सुंदरकांड पाठ करने की विधि, नियम लाभ, टोटके ओर आवाहन और आरती
सुंदरकांड रामचरितमानस का एक अध्याय है जो श्रद्धेय कवि गोस्वामी तुलसीदास द्वारा लिखा गया है। यह महाकाव्य रामायण का गठन करने वाले सात कांडों (वर्गों) में से एक है और यह माना जाता है कि नियमित रूप से सुंदरकांड का पाठ करने से बुराइयों को दूर करने, मार्ग में आने वाली बाधाओं को दूर करने में मदद मिलती है, और यह सुख और समृद्धि के साथ श्रेष्ठ बनती है। सुंदरकांड एक ऐसा पाठ है जिसमें भक्त की जीत का उल्लेख है।
इसमें बताया गया है कि कैसे भगवान हनुमान ने समुद्र पार किया और सीता मां को खोजने के लिए लंका की यात्रा के दौरान बाधाओं से बचे। चूँकि भगवान हनुमान सीता के बारे में जानकारी जुटाने के अपने कार्य में सफल रहे थे, इसलिए इस अध्याय में भगवान हनुमान के ज्ञान और शक्ति का भी वर्णन किया गया है। सुंदरकांड में कुछ महत्वपूर्ण जीवन पाठों का भी उल्लेख है।
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सुंदरकांड में, भगवान कहते हैं “निर्मल मन जन सो मोहे पावा, मोहे कपट छल चिद्र न भव”, जिसका अर्थ है कि स्वयं की तरह, भगवान भी उन भक्तों को पसंद करते हैं जिनके पास शुद्ध मन और महान विचार हैं।
इस पाठ को करने से न केवल मानसिक शांति मिलती है, बल्कि व्यक्ति को अपने कार्यों को करने की शक्ति और दृढ़ संकल्प मिलता है। यह आपको अपनी सभी समस्याओं से छुटकारा पाने में मदद कर सकता है, आपकी इच्छाओं को अनुदान दे सकता है और आपको प्रतिकूल ग्रहों की स्थिति के प्रभाव से बचा सकता है। प्रतिदिन नीचे दिए गए श्लोक का पाठ करने से आप अपने कष्टों से मुक्ति पा सकते हैं।
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सुन्दरकाण्ड पाठ करने की विधि ओर नियम
सुंदरकांड का नित्यप्रति पाठ करना हर प्रकार से लाभदायक होता है। इसके अनंत लाभ हैं, लेकिन यह पाठ तभी फलदायी होता है, जब निर्धारित विधि-विधानों का पालन किया जाए। सुंदरकांड का पाठ करने से पहले कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए। पाठ स्नान और स्वच्छ वस्त्र धारण करके करना चाहिए।
सुंदरकांड का पाठ सुबह या शाम के चार बजे के बाद करें, दोपहर में 12 बजे के बाद पाठ न करें। पाठ करने से पहले चौकी पर हनुमानजी की फोटो अथवा मूर्ति रखें। घी का दीया जलाएं। भोग के लिए फल, गुड़-चना, लड्डू या कोई भी मिष्ठान अर्पित करें।
पाठ के बीच में न उठें, न ही किसी से बोलें। सुंदरकांड प्रारंभ करने के पहले हनुमानजी व भगवान रामचंद्र जी का आवाहन जरूर करें। जब सुंदरकांड समाप्त हो जाए, तो भगवान को भोग लगाकर, आरती करें। तत्पश्चात उनकी विदाई भी करें।
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