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होई के चित्रांकन में ज्यादातर आठ कोष्ठक की एक पुतली बनाई जाती है। उसी के पास साही तथा उसके बच्चों की आकृतियां बना दी जाती हैं। करवा चौथ के ठीक चार दिन बाद अष्टमी तिथि को देवी अहोई माता का व्रत किया जाता है। यह व्रत पुत्र की लम्बी आयु और सुखमय जीवन की कामना से पुत्रवती महिलाएं करती हैं। कृर्तिक मास की अष्टमी तिथि को कृष्ण पक्ष में यह व्रत रखा जाता है इसलिए इसे अहोई अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है।
उत्तर भारत के विभिन्न अंचलों में अहोईमाता का स्वरूप वहां की स्थानीय परंपरा के अनुसार बनता है। सम्पन्न घर की महिलाएं चांदी की होई बनवाती हैं। जमीन पर गोबर से लीपकर कलश की स्थापना होती है। अहोईमाता की पूजा करके उन्हें दूध-चावल का भोग लगाया जाता है। तत्पश्चात एक पाटे पर जल से भरा लोटा रखकर कथा सुनी जाती है। अहोईअष्टमी की दो लोक कथाएं प्रचलित हैं।
अहोई अष्टमी व्रत कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है. इस दिन अहोई माता (पार्वती) की पूजा की जाती है.
इस दिन महिलाएं व्रत रखकर अपने संतान की रक्षा और दीर्घायु के लिए प्रार्थना करती हैं. जिन लोगों को संतान नहीं हो पा रही हो उनके लिए ये व्रत विशेष है. जिनकी संतान दीर्घायु नहीं होती हो या गर्भ में ही नष्ट हो जाती हो, उनके लिए भी ये व्रत शुभकारी होता है.
सामान्यतः इस दिन विशेष प्रयोग करने से संतान की उन्नति और कल्याण भी होता है. ये उपवास आयुकारक और सौभाग्यकारक होता है.
इस बार अहोई अष्टमी का व्रत 12 अक्टूबर को किया गया।
प्रातः स्नान करके अहोई की पूजा का संकल्प लें. अहोई माता की आकृति , गेरू या लाल रंग से दीवार पर बनायें.
सूर्यास्त के बाद तारे निकलने पर पूजन आरम्भ करें।
पूजा की सामग्री में एक चांदी या सफेद धातु की अहोई, चांदी की मोती की माला, जल से भरा हुआ कलश, दूध-भात, हलवा और पुष्प, दीप आदि रखें।
पहले अहोई माता की रोली, पुष्प, दीप से पूजा करें, उन्हें दूध भात अर्पित करें. फिर हाथ में गेहूं के सात दाने और कुछ दक्षिणा (बयाना) लेकर अहोई की कथा सुनें।
कथा के बाद माला गले में पहन लें और गेहूं के दाने तथा बयाना सासु मां को देकर उनका आशीर्वाद लें।
अब चन्द्रमा को अर्घ्य देकर भोजन ग्रहण करें।
चांदी की माला को दीवाली के दिन निकाले और जल के छींटे देकर सुरक्षित रख ले।
अष्टमी तिथि को अहोई माता की पूजा की जाती है. इस बार अहोई अष्टमी का व्रत 28 अक्टूबर 2021 दिन गुरुवार रखा जाएगा. अहोई अष्टमी व्रत के साथ ही इस दिन भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा की जाती है।
इस स्याहु की पूजा रोली, अक्षत, दूध व भात से की जाती है. पूजा चाहे आप जिस विधि से करें लेकिन पूजा के लिए एक कलश में जल भर कर रख लें. पूजा के पश्चात सासु मां के पैर छूएं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करें. पूजन के बाद अहोई माता को दूध और चावल का भोग लगाया जाता है।
जिन स्त्रियों वह व्रत करना होता है वह दिनभर उपवास रखती हैं। सायंकाल भक्ति-भावना के साथ दीवार अहोई की पुतली रंग भरकर बनाती हैं। उसी पुतली के पास सेई व सेई के बच्चे भी बनाती हैं। आजकल बाजार से अहोई के बने रंगीन चित्र कागज भी मिलते हैं। उनको लाकर भी पूजा की जा सकती है।
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