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क्यों होता है वेदों और पुराणों में महामृत्युंजय मंत्र का इतना वर्णन? जानिए महामृत्युंजय मंत्र की उत्पत्ति की ये कहानी

My Jyotish Expert Updated 05 Aug 2021 09:48 AM IST
महामृत्युंजय मंत्र
महामृत्युंजय मंत्र - फोटो : Google
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यह तो सभी जानते हैं कि वेदों और पुराणों में महामृत्युंजय मंत्र की महिमा का बखान बहुत खूब तरीके से किया गया है। महामृत्युंजय मंत्र को बहुत ही प्रभावशाली और शक्तिशाली माना जाता है। ऐसी मान्यताएं हैं कि जो भी इंसान इस मंत्र का जप करता है या फिर उच्चारण करता है उस व्यक्ति की अकाल मृत्यु कभी नहीं होती है या उसकी अकाल मृत्यु टल जाती है। यह मंत्र बड़ी से बड़ी बीमारी से छुटकारा पाने के लिए भी उच्चारित किया जाता है। यह मंत्र हर प्रकार से किसी भी व्यक्ति की प्राणों की रक्षा करने के लिए वेदों और पुराणों में वर्णित है। इस मंत्र के जप से कोई भी व्यक्ति निरोगी बन सकता है। शास्त्रों में इस मंत्र को महामंत्र कहा जाता है। तो आइए जानते हैं कि कैसे इस महामंत्र की उत्पत्ति हमारे वेदों और पुराणों में हुई और क्यों इस मंत्र को महामंत्र की उपाधि दी गई ?

महामृत्युंजय मंत्र की उत्पत्ति:-
  • हमारे आस पास जितनी भी परंपराएं हैं उन सभी के पीछे कोई ना कोई पौराणिक कथा प्रचलित होती है। बिल्कुल उसी प्रकार महामृत्युंजय मंत्र की उत्पत्ति के लिए भी बहुत सी पौराणिक कथाएं वेदों और पुराणों में प्रचलित है। एक कथा के अनुसार, शिवजी के एक भक्त ऋषि मृकंड ने संतान की प्राप्ति के लिए भगवान शिव मतलब भोले भंडारी की बहुत ही ज्यादा तपस्या की। तपस्या से खुश होकर भगवान भोलेनाथ ने ऋषि मृकंड को उनकी इच्छा के अनुसार संतान पैदा होने का वर दे दिया लेकिन उसके साथ ही शिव जी ने ऋषि मृकंड को यह भी बताया कि उनका पुत्र अल्पायु होगा मतलब उसकी उम्र कम होगी। यह बात सुनकर ऋषि मृकंड चौंक गए और फिर से एक समस्या से गिर गए। 
  • कुछ समय के बाद शिव जी के भक्त ऋषि मृत्यु को बेटे की प्राप्ति हुई। भोलेनाथ की कृपा से ऋषि मृकण्ड को जो पुत्र प्राप्त हुआ उसका नाम मार्कंडेय रखा गया। बहुत सारे ऋषियों ने बताया कि ऋषि मृकंड संतान की उम्र सिर्फ 16 वर्ष होगी इस बात को जानकर ऋषि मृकंड दुखी हो गए। लेकिन मृकंड ने हार नहीं मानी। ऋषि मृकंड ने अपनी पत्नी को आश्वासन दिया ईश्वर की कृपा से जब उन्हें संतान की प्राप्ति हो गई है तो वही भोले भंडारी और वही ईश्वर उनके पुत्र की रक्षा भी करेंगे। क्योंकि भगवान भाग्य को भी बदलना जानते हैं। किसी भी व्यक्ति का भाग्य बदलना भगवान के लिए बहुत ही सरल कार्य है। 
  • अब जैसे-जैसे समय बीता, मार्केंडेय भी बड़े होने लगा तो उसके पिता ऋषि मृकंड ने अपने पुत्र को शिव मंत्र की दीक्षा दी। मार्केंडेय की मां अपने बेटे को बचपन से ही बढ़ते हुए देखते हुए चिंतित रहा करती थी। मार्कंडेय को भी अपनी अल्पायु होने की बात पता थी। तब मार्केंडेय ने यह फैसला लिया कि वह अपने माता-पिता की खुशी के लिए भगवान शिव को खुश करेंगे और दीर्घायु होने का वरदान प्राप्त करेंगे। 
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  • मार्कंडेय 16 वर्ष की उम्र के बहुत करीब थे तब उन्होंने शिवजी की आराधना के लिए महामृत्युंजय मंत्र की रचना की और शिव मंदिर में इसका जाप करना शुरू कर दिया जैसे जैसे समय पूरा हुआ मार्कंडेय को लेने के लिए यमदूत धरती लोक पर आए। 
  • जब यमदूत धरती लोक पर मार्केंडेय को लेने आए तब वह महाकाल के मंत्र , महामृत्युंजय मंत्र का जाप कर रहे थे और उनके अखंड जप के कारण यमदूत उनकी प्रतीक्षा करते रहे। लेकिन मार्केंडेय को छूने की न यमदूतों में हिम्मत हुई और न ही साहस, जिसके बाद वे लोग वापस लौट गए। उन्होंने यमराज को जाकर धरती लोक पर हुई पूरी घटना को विस्तार से बताया। उन्होंने यमराज को बताया कि कि वह बालक अपने अखंड जप में लगा हुआ है और हम उस तक पहुंचने का साहस नहीं कर पाए।
  • जब यमराज ने यमदूत ओ को खाली हाथ वापस लौटने पर फटकार लगाई तब यमराज खुद मार्कंडेय को लेने के लिए धरती लोक पर गए। जब मार्कंडेय के पास यमराज पहुंचे तब मार्कंडेय और जोर-जोर से महामृत्युंजय मंत्र का जप करने लगा और शिवलिंग से लिपट गया। यमराज ने मार्कंडेय को शिवलिंग से दूर करने की कोशिश की लेकिन तभी अचानक बहुत तेज समाजों से वह मंदिर कांपने लगा। बहुत तेज प्रकाश से यमराज की आंखें बंद हो गईं और जब उन्होंने आंखें खोली तब महाकाल शिवलिंग से खुद प्रकट हुए। उन्होंने अपने हाथों में त्रिशूल लेकर यमराज को डांटा और पूछा कि उनकी महाकाल के भक्त को साधना में लीन होने के समय में कहीं भी ले जाने की हिम्मत कैसे की। 
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  • महाकाल की चेतावनी के बाद स्वयं यमराज भी कांपने लगे। महाकाल का क्रोध जैसे ही शांत हुआ तो उन्होंने बोला कि मैं अपने भक्तों की साधना से बहुत खुश हूं और इसलिए मैं अपने भक्तों को दीर्घायु होने का वरदान देता हूं। उन्होंने यमराज को बताया कि वह मार्कंडेय को कहीं भी नहीं ले जा सकते हैं। जिसके बाद यमराज ने महाकाल से कहा कि वह कभी भी महामृत्युंजय मंत्र जाप करने वाले किसी भी व्यक्ति को कोई भी हानि नहीं पहुंचाएंगे और इस तरह मार्कंडेय को दीर्घायु होने का वरदान प्राप्त हुआ और महामृत्युंजय मंत्र की उत्पत्ति हुई।

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