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कोकिला व्रत पूजा विधि
कोकिला व्रत के दिन शुचिता एवं शुभता का विशेष ध्यान रखना चाहिए. किसी भी प्रकार की अशुद्धि व्रत और पूजा का फल नही दे पाती है, इसलिए इन बातों का ध्यान रखते हुए पूजा से जुड़े सभी कर्मों को करना चाहिए . ब्रह्ममुहूर्त में उठ कर व्रत पूजा का आरंभ करना चाहिए. सूर्य को अर्घ्य देना चाहिए. आदिदेव शिव और पार्वती जी की स्थापना करके पूजा करनी चाहिए. पूजा में लाल रंग के पुष्प जनेऊ, माता के लिए चुनरी इत्यादि वस्तुओं को एकत्रित करना चाहिए. फल फूल मेवों एवं गंध, धुप, दीप इत्यादि से पूजा अर्चन संपन्न करना चाहिए और भगवान के भोग को सभी में वितरित करना चाहिए. व्रत का संकल्प करना चाहिए और संध्या समय पुन: पूजन करके फलाहार का सेवन करना चाहिए. कोकिला व्रत का पावन दिन सभी के जीवन में सुख और समृद्धि को देने वाला होता है.
भगवान शिव का पूजन :
कोकिला व्रत के दिन महादेव शिव क अपूजन होता है. इस दिन प्रात:काल उठकर श्रद्धा भाव द्वारा इस दिन का आरंभ करना चाहिए. प्रात:काल उठ कर स्नान इत्यादि से निवृत होकर भगवान का स्मरण किया जाता है. शिवलिंग पर जलाभिषेक किया जाता है. इस दिन पवित्र नदियों में स्नान दर्शन की परंपरा भी बहुत प्राचीन है. यदि इन स्थानों पर जाना नहीं हो पाए तो घर के समीप किसी पोखर या घर पर ही स्नान कार्य को पूर्ण किया जा सकता है और भगवान का भक्ति भाव शिव व माता पार्वती का भक्ति भाव के साथ पूजन एवं व्रत इत्यादि किया जा सकता है.
जिस प्रकार तीज इत्यादि का व्रत सौभाग्य का वरदान बनता है उसी प्रकार यह कोकिला व्रत भी अपने महत्व को पूर्ण रुप से दर्शाता है. यह व्रत दांपत्य जीवन में सुख को बढ़ाता है विवाह इत्यादि से जुड़ी समस्याओं को दूर करता है और वैवाहिक जीवन का सुख देता है. इसलिए इस दिन किया गया पूजा पाठ दांपत्य जीवन के लिए अत्यंत ही महत्पूर्ण माना गया है.
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