगूठी बनाकर हाथ में पहना करते हैं ।
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