कथन के अनुसार जब माता सती शिव जी के साथ विवाहोपरांत पहली बार अपने पिता के घर आयी तो उनके पिता राजा दक्ष बात-बात पर अपने दामाद शिव का अपमान कर रहे थे जिसे माता सती बर्दाश्त नहीं कर पायी और स्वयं को पूजा के हवन कुंड में समर्पित कर दिया। यह दृश्य देख शिव अपना आपा खो बैठे और माता सती का जलता शरीर लेकर ब्रह्माण्ड में इधर उधर भटकने लगे।
जीवन से जुड़ी समस्याओं के समाधान पाने के लिए अभी बात करे माय ज्योतिष के अनुभवी एस्ट्रोलॉजर्स से
शिव का यह रूप देख सभी देवगण भयभीत हो उठे,तभी भगवान विष्णु ने माता सती के मृत शरीर के ५१ भाग कर दिए। जिस -जिस जगह माता सती के अंग गिरे वह शक्तिपीठ कहलाये। कथन के अनुसार यहाँ माता का योनि भाग गिरा था जिससे कामाख्या महापीठ की उत्पत्ति हुई जहा माता रजस्वला भी होती है।
इस मंदिर के बारे में रोचक कथा है की यहां माता सती का योनि भाग गिरे है जिस कारण हर साल माता तीन दिन के लिए रजस्वला होती है जिसके लिए मंदिर को बंद कर दिया जाता है और तीन दिन के बाद हर्षोउल्लास के साथ पुनः खोला जाता है।
माता की कोई मूर्ति न होने के कारण उनकी पूजा के लिए प्रतिमा को सदैव फूलों से सजाकर रखा जाता है। जिस समय कामाख्या देवी (Kamakhya Devi) रजस्वला होती हैं, उनकी प्रतिमा के आस पास सफ़ेद कपड़ा रख दिया जाता है जो मंदिर खुलने पर लाल रंग का हो जाता है। इस वस्त्र को अम्बुवाची वस्त्र कहा जाता है जो प्रसाद के रुप में भक्तों को दिया जाता है।
कामाख्या मंदिर (Kamakhya Temple) सारे ब्रह्माण्ड का केंद्र बिंदु माना जाना है जिसके कारण यहां नवरात्री में पूजा करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। लोग दूर-दूर से यहां दर्शन करने आते है। काले जादू एवं श्राप से भी यहां आकर मुक्ति मिल जाती है। नवरात्रि के समय मंदिर यहां कुंवारी कन्याओं को भोजन करवाने से पुण्य की प्राप्ति होती है। माँ के अन्य स्थलों की तरह यहां भी नवरात्रि की पूजा भव्य रूप से की जाती है।
यह भी पढ़े
जानिए कैसे श्री राम के प्रिय हनुमान करते हैं अपने भक्तों की परेशानियां दूर
चैत्र नवरात्रि में हो रहा है बड़े ग्रह गुरु का राशि परिवर्तन, जानिए कैसा रहेगा आपके जीवन पर प्रभाव
कामाख्या मंदिर में कराएं बगलामुखी का पाठ और हवन,और पाए धन से जुड़ी समस्या और कर्ज से मुक्ति