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Vaishakh Month 2022: वैशाख माह की एक परंपरा का है भगवान शिव से खास नाता

Myjyotish Expert Updated 21 Apr 2022 05:18 PM IST
वैशाख माह की एक परंपरा का है भगवान शिव से खास नाता
वैशाख माह की एक परंपरा का है भगवान शिव से खास नाता - फोटो : google
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वैशाख माह की एक परंपरा का है भगवान शिव से खास नाता


हिन्दू नववर्ष का दूसरा महीना वैशाख आरंभ हो चुका है। धर्म ग्रंथो में हर महीने से जुड़ी कुछ विशेष मान्यतायें बतायी गयी है। इसी क्रम में वैशाख माह से भी जुड़ी कुछ मान्यतायें है। जिसमे से एक परंपरा बहुत खास है। इस परंपरा का  भगवान शिव से नाता है। आज हम आपको इस परंपरा से जुड़ी जानकारी देंगे।  यदि आप भी जानना चाहते है इस परंपरा के बारे में तो पूरा लेख ध्यान से पढ़े।

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आपने भगवान शिव के ऊपर एक मटकी रखी देखी होगी जिससे बूंद बूंद पानी टपकता है। यह मटकी वैशाख मास में लगाने की परंपरा है। कुछ स्थानों पर एक मटकी लगाई जाती है, कुछ स्थानों पर एक से अधिक मटकी लगाई जाती है। इस मटकी को गलंतिका कहते है। अब जानते है उस कारण को जिसके चलते यह गलंतिका लगाई जाती है। धर्म ग्रंथो के अनुसार वैशाख का माह सबसे गर्म माह माना गया है। कहते है कि इस महीने में सबसे भीषण गर्मी पड़ती है। जिसके कारण शरीर का तापमान बढ़ जाता है और कई मौसमजन्य बीमारियों का भी सामना करना पड़ता है। ऐसी ही मान्यता भगवान शिव के लिए है जिसके कारण यह गलंतिका लगाई जाती है।

दूसरी मान्यता समुंद्र मंथन से जुड़ी है। समुंद्र मंथन के दौरान जो विष निकल था उसे भगवान शिव ने ग्रहण किया था ताकि पूरी सृष्टि को नाश से बचाया जा सके। भगवान शिव ने विष को ग्रहण कर गले मे रोक लिया था। वैशाख के माह में जब भीषण गर्मी पड़ती है तब महादेव पर भी विष का असर होने लगता है और उनके शरीर का तापमान बढ़ने लगता है। उनके तापमान को नियंत्रित करने के लिए शिवलिंग के ऊपर गलंतिका बांधी जाती है। जिससे बूंद बूंद टपकता पानी भगवान शिव को ठंडक पहुँचाता है।

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हिन्दू धर्म की हर परंपरा में कोई ना कोई निहित कारण जरूर होता है। यह परंपरा बताती है की जीवित प्राणी और पेड़ पौधों के बचने के लिए पानी सबसे जरूरी है। वैशाख के माह में सूर्य पृथ्वी के सबसे निकट होता है जिसके कारण पृथ्वी पर सूर्य का ज्यादा ताप पड़ता है। ऐसे में गलंतिका बांधने की परंपरा संदेश देती है कि इस भीषण गर्मी में पानी पीकर ही उसको नियंत्रित किया जा सकता है।

जब भगवान शिव ने विष ग्रहण कर उसको गले मे रोक लिया था तो उसके बाद उनका गला नीला पड़ गया था इसलिए भगवान शिव को नीलकंठ भी कहते है। ऋषिकेश से थोड़ी दूर मणिकूट पर्वत की घाटी पर स्थित नीलकंठ महादेव मंदिर भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर अपने आप मे अद्बुद्ध है। इस मंदिर के बाहर नक्काशियों में समुंद्र मंथन की कहानी दर्शाई गई है जो भगवान शिव के भक्तों का ध्यान अपनी और आकर्षित करती है।

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