अनोखा शिव धाम जो जमीन से 9 डिग्री है टेड़ा, वैज्ञानिक भी नही जान पायें कारण।
भारत में कई चमत्कारी और रहस्यात्मक मंदिर है। उन्ही में से एक है उत्तर प्रदेश के वाराणसी में रत्नेश्वर महादेव मंदिर। वाराणसी भारत का एक ऐसा क्षेत्र है जहां सबसे ज्यादा धार्मिक स्थल उपस्थित है। इसलिये काशी को भारत की सांस्कृतिक राजधानी भी कहा जाता है। रतनेश्वर महादेव मंदिर भगवान शिव का एक अनोखा धाम है।
जिस प्रकार इटली में पिसा की मीनार में 4 डिग्री का झुकाव है उसी प्रकार वाराणसी के रत्नेश्वर महादेव मंदिर में 9 डिग्री का झुकाव हैं। यह मंदिर पृथ्वी के क्षेतिज तल से 9 डिग्री का कोण बनाते हुए तिरछा झुका हुआ है। यह मंदिर वाराणसी शहर में मणिकर्णिका घाट के करीब दत्तोत्रय घाट के किनारे स्थित है। इस मंदिर की वास्तुकला भी अलौकिक है। लेकिन भक्त और पर्यटक इस मंदिर को पूर्ण रूप से नही देख पाते है। क्योंकि यह मंदिर अधिकतम समय पानी में डूबा रहता है। जिस कारण से यह मंदिर इतना प्रसिद्ध नही है।
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गंगा किनारे जहां सभी मंदिर घाट के ऊपर स्थिति है वही ये इकलौता ऐसा मंदिर है जो घाट के नीचे बना है। इस मंदिर का निर्माण गुजरात शैली में हुआ है। इस मंदिर की ऊँचाई 40 फीट है। जब गंगा नदी की लहर ऊपर उठती है या कहे गंगा नदी उफान पर होती है तो मंदिर का शिखर भी जलमग्न हो जाता है। वही जब गंगा का पानी उतरता है तो मंदिर के गर्भगृह में बालू और सिल्ट भर जाता है। जिस कारण से इस मंदिर में पूजा अर्चना भी बहुत कम होती है। इस मंदिर में आपको ना तो कोई घंटा देखने को मिलेगा और यहां पर भगवान को पुष्प भी अर्पित नहीं किये जाते है।
इतिहास के संबंध में बात करें तो रत्नेश्वर मंदिर का निर्माण अहिल्याबाई होलकर की दासी रत्ना बाई ने करवाया था। अहिल्याबाई ने अपने शासन काल में कई मंदिरों और घाटों का निर्माण करवाया था। उसी दौरान रत्ना बाई ने गंगा किनारे शिव मंदिर निर्माण की इच्छा जताई थी। जब इस मंदिर निर्माण के लिए अहिल्याबाई ने राशि दी थी। लेकिन वह यह नही चाहती थी कि उनके शासन काल में मंदिर का नाम उनकी दासी के नाम पर पड़े। परंतु मंदिर का निर्माण रत्ना बाई ने करवाया था इसलिए मंदिर को रत्नेश्वर महादेव मंदिर के नाम से जाना जाने लगा। इससे क्रोधित होकर अहिल्याबाई ने श्राप दिया कि इस मंदिर में कभी पूजा नही होगी। आज भी इस मंदिर में पूजा नही होती है।
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मंदिर के 9 डिग्री के झुकाव के पीछे श्राप को कारण बताया जाता है। इसके साथ और भी अन्य कथायें प्रचलित है। स्थानिय लोग बताते है कि 18वीं शताब्दी के आस पास कोई महान संत इस मंदिर पर साधना किया करते थे। एक दिन संत ने राजा से मंदिर के रखरखाव और पूजन करने की जिम्मेदारी मांगी थी। राजा ने संत को मंदिर नहीं दिया, जिससे क्रोधित महात्मा ने श्राप दिया कि - जाओ यह मंदिर कभी पूजा करने लायक नहीं रहेगा, और मंदिर टेढ़ा हो गया। ऐसी ही और भी कथायें प्रचलित है लेकिन वैज्ञानिक आज भी इस बात का कारण नही पता लगा पाये है कि इतने सालों से जल में डूबा हुआ यह मंदिर 9 डिग्री के कोण पर कैसे झुका हुआ है। इस पर सिर्फ भारतीय वैज्ञानिकों ने ही नही बल्कि विदेशी वैज्ञानिकों ने भी बहुत शोध की है। आज तक इसका कारण कोई नहीं बता पाया जिसके चलते भक्तों में इस मंदिर का महत्तव और बढ़ जाता है।
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