जिस तरह करवा चौथ का व्रत पति की लंबी आयु के लिए किया जाता है। उसी प्रकार माताएं
अहोई अष्टमी का उपवास अपनी संतान की सुख-समृद्धि और लंबी आयु के लिए करती हैं। हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को अहोई अष्टमी का त्योहार मनाया जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार अहोई अष्टमी के दिन माता पावर्ती के अहोई स्वरूप की पूजा की जाती है। इस दिन नि:संतान महिलाएं भी संतान प्राप्ति के लिए उपवास करती हैं। इस साल 28 अक्टूबर को अहोई अष्टमी का यह त्योहार मनाया जाएगा। अहोई अष्टमी के दिन गुरु-पुष्य नक्षत्र भी लग रहा है। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार अगर माताएं इस शुभ योग में ये उपाय करेंगी तो उनकी संतान के जीवन में हमेशा सुख, शांति, समृद्धि और धन-लक्ष्मी का वास होगा।
अहोई अष्टमी का व्रत करवा चौथ अहोई की पूजा की जाती है। यह व्रत संतान सुख और संतान प्राप्ति के लिए किया जाता है। इस व्रत को करने से संतान संबंधी सभी परेशानियां समाप्त होती है। इस दिन चंद्रमा की नहीं बल्कि तारों की छांव में पूजा की जाती है। लेकिन अगर आप
राशि के अनुसार इस दिन कुछ उपाय करती हैं तो आपको जल्द ही एक उत्तम और योग्य संतान की प्राप्ति होगी।
अहोई अष्टमी का व्रत कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन किया जाता है। पुत्रवती महिलाओं के लिए यह व्रत अत्यन्त महत्वपूर्ण है। माताएं अहोई अष्टमी के व्रत में दिन भर उपवास रखती हैं और सायंकाल तारे दिखाई देने के समय होई का पूजन किया जाता है। तारों को करवा से अर्घ्य भी दिया जाता है। यह होई गेरु आदि के द्वारा दीवार पर बनाई जाती है अथवा किसी मोटे वस्त्र पर होई काढकर पूजा के समय उसे दीवार पर टांग दिया जाता है।
होई के चित्रांकन में ज्यादातर आठ कोष्ठक की एक पुतली बनाई जाती है। उसी के पास साही तथा उसके बच्चों की आकृतियां बना दी जाती हैं। करवा चौथ के ठीक चार दिन बाद अष्टमी तिथि को देवी अहोई माता का व्रत किया जाता है। यह व्रत पुत्र की लम्बी आयु और सुखमय जीवन की कामना से पुत्रवती महिलाएं करती हैं। कृर्तिक मास की अष्टमी तिथि को कृष्ण पक्ष में यह व्रत रखा जाता है इसलिए इसे अहोई अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है।
उत्तर भारत के विभिन्न अंचलों में अहोईमाता का स्वरूप वहां की स्थानीय परंपरा के अनुसार बनता है। सम्पन्न घर की महिलाएं चांदी की होई बनवाती हैं। जमीन पर गोबर से लीपकर कलश की स्थापना होती है। अहोईमाता की पूजा करके उन्हें दूध-चावल का भोग लगाया जाता है। तत्पश्चात एक पाटे पर जल से भरा लोटा रखकर कथा सुनी जाती है। अहोईअष्टमी की दो लोक कथाएं प्रचलित हैं।
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