शनि जयंती के शुभ अवसर पर कोकिलावन शनि धाम में चढ़ाएं 11 किलों तेल और पाएं अष्टम शनि ,शनि की ढैय्या एवं साढ़े - साती के प्रकोप से छुटकारा : 22-मई-2020
शारीरिक रूप से शनि ग्रह शनि देव का प्रतिनिधित्व करता है। मृत्यु के देवता अर्थात यमराज शनिदेव के भाई हैं। शनि देव की कृपा प्राप्ति के लिए विभिन्न मार्ग प्रकाशित किए गए है। जिस में से सबसे लाभकारी माना जाता है शनि का सरसों के तेल से अभिषेक किया जाना। पौराणिक कथनों के अनुसार रामायण काल में रावण ने अपनी शक्तियों से देवताओं एवं ऋषियों को अपने महल में कैद कर लिया था। उन देवताओं में शनि देव भी शामिल थे। जब हनुमान जी द्वारा लंका को जलाया गया तो वह वहा से आज़ाद हुए। परन्तु कारावास में उल्टा लटक कर रहने के कारण उनके शरीर में बहुत पीड़ा हो रही थी। हनुमान जी ने इस पीड़ा का निवारण सोचा और शनिदेव की सरसों के तेल से मालिश की जिसके कारण शनि देव का कष्ट दूर हुआ और वह प्रसन्न हो गए।
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हनुमान जी द्वारा स्थापित इस सरसों के तेल से मालिश की प्रथा सदियों से चली आ रही है। शनि जयंती पर शनि देव को तेल अर्पण करने या तेल से उनका अभिषेक करने से वह अपने भक्तों के कष्टों का निवारण करतें है। उनके दुःख - दर्द को दूर कर जीवन की समस्त सांसारिक सुख - सुविधाओं से उनका घर भर देते है। जितनी शक्ति शनि देव के दुष्प्रभावों में है उससे बहुत अधिक शक्ति उनके द्वारा प्रदान की गई शुभ प्रभावों में होती है।शनि जयंती के दिन शनि देव के आशीर्वाद से अष्टम शनि का प्रकोप , शनि की ढैय्या और साढ़े साती के अशुभ काल का भी अंत होता है। शनि मनुष्य जीवन पर बहुत महत्वपूर्ण प्रभाव रखते है इसलिए उनका आशीर्वाद व्यक्ति के साथ होना बहुत जरुरी होता है।
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