हिन्दू धर्म में प्रत्येक वार किसी न किसी भगवान को समर्पित हैं । बुधवार का दिन गणेश जी को समर्पित है । गणेश जी का आशीर्वाद पाने के लिए बुधवार के व्रत का बहुत महत्व है । पौराणिक मान्यताओं के हिसाब से इस व्रत की शुरुआत से लेकर अगले साथ 7 बुधवार तक साधक को व्रत करना चाहिए। आइए जानते है बुधवार की व्रत कथा।
एक बार समतापुर नामक एक नगर में मधुसूदन नाम का एक व्यक्ति था । मधुसूदन का विवाह बलरामपुर नगर की लड़की संगीता से विवाह हुआ था । मधुसूदन एक बार अपनी पत्नी संगीता को लेने बुधवार को बलरामपुर गया।
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मधुसूदन ने संगीता के माता-पिता से उसे विदा करने को कहा जिसपर संगीता के माता-पिता बोले कि आज बुधवार है और बुधवार के दिन शुभ यात्रा के लिए नहीं निकलतें। मधुसूदन नहीं माना और संगीता को अपने साथ ले जाने लगा । दोनों ने बैलगाड़ी से यात्रा शुरू की ,दो कोस दूर जाने के बाद बैल गाड़ी का एक पहिया टूट गया। वहाँ से फिर दोनों ने पैदल यात्रा प्रारंभ की । रास्ते में संगीता को प्यास लगी । मधुसूदन उसे एक वृक्ष के नीचे बैठाकर उसके लिए पानी लेने चला गया ।
थोड़ी देर बाद जब वो पानी लेकर वापस आया तो वो हक्का बक्का रह गया । उसने देखा कि संगीता के पास उसी के जैसा दिखने वाला एक आदमी बैठा हैं। संगीता भी मधुसूदन को देख कर अचंभित हो गयी । मधुसूदन ने उस आदमी से कहा तू कौन है और मेरी बीवी के पास बैठा क्या कर रहा हैं । उस आदमी ने जवाब दिया की किससे बातें कर रहें हो भाई यह मेरी बीवी हैं । मधुसूदन और वो आदमी लड़ने लगें और कुछ ही देर में वहाँ लोगों की भीड़ जमा हो गई । नगर के कुछ सिपाही वहाँ आए और दोनों को गिरफ्तार कर राजा के सामने ले गए ।
मधुसूदन ने पूरी बात राजा को बताई । राजा भी समझ नहीं पा रहे थे कैसे न्याय हो क्योंकि संगीता भी उसमें से असली मधुसूदन को नहीं पहचान पा रही थी। राजा ने दोनों को कारागार में ड़ालने को कहा जिससे असली मधुसूदन भयभीत हो गया । तभी एक आकाशवाणी हुई -मधुसूदन ! तूने संगीता के माता-पिता की बात नहीं मानी और बुधवार के दिन अपनी ससुराल से प्रस्थान किया। यह सब भगवान बुधदेव के प्रकोप से हो रहा है।'
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मधुसूदन को अपनी ग़लती का एहसास हुआ और बुधदेव से क्षमा मांगी और प्रण लिया कि आगे से वो बुधवार को यात्रा नहीं करेगा। इसके बाद राजा ने मधुसूदन और संगीता को सम्मानपुर्वक विदा किया । कुछ दूर चलने के बाद उन्हें बैलगाड़ी भी मिल गयी उसका पहिया जुड़ा हुआ था जिसपर बैठकर दोनों समतापुर पहुँचे । इसके बाद से मधुसूदन और संगीता दोनों हर बुधवार को व्रत रखने लगे और अपना जीवन आनंदपूर्वक व्यतीत करने लगें।
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