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Sawan 2022: सावन में कांवड़ तीर्थ यात्रा से पूरे होते हैं सभी मनोरथ मिलता है भगवान का आशीर्वाद

MyJyotish Expert Updated 15 Jul 2022 10:53 AM IST
सावन में कांवड़ तीर्थ यात्रा
सावन में कांवड़ तीर्थ यात्रा - फोटो : google
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सावन में कांवड़ तीर्थ यात्रा से पूरे होते हैं सभी मनोरथ मिलता है भगवान का आशीर्वाद 


कांवड़ तीर्थयात्रा, जो सावन माह से आरंभ होती है ओर सावन शिवरतरि पर पूर्ण होती है. हिंदू पंचांग अनुसार श्रावण (सावन) माह में आरंभ होने वाली विशेष धार्मिक यात्रा है. जिसमें भगवाधारी शिव भक्त गंगा के पवित्र जल के घड़े के साथ नंगे पैर चलते हैं. कांवड़ कंधों पर उठा भक्ति ओर श्रद्धा के साथ भगवान के अभिषेक हेतु गंगा जल को एकत्रित करने की यात्रा आरंभ करते हैं तथा शिव अभिषेक के साथ इस यात्रा की समाप्ति होती है. तीर्थयात्रियों द्वारा कांवड़ में भरे जल का उपयोग किसी के गांव या शहर में महत्वपूर्ण मंदिरों में शिवलिंग की पूजा करने के लिए किया जाता है.

गंगा के आसपास के क्षेत्रों में शिव पूजा के इस रूप का विशेष महत्व है. उत्तर भारत में कांवर यात्रा के समान ही, एक अन्य महत्वपूर्ण त्योहार, जिसे कावड़ी उत्सव कहा जाता है, तमिलनाडु में मनाया जाता है जिसमें भगवान मुरगन की पूजा की जाती है. सावन माह के दौरान इस यात्रा में वृद्ध और युवा, बच्चे, महिला, पुरुष सभी भग लेते हैं. गंगा के पवित्र स्थलों जैसे गंगोत्री, गौमुख और हरिद्वार, पवित्र नदियों के संगम के स्थानों से गंगाजल एकत्रित करते हैं. इस कठिन यात्रा करने के पीछे कोई भी विचार हो सकता है जिसके मध्य में विश्वास एवं आस्था का की मजबूत डोर बंधी दिखाई देती है. 

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कांवड़ यात्रा का इतिहास 

कांवड़ अनुष्ठान की कथा समुद्र मंथन से जुड़ी है, जो हिंदू पौराणिक कथाओं अनुसार समुद्र मंथन के दौरान, कई दिव्य वस्तुएं निकलती हैं. इन सभी वस्तुओं में हलाहल अर्थात विष भी निकलता है. इस विष से जीवों को बचाने के लिए भगवान शिव इसको ग्रहण करते हैं. विष के प्रभाव से शिव का गला नीला हो जाता है जिससे उनका नाम नीलकंठ कहलाया. इस जहर का असर बहुत अधिक होता है विष के प्रभाव को कम करने के लिए सभी देवी देवता शिव को जल अर्पित करते हैं ओर इस जलन को शांत करते हैं तब से यह प्रथा शुरू हुई और आज भी भक्त भगवान को अपनी श्रद्धा अर्पित करने हेतु कांवड़ यात्रा का आरंभ करते हैं.  

कुछ स्त्रोत में कांवर यात्रा की कथा भगवान परशुराम से संबंधित भी मानी जाती है.  कथा अनुसार पहली कांवर यात्रा परशुराम द्वारा की गई थी. वर्तमान उत्तर प्रदेश में 'पुरा' नामक स्थान से गुजरते समय, उन्हें वहां एक शिव मंदिर की नींव रखने की इच्छा हुई थी. कहा जाता है कि वह श्रावण मास के प्रत्येक सोमवार को शिव की पूजा के लिए गंगाजल लाते थे तब से इस कांवड़ के आरंभ की बात कही जाती है तो कुछ रावड़ और श्री राम के युग समय से इस कांवड़ यात्रा को जोड़ते देखे जा सकते हैं. 

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कांवड के विभिन्न नाम 

कांवड़ यात्रा में कांवड़ के भी कई तरह के नाम सुनने में आते हैं जिसमें सामान्य कांवड़, खड़ी कांवड़, डाक कांवड़ झांकी कांवड़ इत्यादि प्रमुख हैं. इन सभी कांवड़ यात्रा का अर्थ भगवान के प्रति श्रद्धा को दर्शाने के साथ साथ ईष्ट का आशीर्वाद पाना भी होता है. कांवड़ यात्रा भक्त की सभी मनोकामनाओं को पूरा करने वाली तीर्थयात्रा भी होती है. 
जीवन की समस्याओं से निजात पाने एवं मनोकुल फलों को पाने हेतु कांवड़ यात्रा अवश्य करते देखे जा सकते हैं. 
 

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