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Home ›   Blogs Hindi ›   Skandamata: Mother Skandamata is worshiped on the fifth day of Navratri, know the story of Mother's incarnatio

Skandamata: नवरात्रि के पांचवें दिन होती है मां स्कंदमाता की पूजा, जानिए मां के अवतार की कथा

my jyotish expert Updated 19 Oct 2023 09:59 AM IST
Skandamata
Skandamata - फोटो : my jyotish
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नवरात्रि के समय पर स्कंद माता का पूजन संतान सुख एवं सौभाग्य को प्रदान करने वाला होता है. देवी का पूजन शारदीय नवरात्रि के पंचम दिन पर किया जाता है. पांचवें दिन देवी स्कंदमाता की पूजा द्वारा भक्तों को अपने जीवन में वंश वृद्धि एवं सुखी जीवन का आशीर्वाद मिलता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार स्कंदमाता भगवान स्कंद की माता हैं जिनके कारण माता को यह नाम प्राप्त हुआ है. स्कंद भगवान का अन्य नाम कार्तिकेय है. माता ने एक हाथ से अपने पुत्र स्कंद यानी कार्तिकेय को गोद में पकड़ रखा है तथा अन्य भुजाओं में देवी कमल के फूलों से सुशोभित हैं  

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स्कंदमाता पूजन विधि  
पौराणिक कथा के अनुसार तारकासुर नाम का एक राक्षस था, जिसका अंत शिव पुत्र के हाथों ही संभव था. तब माता पार्वती ने अपने पुत्र स्कंद को युद्ध के लिए प्रशिक्षित करने के लिए स्कंद माता का रूप धारण किया. स्कंदमाता से युद्ध की शिक्षा लेने के बाद भगवान कार्तिकेय ने तारकासुर का वध किया एवं देवताओं को निर्भय किया. इस दिन माता के पूजन हेतु घर के मंदिर या पूजा स्थान में चौकी पर स्कंदमाता की तस्वीर या मूर्ति स्थापित करनी चाहिए. पूजा का संकल्प लेकर स्कंदमाता को रोली-कुमकुम लगाएं और नैवेद्य इत्यादि अर्पित करना चाहिए. धूपबत्ती और दीपक से देवी मां की आरती करनी चाहिए तथा कथा श्रवण करना चाहिए. स्कंदमाता को नीला रंग के वस्त्र एवं पुष्प अर्पित करना बेहद शुभ माना जाता है. 

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स्कंदमाता पूजन प्रभाव 
मां दुर्गा के पांचवें स्वरूप को स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है. भगवान स्कन्द, बालक रूप में अपनी माता की गोद में बैठे हैं. इस दिन साधक का मन शुद्ध चक्र में स्थित होता है.  नवरात्रि के दौरान मंत्रों के साथ देवी का पूजन संपन्न होता है. माता का पूजन समस्त कामनाओं को पूर्ण करता है. 

शुभदास्तु सदा देवी स्कंदमाता यशस्विनी 
या देवी सर्वभूतेषु मां स्कंदमाता रूपेण संस्थिता.
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:

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स्कंदमाता का ध्यान-
वंदे वांछित कामार्थे चंद्रार्धकृतशेखराम्.
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा स्कंदमाता यशस्वनीम्.
धवलवर्णा विशुद्ध चक्रस्थितों पंचम दुर्गा त्रिनेत्रम्.
अभय पद्म युग्म करां दक्षिण उरू पुत्रधराम् भजेम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानांलकार भूषिताम्.
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल धारिणीम्॥
प्रफु्रल्ल वंदना पल्लवांधरा कांत कपोला पीन पयोधराम्.
कमनीया लावण्या चारू त्रिवली नितम्बनीम्॥

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स्कंदमाता का कवच-
ऐं बीजालिंका देवी पदयुग्मघरापरा.
हृदयं पातु सा देवी कार्तिकेययुता॥ श्री हीं हुं देवी पर्वस्या पातु सर्वदा.
सर्वाग में सदा पातु स्कन्धमाता पुत्रप्रदा॥ वाणंवपणमृते हुं फ्ट बीज समन्विता.
उत्तरस्या तथाग्नेव वारुणे नैॠ तेअवतु॥
इन्द्राणां भैरवी चैवासितांगी च संहारिणी.
 
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