जानें देश के एकमात्र दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग के दर्शन और पूजन का धार्मिक महत्व I
पृथ्वी पर भगवान शिव से जुड़े जितने भी पावन धाम हैं, उसमें आखिर कालों के काल कहलाने वाले महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का क्यों ज्यादा महत्व है? श्रावण मास में महादेव के इस मंदिर में दर्शन और पूजन का फल जानने के लिए जरूर पढ़ें ये लेख.
सावन का महीना शुरु होते ही देश के प्रमुख शिवालयों में भगवान शिव के भक्तों की भारी भीड़ लगती है. देवों के देव महादेव के देश में जितने भी मंदिर हैं, उनमें द्वादश ज्योतिर्लिंग की पूजा का बहुत ज्यादा महत्व है. भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों मे उज्जैन स्थित महाकालेश्वर एक मात्र ऐसा ज्योतिर्लिंग है जो दक्षिणमुखी है. प्राचीन सप्तपुरियों में से एक बाबा महाकाल की नगरी उज्जयिनी को संपूर्ण पृथ्वी का केंद्र बिंदु माना जाता है, मान्यता है कि यहां पर स्थित महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन मात्र से अकाल मृत्यु का भय दूर होता है. आइए कालों के काल कहलाने वाले महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के प्रकट होने की कथा और उनकी पूजा का धार्मिक महत्व के बारे में विस्तार से जाने I
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कहां पर है, महाकालेश्वर मंदिर :
भगवान महकाल का मंदिर मध्य प्रदेश के उज्जैन शहर में स्थित है. 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक भगवान शिव का यह पावन धाम सप्तप्राचीन पुरियों में से एक अवंतिका (उज्जयिनी) में स्थित है. मंदिरों की नगरी कहलाने वाले इस पावन नगरी में जाने पर आपको न सिर्फ देवों के देव महादेव यानि महाकाल के दर्शन होते हैं बल्कि यहां पर 51 शक्तिपीठ में से एक माता हरिसिद्धि के दर्शन भी होते हैं.
महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा:
पौराणिक मान्यता के अनुसार एक समय प्राचीन उज्जयिनी नगरी में एक वेद नाम का शिवभक्त ब्राह्मण रहता है, जो प्रतिदिन भगवान शिव की सच्चे मन से पूजा किया करता था. इसी नगरी के पास रत्नमान पवर्त पर दूषण नाम का राक्षस भी रहता था, जो अक्सर भगवान शिव की साधना करने वालों को परेशान किया करता था. इससे परेशान होकर ब्राह्मणों ने भगवान शिव से उनकी रक्षा करने की प्रार्थना की. मान्यता है कि भगवान शिव ने उसे ऐसा करने से पहले मना किया, लेकिन वह नहीं माना और उसने एक दिन ब्राह्मणों पर हमला कर दिया. इसके बाद भगवान शिव धरती फाड़कर प्रकट हुए और उन्होंने दूषण का वध कर दिया. मान्यता है उसके बाद अपने भक्तों की प्रार्थना पर इसी स्थान पर ज्योति स्वरूप में विराजमान हो गएl
साल में सिर्फ एक बार होते हैं नाग देवता के दर्शन :
भगवान महाकाल के मंदिर में नागदेवता का प्रसिद्ध मंदिर है, जिसके दर्शन साल में सिर्फ एक बार श्रावण मास में पड़ने वाली नाग पंचमी के दिन होते हैं. मान्यता है कि नागपंचमी के दिन नागचंद्रेश्वर के दर्शन मात्र से व्यक्ति सर्पदंश के दोष से मुक्त हो जाता है. ज्योतिष के अनुसार नागचंद्रेश्वर की पूजा से कुंडली का कालसर्प दोष भी दूर होता है और व्यक्ति को भविष्य में नाग से कभी कोई हानि नहीं होतीI
हर काम सिद्ध करती हैं हरसिद्धि देवी :
उज्जैन नगरी को सिर्फ भगवान शिव के महाकाल स्वरूप की पूजा के लिए ही नहीं बल्कि शक्ति की साधना के लिए भी जाना जाता है क्योंकि यहां पर विश्व प्रसिद्ध हरिसिद्ध माता का शक्तिपीठ भी है. पौराणिक मान्यता के अनुसार यहां पर सती की कोहनी गिरी थी. कहा जाता है कि मां हरिसिद्धि के इसी मंदिर में राजा विक्रमादित्य ने अपना 12 बार शीश काट कर चढ़ाया थाI
जन्मकुंडली ज्योतिषीय क्षेत्रों में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है
दुनिया भर में प्रसिद्ध है भस्म आरती :
भगवान शिव का यह पावन धाम न सिर्फ तमाम तरह की पूजा के लिए बल्कि यहां पर होने वाली भस्म आरती के लिए दुनिया भर में जाना जाता है. सदियों से चली आ रही भस्म आरती प्रतिदिन गाय के उपले से बनी भस्म से की जाती है. जिसे देखने के लिए प्रतिदिन लोग देश-विदेश से पहुंचते हैं.
महाकाल की पूजा का धार्मिक महत्व:
सनातन परंपरा में भगवान महाकाल की पूजा का बहुत ज्यादा महत्व है. बाबा का यह पावन धाम तंत्र-मंत्र की साधना के लिए अत्यंत ही शुभ और फलदायी माना जाता है. यही कारण है कि लोग यहां पर कुंडली के कालसर्प दोष से लेकर जीवन से जुड़ी विपत्ति को दूर करने की कामना लिए यहां पर महाकाल का विधि-विधान से पूजन और अभिषेक करते हैं , और महादेव से अपने दुखों को दूर करने की प्रार्थना करते हैंI
कब और कैसे जाएं महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग:
भगवान महाकालेश्वर के दर्शन के लिए वैसे तो आप पूरे साल में कभी भी जाकर दर्शन और पूजन करके आशीर्वाद पा सकते हैं लेकिन इस पावन नगरी में आने का सबसे अच्छा समय सितंबर से लेकर मार्च महीने तक रहता है. इस दौरान यहां पर मौसम सुहावना रहता है. बाबा की नगरी में आप सड़क, रेल और वायु मार्ग से पहुंच सकते हैं. उज्जैन शहर देश के प्रमुख रेल और सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है लेकिन यदि आप हवाई जहाज से आना चाहते हैं तो आप आपको इंदौर शहर के एयरपोर्ट पर उतरना पड़ेगा, जो कि उज्जैन से मात्र 58 किमी दूर है, और बस आप पहुंच जाएंगे जैन उज्जैन I
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