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Home ›   Blogs Hindi ›   Navratri 2023: Know how worshiping Goddess Kushmanda brings victory to the devotees.

Navratri 2023: जानिए माँ कूष्मांडा का पूजन कैसे दिलाता है भक्तों को विजय

my jyotish expert Updated 18 Oct 2023 10:07 AM IST
maa kushmanda
maa kushmanda - फोटो : my jyotish
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मां कुष्मांडा पूजन से भक्तों को मिलता है विजय का आशीर्वाद. नवरात्रि के पूजन में देवी कुष्मांडा की भक्ति को करते हुए भक्त सिद्धियों की शक्ति में प्रवेश करता है. माता की आठ भुजाएं होने के कारण उन्हें अष्टभुजा वाली भी कहा जाता है. नवरात्रि के दौरान देवी मां के चौथे स्वरूप की पूजा की जाएगी. देवी कुष्मांडा आदिशक्ति का चौथा रूप हैं. देवी भागवत पुराण में बताया गया है कि सृष्टि की रचना से पहले जब चारों ओर अंधकार था और सृष्टि पूर्णतया शून्य थी, तब आदिशक्ति मां दुर्गा ने अंडे के रूप में ब्रह्मांड की रचना की. माता की मुस्कान एवं उनके स्वरुप का आलौक ही सभी को प्रकाशमान करता है. इसी कारण से देवी के चौथे स्वरूप को कुष्मांडा कहा गया.

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माता का ये रुप भक्तों की सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला होता है. देवी के हाथों में कमंडल, धनुष-बाण, कमल अमृत से भरा कलश, चक्र और गदा होता है. माता जप की माला धारण किए होती है. शारदीय नवरात्रि के चौथे दिन देवी कुष्मांडा की पूजा की जाती है.

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भक्तों का समस्त सुख है देवी की भक्ति में निहित 
देवी कुष्मांडा को आदिशक्ति के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि वह ब्रह्मांड की निर्माता हैं. माता ग्रहों को शुभ कर देने वाली नक्षत्रों को अपने अनुसार चलाने वाली हैं. मान्यता है कि इनकी शक्ति से साधक के सभी रोग नष्ट हो जाते हैं और व्यक्ति को शक्ति और स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है. पूजा में पान एवं मिठाई का भोग लगाना चाहिए. नवरात्रि के चौथे दिन पर माता को कुम्हड़े की बलि भी दी जाती है. यह वस्तु माता को अत्यंत प्रिय है. 

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माँ कुष्मांडा मंत्र साधना 
मां कुष्मांडा की पूजा में मंत्र साधना द्वारा शक्तियों की प्राप्ति होती है. माता को प्रणाम करते हुए इन मंत्र का ध्यान करने से देवी अत्यंत प्रसन्न होती हैं तथा भक्तों की मनोकामनाओं को पूर्ण करती हैं. 

'ऊं ऐं ह्रीं क्लीं कुष्मांडायै नम:'

ऐसे करें पूजा

या देवी सर्वभूतेषु मां कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता.
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:..

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कुष्माण्डा मंत्र 

वन्दे वांछित कामर्थे चन्द्रार्घकृत शेखराम्.
सिंहरूढ़ा अष्टभुजा कूष्माण्डा यशस्वनीम्॥
भास्वर भानु निभां अनाहत स्थितां चतुर्थ दुर्गा त्रिनेत्राम्.
कमण्डलु, चाप, बाण, पदमसुधाकलश, चक्र, गदा, जपवटीधराम्॥
पटाम्बर परिधानां कमनीयां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्.
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल, मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वदनांचारू चिबुकां कांत कपोलां तुंग कुचाम्.
कोमलांगी स्मेरमुखी श्रीकंटि निम्ननाभि नितम्बनीम्॥

स्त्रोत पाठ

दुर्गतिनाशिनी त्वंहि दरिद्रादि विनाशनीम्.
जयंदा धनदा कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
जगतमाता जगतकत्री जगदाधार रूपणीम्.
चराचरेश्वरी कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
त्रैलोक्यसुन्दरी त्वंहिदुःख शोक निवारिणीम्.
परमानन्दमयी, कूष्माण्डे प्रणमाभ्यहम्॥
 
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