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परशुराम जयंती पर पढ़े भगवान परशुराम से जुड़ी कुछ बातें
भगवान विष्णु ने वैशाख माह की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को पृथ्वी पर अपना छठा अवतार भगवान परशुराम के रूप में लिया था। आज के दिन अक्षय तृतीया के साथ साथ परशुराम जयंती भी मनाई जाती है। भगवान परशुराम का जन्म का नाम राम था। वह भगवान शिव के परम भक्त थे और उन्होंने अपनी कठोर तपस्या से भगवान शिव को प्रसन्न किया था जिसके बाद भगवान शिव ने उन्हें कई प्रकार के अस्त्र शस्त्र प्रदान किये थे।
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जिसमें से परशु उनका मुख्य अस्त्र रहा और उन्होंने परशु धारण किया जिसके बाद उनका नाम परशुराम हुआ। भगवान परशुराम को रामभद्र, भार्गव, रघुवंशी आदि नामों से भी जाना जाता है। भगवान परशुराम का जन्म ब्राह्मण कुल में हुआ था इसलिए ब्राह्मण समुदाय के लोगों के लिए परशुराम जयंती के खास मायने हैं।
आज हम आपको भगवान परशुराम से जुड़ी एक पौराणिक कथा बताने वाले हैं। क्या आप जानते हैं कि भगवान परशुराम ने एक बार अपने पिता की आज्ञा पर अपनी माता का वध किया था और फिर उसके बाद क्या हुआ था? यदि नहीं तो आप इस कथा को ध्यान से पढ़ें
भगवान परशुराम ऋषि जमदग्नि और माता रेणुका के पांच पुत्रों में से चौथे पुत्र है। मान्यता है कि एक बार परशुराम जी की माता रेणुका से कोई अपराध हो गया था। जिससे ऋषि क्रोधित हो गए थे और उन्होंने अपने पांचों पुत्रों को अपनी माँ का वध करने के लिये आदेश दिया था। परशुराम जी बहुत ही आज्ञाकारी थे जिसके चलते उन्होंने अपने सभी भाइयों से अपनी माता का वध करने के लिए मना कर दिया और अपने पिता की आज्ञा का पालन करते हुए अपने माता का वध किया। अपने पिता की आज्ञा का पालन करता देख ऋषि अपने पुत्र परशुराम से प्रसन्न हो गए और उन्होंने उनसे तीन वर मांगने को कहा।
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परशुराम जी ने अपनी बुद्धि का परिचय देते हुए अपने तीन वरों में से अपने सबसे पहले वर का इस्तेमाल करते हुए अपने पिता से अपनी माता को दोबारा जीवित करने की मांग की और उन्होंने अपने दूसरे वर में अपने बड़े भाइयों को ठीक करने को कहा था। परशुराम जी ने अपने पिता से मिले तीसरे वर में जीवन में कभी भी पराजित न होने का आशीर्वाद मांगा था।
भगवान परशुराम ने भीष्म पितामह द्रोणाचार्य और कर्ण जैसे महारथियों को शिक्षा प्रदान की थी।
भगवान परशुराम हनुमान, अश्वत्थामा, दैत्यराज बलि, वेद व्यास, विभीषण, कृपाचार्य, मार्कण्डेय ऋषि समेत महान चिरंजीवी विभूतियों में से एक है। उन्हें राम काल और कृष्ण काल दोनों में ही देख गया है। पौराणिक कथाओं में वर्णन मिलता है कि भगवान परशुराम की तपोस्थली महेंद्रगिरि पर्वत है और वह उसी पर्वत पर कलयुग के अंत तक के लिए तपस्यारत होने के लिए चले गए थे। मान्यता है कि वे कलियुग के अंत में उपस्थित होंगे। भगवान परशुराम किसी समाज विशेष के आदर्श नहीं है बल्कि वे संपूर्ण हिंदू समाज के हैं।
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