समृद्धि और संतान की सुरक्षा के लिये करें षष्ठी व्रत
षष्ठी व्रत संतान सुख एवं सौभाग्य प्राप्ति हेतु किया जाता है. षष्ठी तिथि को देवी षष्ठी एवं कार्तिकेय भगववान से संबंधित माना गया है. षष्ठी पर्व का समय मुख्य रुप से स्त्रियां संतान प्राप्ति के लिए करती हैं ओर साथ ही संतान के खुशहाल जीवन के लिए इस दिन विशेष पूजा की जाती है. निसंतान दंपतियों के लिए यह व्रत अत्यंत शुभदायक माना जाता है. भक्तों के लिए एक शुभ दिन होता यह दिन भगवान कार्तिकेय एवं षष्ठी देवी की पूजा होती है.
इस दिन भक्त अपने भगवान को प्रसन्न करने के लिए उपवास रखते हैं और सुखी और समृद्ध जीवन के लिए उनके आशीर्वाद पाते हैं. पारंपरिक रुप से पंचांग अनुसार प्रत्येक चंद्र माह के छठे दिन, यानी शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को यह पर्व मनाया जाता है. इस प्रकार हर महीने षष्ठी तिथि का पर्व दो बार आता है. कुछ स्थानों पर कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को भगवान सुब्रह्मण्य या भगवान कार्तिकेय से जोड़ा जाता है.
षष्ठी तिथि समय मुहूर्त
षष्ठी तिथि का समय : 05 जून, सुबह 4:53 - 06 जून, सुबह 6:40 बजे तक रहेगा. यह दिन उपवास के लिए सबसे महत्वपूर्ण होता है. षष्ठी के दिन भगवान को प्रसन्न करने के लिए भक्त आंशिक या पूर्ण उपवास रखते हैं. षष्ठी व्रत सूर्योदय के समय शुरू होता है और अगले दिन सूर्य देव की पूजा करने के बाद समाप्त होता है. जो लोग व्रत रखते हैं वे पूरे 24 घंटे के उपवास के दौरान भोजन नहीं करते हैं. फल खाकर आंशिक उपवास किया जा सकता है.
जिन लोगों को स्वास्थ्य संबंधी समस्या है वे दिन में एक बार भोजन करके भी षष्ठी व्रत रख सकते हैं. षष्ठी व्रत के पालनकर्ता को दिन में कुछ मसाले खाने से प्रतिबंधित किया जाता है. मांसाहारी भोजन करना और नशे इत्यादि का सेवन सख्त वर्जित है. षष्ठी व्रत के दिन षष्ठी कथा का पाठ होता है और षष्ठी कवच का पाठ भी करते हैं. इस दिन षष्ठी देवी एवं कार्तिकेय भगवान न के मंदिरों में दर्शन करना बहुत शुभ माना जाता है
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षष्ठी व्रत का महत्व
संतान सुख की कामना सभी दंपतियों के मन में वास करती है. विवाह संस्कार ही वंश निर्माण की आधारशिला तय करता है. जीवन में संतान का होना प्रत्येक प्राणी को शक्ति एवं संतोष प्रदान करता है. ऎसे में जब कभी कोई इस सुख से वंचित रह जाए तो ये स्थिति अत्यंत पीड़ादायक बन जाती है. यदि पति-पत्नी दोनों स्वास्थ्य की दृष्टि से अच्छे हैं, फिर भी उन्हें संतान उत्पन्न नहीं हो रही है. ऐसे में संभव है कि अशुभ फल देने वाला ग्रह उन्हें इस सुख से वंचित कर रहा हो. संतान सुख प्राप्ति के लिए षष्ठी तिथि को किया जाने वाला व्रत अत्यंत उत्तम फल प्रदान करता है जिसके द्वारा निसंतान दंपत्ति अपने जीवन में संतान का सुख प्राप्त करते हैं.
ग्रह दोषों की शांति ओर संतान सुख पाने हेतु षष्ठी तिथि पर किया जाने वाला व्रत अत्यंत शुभ होता है. इस व्रत को संतान प्राप्ति, संतान की लम्बी उम्र और संतान के अच्छे सौभाग्य के लिए करने का विधान रहा है. शिवपुराण एवं स्कंद पुराण में संतान सुख प्राप्ति हेतु षष्ठी व्रत की महिमा का वर्णन भी प्राप्त होता है.
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