खास बातें
7th to 12th Houses of Horoscope: आपकी कुंडली के सभी भाव में आपके व्यक्तित्व और भविष्य के बारे में कुछ ना कुछ बताया जाता है। इसी प्रकार से विवाह का संबंध कुंडली के इस भाव से होता है, तो चलिए जानते हैं की सातवें भाव से लेकर 12वें भाव तक कुंडली में क्या होता है।
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7th to 12th Houses of Horoscope: ज्योतिष शास्त्र में कुंडली का विशेष महत्व होता है। कुंडली के सभी 12 भाव व्यक्ति के जीवन के विभिन्न पहलुओं को दर्शाते हैं। सातवें भाव से लेकर 12वें भावों का अध्ययन करके, जातक के स्वास्थ्य, करियर, विवाह, संतान, लाभ, हानि, व्यय, शत्रु, मोक्ष आदि के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। लेकिन यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि उस भाव में कौन सा ग्रह विराजमान है। तो आइए जानते हैं कि कुंडली के सातवें भाव से बारहवें भाव का क्या अर्थ होता है।
कुंडली का सातवां भाव
कुंडली का सातवां घर मनुष्य के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण भाव होता है, क्योंकि इसी भाव से जातक के वैवाहिक जीवन और प्रेम संबंधों का पता लगाया जा सकता है। सातवें भाव का स्वामी ग्रह शुक्र होता है और कारक बुध होता है। यह भाव जीवनसाथी, दांपत्य जीवन, प्रेम, यौन सुख, सौंदर्य, कला, आदि से संबंधित होता है। कुंडली का सातवें भाव में ही विवाह का लेखा जोखा होता है।
कुंडली का आठवां भाव
कुंडली का आठवां भाव मृत्यु का भाव कहा जाता है, इस भाव का स्वामी ग्रह मंगल है और कारक ग्रह चंद्र, शनि और मंगल होते हैं। यह पुनर्जन्म का भी हिस्सा माना जाता है। यह भाव मृत्यु, अलौकिक शक्तियां, विरासत, आयु, गुप्त रोग, शोध, रहस्य, मृत्यु के बाद का जीवन आदि से संबंधित होता है।
कुंडली का नवां भाव
कुंडली के नवें भाव को भाग्य भाव भी कहा जाता है। यह बहुत ही शुभ भाव होता है, जो आपके कर्मों के परिणामस्वरूप वर्तमान जीवन में भाग्य का उदय करवाता है। साथ ही पूर्व जन्म में किए गए कार्यों का फल भी इसी भाग्य में मिलता है। इसे पितृ भाव भी कहा जाता है। इस भाव का स्वामी ग्रह गुरु होता है और कारक ग्रह भी गुरु ही होता है। यह भाव भाग्य, धर्म, गुरु, शिक्षा, पुण्य, सौभाग्य, धार्मिक अनुष्ठान आदि से संबंधित होता है।
कुंडली का दसवां भाव
जातक की कुंडली के दसवें भाव को कर्म भाव कहा जाता है। इस भाव का स्वामी ग्रह शनि होता है और कारक ग्रह भी शनि ही होता है। इस भाव को देखकर आपके करियर का पता लगाया जा सकता है। यह भाव कर्म, पदोन्नति, पिता, व्यवसाय, अधिकार, यश, मान-सम्मान, राजनीति आदि से संबंधित होता है।
कुंडली का ग्यारहवां भाव
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार एकादश भाव को लाभ भाव कहा जाता है। इस भाव का स्वामी ग्रह शनि होता है और कारक गुरु होता है। यह आपके लाभ-मुनाफे को दर्शाता है। आसान शब्दों में कहें तो वित्तीय पहलुओं के बारे में आपको बारीकी से बताता है। यह भाव लाभ, मित्र, बड़े भाई, बड़े पुत्र, आय, प्राप्ति, इच्छा पूर्ति, समृद्धि, सामाजिक कार्य, यश, सम्मान आदि से संबंधित होता है।
कुंडली का बारहवां भाव
इस भाव को व्यय भाव भी कहा जाता है। इस भाव से पता लगाया जा सकता है कि आपका खर्च किन चीजों पर हो सकता है, जैसे कि विदेश यात्रा, रोग, हानि, विदेश यात्रा आदि में होने वाले व्ययों का इस भाव से पता लगाया जा सकता है। कभी-कभी यह बर्बादी फिजूल के खर्च का भी कारण होता है। यह भाव व्यय, शत्रु, मोक्ष, विदेश यात्रा, कारावास, गुप्त रोग, क्षति, हानि, अपव्यय, ऋण आदि से संबंधित होता है।
तो इस प्रकार आप कुंडली के विभिन्न भावों के विषय में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। हालांकि ये सब इस बात पर भी निर्भर करता है कि इन भावों में कौन ग्रह हैं और इसका अध्ययन केवल ज्योतिषी ही कुशलतापूर्वक कर सकते हैं। ज्योतिषी व्यक्ति की जन्म कुंडली का विश्लेषण करके उसके जीवन के विभिन्न पहलुओं के बारे में जानकारी प्रदान कर सकते हैं।
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