इस मंदिर के बारे में सब लोगों इसलिए भी जानते हैं क्योंकि इस पर एक फिल्म भी बन चुकी है जून २०१३ के दौरान भारत के उत्तराखण्ड और हिमाचल प्रदेश राज्यों में अचानक आई बाढ़ और भूस्खलन के कारण केदारनाथ सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र रहा।
पौराणिक कथा:
पांडवों के महाभारत के युद्ध में विजयी होने के बाद भाइयों की हत्या से पाप से मुक्ति पाना चाहते थे। इसके लिए उन्हें भगवान शंकर का आशीर्वाद चाहिए थे। शिव शंकर के दर्शन हेतू पांडवों ने काशी की तरफ कूच किया। लेकिन शंकर जी उन्हें नहीं मिले। इसके बाद पांडव उन्हें ढूंढते हुए हिमालय पहुंच गए। लेकिन भगवान शंकर पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे। ऐसे में वो अंतध्र्यान होकर केदार में बस गए। लेकिन पांडवों ने भी शंकर जी का पीछा केदार तक किया। क्योंकि वो सभी मन के पक्के थे।
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पांडवों के पहुंचने के बाद भगवान शंकर ने बैल का रूप ले लिया और बाकी पशुओं के साथ शामिल हो गए। इस पर पांडवों को कुछ शक हुआ। अत: भीम ने अपना विशाल रूप धारण किया। फिर अपने पैरों को दो पहाड़ों के बीच में फैला लिया। सभी गाय-बैल उनके नीचे से निकल गए लेकिन शिव जी बैल के रूप में उनके नीचे से निकलने को तैयार नहीं थे। फिर भी पूरी ताकत के साथ बैल पर झपटे लेकिन बैल यानी शिव शंकर भूमि में अंतध्र्यान होने लगे। फिर भीम ने बैल की पीठ का त्रिकोण हिस्सा पकड़ लिया। इससे भगवान शंकर बेहद प्रसन्न हुए क्योंकि पांडवों में भक्ती और दृढ़ संकल्प साफ नजर आ रहा था। इसके बाद शिवजी ने पांडवों को दर्शन देकर पाप से मुक्त किया। तब से शंकर जी बैल की पीठ की आकृति-पिंड के रूप में श्री केदारनाथ में पूजे जाते हैं।
एक मान्यता है कि सच्चे मन जो भी बाबा केदारनाथ का स्मरण करता है उसकी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. सावन के महीने में केदारानाथ के दर्शन बहुत ही शुभ माने जाते हैं.
समय सारणी:
दर्शन का समय- प्रातः 6:00 बजे खुलता है, विशेष पूजा 3:00 से 6:00 बजे होती है
पूरा शाम 5:00 बजे द्वार खोले जाते हैं पूजा के लिए, पांच मुख वाले भगवान शिव की आरती 7:30 से 8:30 बजे तक होती है, 8:30 बजे मंदिर बंद कर दिया जाता है
पूजा का क्रम:
भगवान की पूजाओं के क्रम में प्रात:कालिक पूजा, महाभिषेक पूजा, अभिषेक, लघु रुद्राभिषेक, षोडशोपचार पूजन, अष्टोपचार पूजन, सम्पूर्ण आरती, पाण्डव पूजा, गणेश पूजा, श्री भैरव पूजा, पार्वती जी की पूजा, शिव सहस्त्रनाम आदि प्रमुख हैं।
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