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हमारे शास्त्रों में वर्णित कथा के अनुसार एक बार भस्मासुर नाम के राक्षस ने अपने कठिन तपो बल से , कठिन साधना करके ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया तथा उनसे वरदान की मांग की , राक्षस भस्मासुर ने वरदान स्वरूप माँगा कि वो भी अन्य देवताओं की भांति पवित्र हो जाएँ और जो भी उसके दर्शन करें वो भी पाप मुक्त हो जाए , ब्रह्मा जी ने उसे ऐसा वरदान दे दिया। इस वरदान को मिलने के बाद जो भी पाप करता वो भस्मासुर के स्थल गया जाकर उसके दर्शन करता और खुद को पाप मुक्त कर लेता।
ऐसा सिलसिला जब चलता रहा तो यह सब दृश्य देख , देवता गण चिंतित हो गए और इस समस्या के निवारण हेतु सभी देवताओं ने गयासुर {भस्मासुर } की पीठ पर यज्ञ हवन करवाने की मांग रखी। बहुत प्रयासों के बाद राक्षस गयासुर इस हवन के लिए तैयार हो गया। ऐसा कहा जाता हैं कि जब यज्ञ के लिए राक्षस भस्मासुर भूमि पर लेटा तो उसका विशालकाय शरीर पांच कोस तक फ़ैल गया , इसके बाद देवता गण ने विधि पूर्वक उसके पीठ पर यज्ञ सम्पन्न किया। इस यज्ञ के बाद देवता गण ने राक्षस भस्मासुर को वरदान दिया कि जो भी इस स्थान पर आकर श्राद्ध एवं अपने पितर को तर्पण करेगा उसके पूर्वजों को मुक्ति की प्राप्ति होगी। ऐसा कहा जाता हैं कि यज्ञ समाप्ति के बाद भगवान विष्णु ने राक्षस गयासुर के पीठ पर एक बड़ा सा शिला रख कर स्वयं उस पर खड़े हो गए थे , तब से यह स्थान और पवित्र माना जाता हैं।
गरुड़ पुराण {garud puran } में ऐसा वर्णित हैं कि मृत्यु के पश्चात , अगर उस व्यक्ति के परिजन श्राद्ध , क्रिया कर्म के लिए गया जातें हैं तो , उनका एक एक कदम उनके पूर्वजों को स्वर्ग के समीप लेकर जाता हैं। ऐसा माना जाता हैं कि गया में श्राद्ध कर्म करने से , पूर्वजों का तर्पण करने से ,मृतक को स्वर्ग की प्राप्ति होती हैं , गया में बहने वाली नदी फल्गु नदी को बहुत पवित्र माना जाता हैं।
ऐसी मान्यता हैं कि स्वयं भगवान श्री राम {Shree Ram } भी गया ही गए थे अपने पिता राजा दशरथ के मुक्ति के लिए पिंड दान करने। गया और फल्गु नदी के तट को मोक्ष स्थली के नाम से भी जाना जाता हैं। आपको बता दें कि हर वर्ष गया में पितृ पक्ष के समय 17 दिवसीय मेला आयोजित किया जाता हैं , देश के अलग अलग कोने से लोग आतें हैं अपने पूर्वजों की मुक्ति के लिए पिंड दान करने।
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