त्रिपुण्ड क्या है, कैसे और क्यों धारण किया जाता है इसे
सावन का महीना शिव को प्रिय है और इस महीने में भगवान शिव की पूजा करना फलदायी माना जाता है. आज हम आपको त्रिपुंड के बारे में जानकारी देंगे जो भगवान शिव अपने शरीर पर धारण करते हैं. भगवान शिव कई नामों और उपाधियों से जाने जाते हैं. वह क्रोध के देवता के रूप में, रुद्र हैं, जिनसे सभी से डरते हैं. कैलाशपति के रूप में, वे कैलाश के भगवान हैं, हिमालय में उनका निवास है. पुरुष के रूप में, वे स्वयं ईश्वर हैं. प्राणियों के भगवान के रूप में, उन्हें पशुपतिनाथ के रूप में जाना जाता है. उमा, देवी माँ के पति के रूप में, उन्हें उमापति या पार्वतीपति के रूप में जाना जाता है.
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पवित्र गंगा नदी के वाहक के रूप में, उन्हें गणगधर के रूप में जाना जाता है. उनके उलझे हुए बालों के कारण, उन्हें उनके तपस्वी अनुयायियों द्वारा जटाधारी के नाम से जाना जाता है. एक आदर्श प्राणी के रूप में वे सिद्धेश्वर हैं. अपने हाथों में त्रिशूल लेकर, वे निडर त्रिशूलाधारी के रूप में लोकप्रिय हैं. इन सभी में उनके शरिर पर स्थित त्रिपुण्ड एक ऎसा प्रभावशाली प्रतीक है जो समस्त सृष्टि के रहस्यों को खुद में समाए हुए दिखता है. यह ज्ञान का आधार है और जीवन के आरंभ अंत का प्रतीक भी है. त्रिपुंड के बारे में कई कथाएं मिलती हैं और साथ ही इसके महत्व का वर्णन भी पुराणों में प्राप्त होता है. यह एक असाधारण ऊर्जा का स्थान भी है जिसे जानकर सृष्टि के रहस्यों को जान पाना संभव होता है.
त्रिपुंड क्या है
शिव पुराण के अनुसार त्रिपुंडा की तीन पंक्तियों में से प्रत्येक में नौ देवता हैं. शिव पुराण के अनुसार, त्रिपुंड की पहली पंक्ति में पहला अक्षर आकार, गढ़पत्य अग्नि, पृथ्वी, धर्म, राजयोग, ऋग्वेद, क्रिया शक्ति, प्रथम सावन और महादेव शामिल हैं. साथ ही इसकी दूसरी पंक्ति में प्रणव के दूसरे अक्षर में उकार, दक्षिणाग्नि, आकाश, सत्वगुण, यजुर्वेद, मध्यानदीनसावन और महेश्वर का वास है. अंतिम और तीसरी पंक्ति में प्रणव का तीसरा अक्षर है मकर, अग्नि, परमात्मा, तमोगुण, दुलोक, ज्ञानशक्ति, सामवेद, तीर्थासन और शिव, ये नौ देवता निवास करते हैं.
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त्रिपुंड धारण करने का महत्व
त्रिपुण्ड को शरीर के 32, 16, 8 या 5 स्थानों पर लगाना अच्छा माना गया है. इसमें सिर, माथा, दोनों कान, दोनों आंखें, दोनों नथुने, मुंह, गले, दोनों हाथ, दोनों कोहनी, दोनों कलाई, हृदय, नाभि, इसके अलावा अन्य स्थानों का भी वर्णन किया गया है. इन पर आप त्रिपुंड धारण कर सकते हैं. समय की कमी के कारण यदि आप इसे इतने स्थानों पर नहीं लगा सकते हैं, तो आपको इसे माथे पर पांच स्थानों पर, दोनों हाथों, हृदय और नाभि में धारण करना चाहिए. शरीर के सभी स्थानों पर राख से तीन तिरछी रेखाएँ बनती हैं, इसे त्रिपुंड कहते हैं. भौंहों के बीच से लेकर भौंहों के सिरे तक इसे पहनना सबसे अच्छा माना जाता है. इसे धारण करने की विधि यह है कि मध्यमा, तर्जनी और अनामिका की सहायता से खींची गई रेखा त्रिपुंड कहलाती है. इसे धारण करण अभगवान शिव के प्रति स्नेह एवं भक्ति का आधार भी होता है.
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