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Sawan2022: सावन का दूसरा सोमवार होगा और भी विशेष बन रहा है ये दुर्लभ योग

MyJyotish Expert Updated 23 Jul 2022 11:30 AM IST
सावन का दूसरा सोमवार होगा और भी विशेष बन रहा है ये दुर्लभ योग
सावन का दूसरा सोमवार होगा और भी विशेष बन रहा है ये दुर्लभ योग - फोटो : google
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सावन का दूसरा सोमवार होगा और भी विशेष बन रहा है ये दुर्लभ योग 

 

सोमवार का व्रत हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण दिन है, यह दिन भगवान शिव के पूजन को समर्पित होता है.इस दिन शिव भक्त भगवान शिव की कृपा पाने के लिए पूरे दिन उपवास करते हैं.पूरे दिन उपवास करने के बाद दिन में भोजन करना चाहिए, यानी पूरे दिन में एक बार भोजन कर सकते हैं. सावन और श्रावण मास के सोमवार के व्रत का महत्व और भी अधिक है.सावन और श्रावण का महीना भगवान शिव को बहुत प्रिय है.इस महीने में भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है.

दूसरा सावन सोमवार बनेंगे शुभ योग 

सावन का दूसरा सोमवार 25 जुलाई को पड़ रहा है. इस दिन प्रदोष व्रत भी रखा जाएगा. मान्यताओं के अनुसार प्रदोष का व्रत भगवान शिव को समर्पित है. ऐसे में सावन महीने का दूसरा सोमवार भगवान शिव के भक्तों के लिए बेहद खास होने वाला है. इसी शुभ संयोग के साथ इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग, अमृत सिद्धि और ध्रुव योग का भी संयोग होने से इस दिन के शुभ फलों में भी वृद्धि देखने को मिलेगी. इस दिन व्रत एवं मंत्र जाप द्वारा सभी मनोकामनाओं की पूर्ति संभव होगी. 

सावन के दूसरे सोमवार व्रत में पूजा कैसे करें

सोमवार के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान से निवृत्त हो जाएं.
पूरे घर में गंगा जल या पवित्र जल का छिड़काव करें.
घर में ही किसी पवित्र स्थान पर भगवान शिव की मूर्ति या चित्र स्थापित करें.
अगर आपके घर में शिवलिंग स्थापित है तो अभिषेक से पूजा शुरू करनी चाहिए.
अभिषेक के बाद बेलपत्र, दूब, कुशा, कमल, नीलकमल, जवाफूल कनेर, फूल आदि से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं.
भगवान शिव का ध्यान करें और ध्यान के बाद 'ऊँ नमः शिवाय' से शिव की पूजा करें और ऊँ ह्लीं वाग्वादिनी भगवती ममं कार्य सिद्धि कुरु कुरु फट् स्वाहा ' से पार्वती की पूजा करें. पूजा के बाद व्रत कथा सुनें.इसके बाद आरती करें और प्रसाद बांटें, ऎसा करने से जीवन में सुख एवं शांति का वास होगा. 

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सोमवार व्रत कथा

एक शहर में एक साहूकार रहता था.उसके घर में पैसों की कोई कमी नहीं थी लेकिन उसके कोई संतान नहीं थी, जिससे वह बहुत दुखी रहता था. संतान की प्राप्ति के लिए वह प्रत्येक सोमवार को भगवान शिव का व्रत किया करते थे. उनकी भक्ति देखकर माता पार्वती प्रसन्न हुई और उन्होंने भगवान शिव से साहूकार की मनोकामना पूरी करने का अनुरोध किया.पार्वती जी की इच्छा सुनकर भगवान शिव ने कहा कि "हे पार्वती.इस संसार में प्रत्येक प्राणी को उसके कर्मों के अनुसार फल मिलता है और इनके भाग्य में संतान का सुख नहीं है. माता पार्वती के अनुरोध पर शिवजी ने साहूकार को वरदान दिया लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि उनकी संतान केवल 16 वर्ष की होगी.

भगवान के वरदान से एक अति सुन्दर बालक ने जन्म लिया, जब पुत्र 12 वर्ष का हुआ तो व्यापारी ने उसे उसके मामा के साथ भेज दिया, अपने मामा के साथ शिक्षा प्राप्ति हेतु चल दिया. लम्बी यात्रा के बाद मामा-भांजे एक नगर में पहुंचे जहां नगर के राजा की कन्या का विवाह था, जिस कारण पूरे नगर को सजाया गया था. निश्चित समय पर बारात आ गई लेकिन वर का पिता अपने बेटे के एक आंख से काने होने के कारण बहुत चिंतित था. उसे भय था कि इस बात का पता चलने पर कहीं राजा विवाह से इनकार न कर दे.

जब वर के पिता ने व्यापारी के पुत्र को देखा तो उसने सोचा क्यों न इस लड़के को दूल्हा बनाकर राजकुमारी से विवाह करा दूँ. विवाह के बाद इसको धन देकर विदा कर दूंगा और राजकुमारी को अपने नगर ले जाऊंगा. वर के पिता ने लड़के के मामा से इस सम्बन्ध में बात की. मामा ने धन मिलने के लालच में बात स्वीकार कर ली. राजा ने बहुत सारा धन देकर राजकुमारी को विदा किया. शादी के बाद लड़का जब लौट रहा था तो वह सच नहीं छिपा सका और उसने राजकुमारी के ओढ़नी पर लिख दिया कि राजकुमारी, तुम्हारा विवाह मेरे साथ हुआ था, मैं तो वाराणसी पढ़ने के लिए जा रहा हूँ और अब तुम्हें जिस नवयुवक की पत्नी बनना पड़ेगा, वह काना है. जब राजकुमारी ने अपनी ओढ़नी पर लिखा हुआ पढ़ा तो उसने काने लड़के के साथ जाने से इनकार कर दिया. राजा को जब ये सब बातें पता लगीं, तो उसने राजकुमारी को महल में ही रख लिया.

जब उसकी आयु 16 वर्ष की हुई तो लड़के के प्राण-पखेड़ू उड़ गए, मामा मृत भांजे को देखकर रोने-पीटने. लड़के के मामा के रोने, विलाप करने के स्वर समीप से गुजरते हुए भगवान शिव और माता पार्वतीजी ने भी सुने. माँ पार्वती ने फिर भगवान शिव से निवेदन कर उस बालक को जीवन देने का आग्रह किया. माता पार्वती के आग्रह पर भगवान शिव ने उस लड़के को जीवित होने का वरदान दिया. शिक्षा समाप्त करके …

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