सावन 2020 : बाबा बैद्यनाथ का भव्य मंदिर झारखण्ड राज्य के देवघर स्थान में स्थित है। यह महाकाल के 12 प्रमुख ज्योतिर्लिंगों में से एक है। मान्यताओं के अनुसार यहाँ आने वाले सभी भक्तों की मनोकामना सदैव पूर्ण होती है। इस वर्ष सावन का महीना 6 जुलाई से प्रारम्भ हो रहा है जो की 3 अगस्त को अंत होगा। शिव भक्तों के लिए यह स्थान बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। यह एक सिद्ध पीठ है , जिसे कामना लिंग के नाम से भी जाना जाता है। कथन के अनुसार कुछ विशेष स्थानों पर भक्तों द्वारा शिव की विशेष उपासना की गई जिसके कारण ही वह लिंग स्वरुप में सदैव के लिए वहां उपस्थित हुए। बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग शिव के उन्ही 12 स्थानों में से एक है जहां शिव भक्तों की इच्छाएं अवश्य पूर्ण होती है।
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कैसे स्थापित हुआ था शिव का बैद्यनाथ धाम ?
इस लिंग की स्थापन की कथा यह है की लंकापति राक्षस राज रावण शिव शंकर का बहुत ही बड़ा भक्त था। कहा जाता है की एक बार उसने अपनी निष्ठा और श्रद्धा भाव से महादेव को कठोर तप करके प्रसन्न कर लिया था। रावण ने यह कठोर तपस्या इसलिए की थी क्यूंकि वह चाहता था की शिव का भव्य मंदिर लंका में भी बनवाया जाए। जिसके लिए ही वह शिव को प्रसन्न करने की कोशिश कर रहा था ताकि महादेव अपने लिंग स्वरुप में लंका में भी अपना स्थान प्रस्तुत करें। महादेव रावण के तप से प्रसन्न थे साथ ही उसकी प्रार्थना को भी उन्होंने स्वीकार कर लिया था। परन्तु महाकाल की एक शर्त थी और वह यह की यदि हिमालय से लेकर लंका तक रावण ने किसी भी स्थान पर उन्हें धरती पर रखा तो वह उसी स्थान पर सदैव के लिए रह जाएंगे।
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रावण की भूल किस प्रकार बनी शिव भक्तों का आशीर्वाद ?
रावण बहुत बलशाली था और उसे अपनी शक्ति पर पूरा भरोसा था। महादेव की बातें सुनते ही उसने शर्त मंजूर कर ली। वह महादेव के लिंग स्वरुप को अपने कंधे पर उठाएं कुशलता से आगे बढ़ रहा था। इसी दौरान जब वह देवघर पंहुचा तो उसे लघुशंका के लिए मध्य में ही रुकना पड़ा। परन्तु उसे भगवान शिव की बात का ज्ञात था। इसलिए उसने एक बकरी चरने वाले को मध्य में रोका और जब तक वह वापस न लौटें लिंग को अपने कंधे पर उठाएं रखने का आग्रह किया। बकरी चरने वाला मान गया और रावण लिंग उसे सौंपकर वहां से चला गया। बकरी चरने वाले ने लिंग अपने कंधे पर उठाया ही था की उसकी बकरियां इधर - उधर भागने लगी। शर्त से अनजान उसने शिवलिंग को नीचे रखा और बकरियों के पीछे भागने लगा। जब रावण वापस लौटा तो उसने देखा की शिवलिंग नीचे रखा हुआ था। उसने अपनी पूरी ताकत से शिव लिंग को उठाने का प्रयास किया परन्तु असफल रहा। तभी से वह शिवलिंग बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना जाने लगा।यह भी पढ़े :-
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