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Tripura Bhairavi Jayanti 2023: त्रिपुर भैरवी जयंती पर देवी पूजन से गुप्त है शत्रुओं का नाश और मिलता है विजय का सुख
मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन देवी पूजन से नकारात्मक तत्वों का नाश और सुखों की प्राप्ति होती है। गुप्त शत्रुओं का नाश करने के लिए श्रेष्ठ माना जाता है। भक्त मां भैरवी की पूजा एवं देवी कवच का पाठ, स्त्रोत, हवन एवं यज्ञ इत्यादि कार्य संपन्न होते हैं|
Tripura Bhairavi Jayanti 2023: त्रिपुर भैरवी जयंती पर देवी पूजन से गुप्त है शत्रुओं का नाश और मिलता है विजय का सुख
त्रिपुर भैरवी जयंती मार्गशीर्ष माह की पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है. नकारात्मक तत्वों का नाश करने तथा सुखों की प्राप्ति हेतु यह दिन देवी पूजन के लिए बहुत ही उत्तम माना जाता है. गुप्त शत्रुओं का नाश करने हेतु यह पूजन श्रेष्ठ माना गया है. मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा तिथि को भक्त मां भैरवी की पूजा करते हैं. इस दिन देवी कवच का पाठ, स्त्रोत, हवन एवं यज्ञ इत्यादि कार्य संपन्न होते हैं. आइये जानते हैं देवी के स्वरुप एव उनके पूजन से संबंधित विशेष बातें.
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शक्ति का स्वरुप हैं देवी जो देती हैं भक्तों को अभय वरदान
Tripura Bhairavi देवी भागवत में शक्तिपीठों की संख्या 108 और दुर्गा सप्तशती में 52 बताई गई है. इन्हीं ने माता का एक रुप त्रिपुर भैवी भी है जो तंत्र का एक विशेष मां रुप भी माना गया है. शक्ति के विभिन्न रुपों में माता का यह स्वरुप समस्त प्रकार के कष्टों को दूर करने वाला होता है. यह देवी पार्वती का तांत्रिक रूप माना जाता है. देवी भागवत में कहा गया है कि मां भगवती सदैव आशीर्वाद देने के लिए तत्पर रहती हैं त्रिपुर भैरवी जयंती मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है. हिंदू पंचांग के अनुसार, इस वर्ष यह जयंती मार्गशीर्ष माह की पूर्णिमा को मनाई जाएगी और देवी के भक्त इस दिन देवी भैरवी की पूजा करते हैं.
देवी की स्वरुप एवं कथा का महत्व
देवी तांत्रिकों को बहुत पसंद है, भगवती त्रिपुर भैरवी तंत्र शास्त्र में विशेष हैं. माता को त्रिपुर भैरवी कहा जाता है क्योंकि तीनों लोकों में माता जैसा कोई नहीं है. भक्ति के साथ साथ त्रिपुर भैरवी माता का स्थान तंत्र साधना के लिए प्रसिद्ध है. त्रिपुर भैरवी जयंती के दिन विशेष पूजा-अर्चना की जाती है. माता की कथा का संबंध देवी सती से है कथाओं के अनुसार एक बार राजा दक्ष ने एक यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें उन्होंने अपने दामाद भगवान शिव और अपनी पुत्री सती को आमंत्रित नहीं किया. माता सती यज्ञ में जाना चाहती थीं लेकिन महादेव जाने से मना कर रहे थे. इसके बाद भी सती यज्ञ में गयीं. जब सती आईं तो दक्ष ने अपनी मां की बात नहीं मानी और उनके सामने महादेव के बारे में अपमानजनक बातें कहीं. सती अपने पति के अपमान को बर्दाश्त नहीं कर सकीं और उन्होंने यज्ञ कुंड में कूदकर अपने प्राण समाप्त कर लिए.यह समाचार सुनकर महादेव ने वीरभद्र को भेजा, जिसने दक्ष का सिर काट डाला. यज्ञ विध्वंस के बाद महादेव सती के मृत शरीर को लेकर पूरे ब्रह्मांड में घूमने लगे. तब भगवान विष्णु ने महादेव की माया तोड़ने के लिए सती को सुदर्शन चक्र से कई टुकड़ों में काट दिया. जिन स्थानों पर सती के शरीर के अंग गिरे वे शक्तिपीठ कहलाये. इसी प्रकार माता का स्वरुप भी प्राप्त हुआ.
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त्रिपुर भैरवी स्त्रोत से मिलता है देवी का आशीर्वाद
॥महाकाली कवच॥
काली पूजा श्रुता नाथ भावाश्च विविधाः प्रभो .
इदानीं श्रोतु मिच्छामि कवचं पूर्व सूचितम् ॥
त्वमेव शरणं नाथ त्राहि माम् दुःख संकटात् .
सर्व दुःख प्रशमनं सर्व पाप प्रणाशनम् ॥
सर्व सिद्धि प्रदं पुण्यं कवचं परमाद्भुतम् .
अतो वै श्रोतुमिच्छामि वद मे करुणानिधे ॥
रहस्यं श्रृणु वक्ष्यामि भैरवि प्राण वल्लभे .
श्री जगन्मङ्गलं नाम कवचं मंत्र विग्रहम् ॥
पाठयित्वा धारयित्वा त्रौलोक्यं मोहयेत्क्षणात् .
नारायणोऽपि यद्धत्वा नारी भूत्वा महेश्वरम् ॥
योगिनं क्षोभमनयत् यद्धृत्वा च रघूद्वहः .
वरदीप्तां जघानैव रावणादि निशाचरान् ॥
यस्य प्रसादादीशोऽपि त्रैलोक्य विजयी प्रभुः .
धनाधिपः कुबेरोऽपि सुरेशोऽभूच्छचीपतिः .
एवं च सकला देवाः सर्वसिद्धिश्वराः प्रिये ॥
ॐ श्री जगन्मङ्गलस्याय कवचस्य ऋषिः शिवः .
छ्न्दोऽनुष्टुप् देवता च कालिका दक्षिणेरिता ॥
जगतां मोहने दुष्ट विजये भुक्तिमुक्तिषु .
यो विदाकर्षणे चैव विनियोगः प्रकीर्तितः ॥