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जानिए कर्मकांड के दौरान चावल, कुशा और काले तिल का क्या महत्व होता है

my jyotish expert Updated 02 Oct 2021 01:49 PM IST
shradh 2021
shradh 2021 - फोटो : google photo
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भाद्रपद या भादौ मास की पूर्णिमा से श्राद्ध पक्ष की शुरुआत हो जाती है, और अश्विन या कोंवर मास कि अमावस्या पर समाप्ति।कहते हैं पितृपक्ष के दौरान पितृ धरती पर अपने वंशजों से मिलने आते हैं व उन्हें आर्शीवाद भी प्रदान करते हैं.
पितृ पक्ष में पितरों के लिए पिंड दान , तर्पण अथवा श्राद्ध करने की परंपरा आदिकाल से चली आरही है। इसके लिए कुछ खास नियम भी बनाए गए हैं और नियमों के अनुसार श्राद्ध के समय कुशा पहनने, तर्पण के वक़्त पानी में काले तिल का उपयोग करने व पिंडदान के समय चांवल का इस्तेमाल करने का बहुत महत्व है। 
पितरों के उपकारों का ऋण उतारने वाले श्राद्ध पक्ष शुरू हो चुके हैं 16 दिनों तक चलने वाले इन दिनों को पितृ पक्ष भी कहा जाता है। माना जाता है कि इन दिनों में पूर्वज अपने वंशजों से मिलने आते हैं। इसीलिए इन दिनों पितरों के लिए तर्पण,श्राद्ध तथा पिंडदान करने की परंपरा है।
तर्पण और पिंडदान द्वारा पूर्वजों को भोजन व जलपान करवाया जाता है,तथा किसी ब्राह्मण को भोजन करा कर व श्रृद्धा पूर्वक दान देकर पितरों को तृप्त करवाया जाता है।हिन्दू धर्म के अनुसार श्राद्ध के दौरान अनामिका (ring finger) उंगली में कुशा पहनी जाती है, तर्पण के समय पानी में काले तिल डाले जाते हैं व पिंडदान के समय चावल का उपयोग किया जाता है।
ऐसा क्यों होता है आइए जानते हैं:-

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श्राद्ध करते कुशा का महत्व:-

कुशा एक विशेष प्रकार की घांस है जिसे न सिर्फ श्राद्ध में बल्कि अन्य कर्मकाण्ड के दौरान भी धारण किया जाता है, मान्यता के अनुसार कुशा घांस शीतलता व पवित्रता प्रदान करती है इसलिए इसे पवित्री घांस भी कहा जाता है। और कहा जाता है कि कुशा पहनने के बाद इंसान श्राद्ध व पूजन कार्य करने के लिए पवित्र हो जाता है। इसलिए शास्त्रों में कर्म काण्ड के दौरान कुशा घांस पहनने का जिक्र है। और चिकित्सा विज्ञान के मुताबिक अनामिका अंगुली का संबंध सीधा दिल से होता है। इसलिए अनामिका उंगली( ring finger) में कुशा पहनने से मन शांत होता है व जिससे व्यक्ति सहज रहकर श्राद्ध सहित अन्य कर्मकाण्ड को पूरा कर सकता है। 

तर्पण के दौरान जल में काले तिल का महत्व:-

श्राद्ध पक्ष के दौरान पानी के काला तिल डालकर तर्पण करने की विधि है. इसके पीछे वजह यह है कि शास्त्रों में तिल को देवान्न यानी देवताओं का अन्न कहा गया है और जल को मुक्ति के साधन के समान बताया गया है. इसके अतिरिक्त और भी मान्यताएं है कि काली तिल का एक दाना दान करने की दृष्टि से बत्तीस सेर स्वर्ण तिलों के बराबर होता है. इसलिए पानी के साथ तिल अर्पित करने से पितरों की आत्मा तृप्त होती है.

 पिंड दान के समय चावलों का महत्व:-

दरअसल चावल को अक्षत भी कहा जाता है, अर्थात वह चीज जिसकी क्षति न हो और उसके गुणों की कभी समाप्ति न हों. इसके अलावा चावलों को ठंडी प्रकृति का माना जाता है यानी ये शीतल रखने करने वाला भोजन है. इसलिए चावल के पिंड इस उद्देश्य से बनाए जाते हैं कि इससे पितरों को शांति मिले व शीतलता मिले जिससे वे लंबे समय तक तृप्त रह सकें. इसे अलावा ये भी माना जाता है कि चांवल का संबंध चंद्रमा से होता है और चंद्रमा के माध्यम से ही आपके द्वारा किया गया पिंड दान आपके पितरों तक पहुंचता है. चांवल के बिना भी पिंड दान के कई विकल्प हैं जैसे- चांवल न हो तो जौ के आटे के पिंड भी बना कर दान कर सकते हैं सकते हैं और वो भी न हो तो केले और काले तिल को मिलाकर भी पिंड बनाकर पितरों को अर्पित कर सकते हैं।



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