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Dashamata Vrat: कब है दशामता व्रत, जानिए पूजा विधि और कथा

MyJyotish Expert Updated 28 Mar 2022 07:27 PM IST
कब है दशामता व्रत, जानिए पूजा विधि और कथा
कब है दशामता व्रत, जानिए पूजा विधि और कथा - फोटो : Google
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कब है दशामता व्रत, जानिए पूजा विधि और कथा

भगवान विष्णु की पूजा सर्वसिद्धिप्रद और सुखदाई होती है। किसी भी रूप में भगवान विष्णु की पूजा की जाए, वह सर्वत्र सफलतादायक हीं होती है।घर की बिगड़ी दशा सुधारने,सुख सम्पन्नता की प्राप्ति और अन्न धन के भंडार भरे रखने के लिए भगवान विष्णु की पूजा पीपल के रूप में करने का विधान दशामाता के दिन बताया गया है।दशामाता व्रत पूजन चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि को किया जाता है।यह व्रत आपके बिगड़े ग्रहों की दशा सुधारकर सुख समृद्धि, सौभाग्य और धन संपत्ति की पूर्ति करवाता है।

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इस व्रत को दशामाता व्रत कहा जाता है।दशामाता पूजन इस वर्ष 27 मार्च 2022 रविवार को किया जाएगा।यह व्रत उत्तर भारत के अधिकांश राज्यों में किया जाता है। पश्चिम भारत के गुजरात, महाराष्ट्र आदि राज्यों के भी अनेक भागों में करने की परंपरा है।इस बार दशामाता के दिन सवार्थसिद्धि योग भी बन रहा है जो प्रातः 6.28 से दोपहर 1.32 तक रहेगा। इस समयकाल में दशामाता का पूजन सर्व कार्यों में सिद्धि प्रदान करेगा।

अधिक जानकारी के लिए आप Myjyotish के अनुभवी ज्योतिषियों से बात करें।

दशामाता पूजन विधि

दशामाता व्रत के दिन मुख्यत: विष्णु के स्वरूप पीपल वृक्ष की पूजा की जाती है। इस दिन सौभाग्यवती महिलाएं कच्चे सूत का 10 तार का डोरा बनाकर उसमें 10 गांठ लगाती है और पीपल वृक्ष की प्रदक्षिणा करते हुए उसकी पूजा करती हैं। इसके बाद परिवार के सुख समृद्धि की कामना करते हुए डोरा गले में बांधती है। घर आकर मुख्य प्रवेश द्वार के दोनो ओर हल्दी कुमकुम के छापे लगाती है।इस दिन व्रत रखा जाता है और एक समय भोजन किया जाता है।

भोजन में नमक का प्रयोग वर्जित रहता है। इस दिन प्रातः जल्दी उठकर घर की साफ सफाई करके सारा कचरा बाहर फेंक दिया जाता है।इस दिन किसी को पैसा उधार नहीं देना चाहिए। प्रयास करें किदशामाता पूजा के पूरे दिन बाजार से कोई वस्तु ना खरीदें, जरूरत का सामान एक दिन पूर्व हीं लाकर रख लें।

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दशामाता व्रत कथा:नल दमयंती की कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार एक समय राजा नल और रानी दमयंती सुखपूर्वक राज्य करते थे।उनके दो पुत्र थें। एक दिन की बात है। एक ब्राह्मणी राजमहल में आई और रानी से कहा कि दशा माता का डोरा ले लो। दासी बोली हां महारानी जी आज के दिन सभी सुहागिन महिलाएं दशा माता की पूजा और व्रत करती हैं और इस डोरे को गले में बांधती है, जिससे घर में सुख समृद्धि आती है।रानी ने वह डोरा ले लिया और विधि अनुसार पूजा करके गले में बांध लिया।कुछ दिनों बाद  राजा नल ने दमयंती के गले में डोरा बंधा देखा तो पूछा इतने आभूषण होने के बाद भी तुमने यह डोरा क्यों बांध रखा है और यह कहते हुए राजा ने डोरा गले से खींचकर निकालकर फेंक दिया।रानी ने डोरा उठाते हुए कहा कि यह दशामाता का डोरा है,आपने उसका अपमान करके अच्छा नहीं किया।

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