इस मंदिर की मिट्टी शरीर पर लगते ही छूमंतर हो जाते हैं गठिया और वात रोग ,जाने मंदिर की मान्यता और इतिहास l
उत्तर प्रदेश के हमीरपुर जिले में मौजूद मां भुनेश्वरी देवी के मंदिर की दूर-दूर तक ख्याति फैली हुई है. कहा जाता है कि इस मंदिर की मिट्टी को शरीर पर लगाने भर से वात से जुड़ी तमाम परेशानियां दूर हो जाती हैं l
उत्तर प्रदेश में हमीरपुर जिले में भुवनेश्वरी मां का एक मंदिर है. आसपास के इलाकों में इस मंदिर को मां भुयियां रानी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है . इस मंदिर की दूर दूर तक बहुत मान्यता है, कहा जाता है कि इस मंदिर की मिट्टी लोगों को यहां आने के लिए विवश करती है. कहा जाता है कि इस मंदिर की मिट्टी बेहद शक्तिशाली है और शरीर पर सिर्फ लगाने भर से गठिया बाय और बात जैसे अन्य रोग छूमंतर हो जाते हैं. आषाढ़ मास के रविवार के दिन यहां विशेष रूप से भक्तों का जमावड़ा लगा रहता है. यहां जानिए मंदिर से जुड़ी कुछ खास बातें l
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मिट्टी से जुड़ी है आस्था
हमीरपुर जिला मुख्यालय से महज 12 किलोमीटर ही दूर झलोखर गांव में मौजूद मां भुनेश्वरी मंदिर (भुयियां रानी) मंदिर में इन दिनों भक्तों की भारी भीड़ जुटी रहती है. मंदिर के नाम पर यहां नीम के पेड़ के नीचे एक चबूतरा बना हुआ है और चबूतरे पर कुछ मूर्तियां रखी हुई है लेकिन भक्तों की आस्था यहां की मिट्टी से जुड़ी है. यहां के लोगों का मानना यह है कि इस स्थान की मिट्टी को पूरे शरीर पर लगाने से हड्डी से जुड़े सारे लोग यहां तक कि गठिया की समस्या भी ठीक हो जाती है. वात रोग से जूझ रहे लोगों का यहां काफी जमावड़ा रहता हैl
हजारों रोगी ठीक हो चुके हैं
स्थानीय निवासी अभिषेक त्रिपाठी की मानें तो यहां से अब तक हजारों लोग ठीक हो कर जा चुके हैं. कई बार असाध्य रोग यहां कंधों पर आते हैं और ठीक होने के बाद अपने पैरों पर खुद चलकर जाते हैं. इस मंदिर में भक्तों की हर मुराद पूरी होती है और ऐसे में तमाम लोग यहां माता रानी के समक्ष अपनी मन्नतें मांगते हैं. क्या है इस मंदिर का इतिहास और कैसे होने लगे रोग दूर l
मंदिर का इतिहास
मंदिर के पुजारी संतोष प्रजापति की अगर मानें तो सैकड़ों साल पहले यह स्थान झील और झाड़ियों से भरा था. यहां एक ब्राह्मण भयंकर वात रोग से पीड़ित होकर आत्महत्या करने के लिए आया था. तो उसने देखा कि रात को एक गाय जंगल में से यहां आई और एक स्थान पर अपना सारा दूध निकाल कर चली गई . यह देखकर वह ब्राह्मण सोच में पड़ गया और कब उसकी आंख लग गई उसे पता ही नहीं चला सोते समय उसे वहां सपना आया कि, हे ब्राह्मण तुम आत्महत्या ना करो.
इस सूरजकुंड नामक तालाब में स्नान कर लो जहां पर गाय अभी-अभी अपना सारा दूध निकाल कर गई है, वहां की मिट्टी को अपने शरीर पर लगा लो इससे तुम्हारा रोग ठीक हो जाएगा . सुबह उठकर ब्राह्मण वैसा ही करता है जैसा उसे सपने में बताया गया था . इससे उसका रोग ठीक हो जाता है तब से इस मंदिर में वात रोग से पीड़ित मरीज आते हैं और यहां की मिट्टी को अपने तन पर लगाते हैं l
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आषाढ़ मास की के रविवार की विशेष मान्यता
मां भुवनेश्वरी देवी के इस मंदिर में आषाढ़ मास के रविवार की विशेष मान्यता है . आषाढ़ मास के रविवार के दिन यहां मेला लगता है और इस दिन हजारों श्रद्धालु मां भुईयां रानी के दर्शन के लिए पहुंचते हैं तमाम लोग यहां से ठीक हो कर जाते हैं. निवासी सतेंद्र अग्रवाल की मानें तो वात रोगी शनिवार को यहां आ जाते हैं और खाने पीने का सामान अपने साथ ही लेकर आते हैं. रविवार को वह भौरियां बनाकर खाते हैं वे यहां तालाब में स्नान करते हैं फिर माता के दरबार में अपनी अर्जी लगाते हैं और बाद में शरीर पर मिट्टी का लेप लगाकर वात को एक दंडी की मदद से झड़वाते हैंl यहां स्थित तालाब की मिट्टी मंदिर के चबूतरे में डाली जाती है l
मंदिर पर आज तक नहीं हो पाया छत का निर्माण : इस मंदिर की खासियत है कि यहां अब तक चबूतरे पर छत का निर्माण नहीं हो पाया है. ऐसा नहीं है कि आज तक किसी ने इस मंदिर की छत का निर्माण करवाने की कोशिश नहीं की परंतु जब कभी किसी ने छत को बनवाने की कोशिश की है तो वह छत खुद टूट गई . कहा जाता है कि बीहड़ में राज करने वाली दस्यु सुंदरी फूलन देवी भी मां की महिमा के सामने नतमस्तक थी .उसने दस्यु जीवन में यहां आकर मंदिर में घंटा चढ़ाया थाl
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