हिंदी पंचांग के अनुसार 22 अगस्त को श्रावण मास समाप्त होने वाला है। इसी के साथ हिंदी वर्ष के छठे महीने यानी भाद्रपद की शुरुआत होगी। भाद्रपद के महीने की शुरुआत होते ही श्री कृष्ण के सभी भक्त कृष्ण जन्माष्टमी की तैयारियों में लग जाते हैं और सभी के मन में सिर्फ श्री कृष्ण का नाम होता है। इस वर्ष कृष्ण जन्माष्टमी 30 अगस्त को मनाई जाने वाली है। इस अवसर पर हमने सोचा क्यों ना आपको भी श्री कृष्ण से जुड़ी कुछ बातें बताई जाएं।
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तो आज हम बात करेंगे श्री कृष्ण की पत्नियों के विषय में। क्या आपको पता है ऐसा कहा जाता है कि भगवान श्री कृष्ण की 16, 108 पत्नियां थीं? जी हां! इस बहुत ही प्रचलित मान्यता है। मगर इतनी सारी पत्नियां कैसे? इसके पीछे एक विशेष कहानी है जिसे कई लोगों ने अपनी अपनी मान्यताओं के अनुसार कई रूप दिए हैं। इनमें से जो कथा सत्य के सबसे निकट मानी जाती है आज हम आपको उसी कथा के बारे में बताएंगे। तो आइए जानते हैं क्या श्री कृष्ण की 16,108 पत्नियों के पीछे आखिर क्या राज़ है।
भगवान श्री कृष्ण की मुख्य रूप से केवल 8 पत्नियां मानी जाती हैं। इनमें देवी रुक्मणि, देवी जांबवंती, देवी सत्यभामा, देवी कालिंदी, देवी मित्रबिंदा, देवी सत्या, देवी भद्रा तथा देवी लक्ष्मणा शामिल हैं। इन सभी से श्री कृष्ण का विवाह परिस्थितियों की मांग की वजह से हुआ था। इन आठों को श्री कृष्ण ने पूर्ण रूप से अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया था। श्री कृष्ण इन सभी के साथ द्वारिका नगरी में रहते थें।
एक दिन देवराज इंद्र एक याचना लेकर भगवान श्री कृष्ण के पास आएं। उन्होंने श्री कृष्ण को बताया कि प्रागज्योतिषपुर के राजा यानी दैत्य भौमासुर ने सभी देवों को परेशान कर रखा है। भौमसुर ने देवताओं की मणि, कुंडल, आदि चीज़ें छीन ली हैं और तीनों लोकों में त्राहि-त्राहि मचा दी है। इसके अतिरिक्त उन्होंने श्री कृष्ण को ये भी बताया कि भौमासुर ने पृथ्वीलोक कि कई सारी कन्याओं का अपहरण कर लिया है और उन्हें अपने पास बंदी बनाकर रखा है। ये सब बताते हुए देवराज इन्द्र ने श्री कृष्ण से प्रार्थना की कि वे सभी को इस कष्ट और अन्याय से मुक्त करें।
श्री कृष्ण ने देवराज इन्द्र की याचना को स्वीकार किया। दैत्य भौमासुर को ये श्राप था कि उसकी मृत्यु किसी नारी के हाथों से ही होगी। इसलिए भगवान श्री कृष्ण अपनी पत्नी देवी सत्यभामा के साथ प्रागज्योतिषपुर की ओर प्रस्थान कर गए। वहां पहुंचते ही सर्वप्रथम श्री कृष्ण और देवी सत्यभामा ने मिलकर मुर दैत्य तथा उनके छः पुत्रों का वध किया। ये सुनकर भौमासुर अत्यंत क्रोधित हुआ और अपनी सेना लेकर युद्ध के लिए आ गया। देवी सत्यभामा श्री कृष्ण के साथ उनकी सारथी के रूप में गई थीं और अंत में उनके हाथों ही भौमासुर का विनाश हुआ।
दैत्य भौमासुर के वध के पश्चात श्रीकृष्ण ने उनके पुत्र भगदत्त को प्रागज्योतिषपुर का राजा घोषित कर दिया। भौमासुर ने अपनी बंदीगृह में कुल 16,100 कन्याओं को बंदी बनाकर रखा हुआ था। उसके वध के बाद श्री कृष्ण ने इन सभी को आज़ाद कर दिया। अपितु एक बड़ी समस्या इन सभी के समक्ष आ खड़ी हुई। ये सब इतने समय तक भौमासुर द्वारा बंदी बनाकर रखी गई थीं और प्रताड़ित की गई थीं। इस कारण इन्हें कोई भी अपनाने को तैयार नहीं था। ये देखकर श्री कृष्ण ने इन सभी को आश्रय दिया और सभी को अपने साथ द्वारिका लेकर चले गए। वहां ये सभी कन्याएं खुशी से अपना जीवन व्यतीत करने लगीं। ये द्वारका में श्री कृष्ण के महल में ना रहकर नगर में आम प्रजा की भांति रहती थीं। श्री कृष्ण के अलावा अब इनका अपना कोई नहीं था इसलिए इन सभी में श्री कृष्ण को ही अपने मन से अपना पति मान लिया था।
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