महिला दिवस विशेषः जानिए ऐसी चार महिलायें जिनका जीवन ही महिला शक्ति का परिचय है
एक महिला क्या कुछ नहीं कर सकती! एक बेटी, बहन या माँ होने के साथ-साथ सफल गृहस्थ, व्यवसायी, अध्यापक, डॉक्टर, इंजीनियर, पुलिस अथवा उच्च नेता भी बन सकती है। अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस सभी महिलाओं के सम्मान में मनाया जाता है। महिलाओं के कामयाब, दृढ़ और सशक्त रहकर उपलब्धियों को हासिल करने के लिए पूरा विश्व सम्मान देता है। आइए जानते हैं इस दिन का महत्व और उन ऐतिहासिक व पौराणिक महिलाओं के बारे में जिनका जीवन ही उनका परिचय है…
महत्व
सम्पूर्ण विश्व में अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस का प्रारम्भ सन् 1908 में अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर से हुआ। एक महिला आन्दोलन जिसमें लगभग 15 हजार महिलाओं ने अपने अधिकारों की माँग हेतु 8 मार्च को न्यूयॉर्क की सड़कों पर उतर कर आंदोलन किया। तभी से इस दिन अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाना प्रारम्भ हुआ। संयुक्त राष्ट्र ने सन् 1975 में इसे मान्यता दी और वैश्विक स्तर पर यह विकसित हुआ।
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क्लारा जेटकिन
इस महिला सशक्तिकरण की सदस्य अमेरिकी महिला क्लारा ज़ेटकिन जिन्होंने इसे वैश्विक स्तर पर मनाने पर विचार किया। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस इस वर्ष 'जेंडर इक्वालिटी टुडे फॉर ए सस्टेनेबल टुमारो' अर्थात् 'एक स्थायी कल के लिए आज लैंगिक समानता' की थीम पर मनाया जाएगा।
देवी अनुसुईया
त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु व महादेव तक को वश में कर अपने विवेक से देवी अनुसुईया ने उन्हें छोटा बालक बना दिया। हिंदू धर्म की महानतम पतिव्रता महिला के नाम से विख्यात सती अनुसुईया के सतीत्व व बौद्धिक क्षमता को परखने हेतु एक दिन तीनों देव उनके पति ऋषि अत्रि की अनुपस्थिति में ऋषि रुप में उनके आश्रम पहुँचे व भिक्षा माँगने लगे। भिक्षा में निर्वस्त्र होकर स्तनपान कराने की बात सुनकर देवी अनुसुइया हैरान हुईं और योगबल से सत्यता जानकर कहा कि यदि आप तीनों शिशु के रूप में आएँ तो मैं इच्छा पूर्ण करूँगी। तीनों देव शिशु रूप में आए और उन्होंने मातृभाव से त्रिदेवों को स्तनपान कराया और पालने में सुला दिया। त्रिदेवियाँ व्याकुल होकर नारदजी समेत उनके आश्रम पहुँची और उनसे क्षमा माँगी। तब देवी अनुसुईया ने त्रिदेवों को वास्तविक रूप में लौटने का आदेश दिया। जिसके फलस्वरूप त्रिदेवों ने भगवान दत्तात्रेय नामक देवी अनुसुइया को पुत्र भेंट किया।
जनकनंदिनी सीता
प्रारम्भ से अंत तक पवित्रता और आदर्श की मिशाल श्रीराम की धर्मपत्नी सीता को सभी माता कहकर बुलाते हैं। बाल्यावस्था में सीता जी ने शिव धनुष को एक ही हाथ से उठा लिया, जिसे श्रीराम के अतिरिक्त बड़े-बड़े पराक्रमी धनुष यज्ञ में हिला भी नहीं पाए। उनके सतीत्व का प्रभाव यह है कि स्वयं रावण भी उनको छू तक नहीं पाया। माता सीता ने हाथों में मात्र एक तिनका लेकर जगत विजयी रावण को भी भयभीत कर दिया। अयोध्या से निष्कासन के पश्चात् भी उनका धैर्य और साहस कम नहीं हुआ।
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अहिल्याबाई होल्कर
मल्हारराव होल्कर की पुत्रवधु और खंडेराव की पहली पत्नी अहिल्याबाई को भारत माता की बेटी कहा जाता है। आज से लगभग तीन सौ साल पूर्व ही कुरीतियों को समाप्त कर संकट की घड़ी में भी जरूरत पड़ने पर प्रजा हित के लिए घोड़े पर सवार हो हाथ में खड्ग लेकर युद्ध भी लड़ीं। साथ ही, धार्मिक मान्यताओं, बालिका शिक्षा, महिला अधिकारों एवं औद्योगीकरण को बढ़ावा दिया और भारतीय संस्कृति का संरक्षण भी किया।
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