जानें जगन्नाथ पूरी रथ यात्रा का महत्व, 2022 में कब होगी यात्रा
भगवान जगन्नाथ पूरी रथ यात्रा की महिमा भारत वर्ष में एक पर्व के रूप में देखि जाती है। इस वर्ष 2022 में पूरी रथयात्रा अषाढ़ माह (जुलाई महीने) के शुक्त पक्ष के दुसरे दिन01 जुलाई 2022 शुक्रवार के दिन निकाली जाएगी। यूं तो भारत वर्ष में बहुत से मंदिर प्रसिद्ध हैं। बहुत सी प्रतिमाएं प्रसिद्ध हैं। हमारे धर्म शास्त्रों के अनुसार यह हमारे लिए सौभाग्य की बात है कि हम प्रभु की कृपा के कारण उनके दिव्य मंदिरों से जुड़े हुए हैं। भारतवर्ष में मंदिरों की प्रतिष्ठा कभी कम नहीं होगी ऐसा तीनों कालों में निहित रहेगा। ऐसी मान्यताएं हमारे धर्म शास्त्रों में ऋषि-मुनियों ने पहले ही तय कर दी थी। दोस्तों आज हम जिस प्रतिमा की बात करने जा रहे हैं।
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वह कोई साधारण प्रतिमान नहीं है। उसकी दिव्यता की छवि आज पूरे भारतवर्ष में ही नहीं पूरे विश्व भर में विख्यात हैं। जी हां हम बात कर रहे हैं। उड़ीसा के पुरी में बसने वाले भगवान जगन्नाथ की। भगवान जगन्नाथ की प्रतिमा अपने आप में एक अलग ही पहचान सकती है। जब भी भगवान जगन्नाथ का नाम लिया जाता है। तो इनकी प्रतिमा का ध्यान जरूर आता है और यह प्रश्न भी उठता है कि आखिर भगवान जगन्नाथ की प्रतिमा इतनी विकृत क्यों है? यह प्रश्न तो आपके मन में भी उठ रहा होगा कि आखिर भगवान जगन्नाथ की प्रतिमा का रहस्य क्या है?
दोस्तों, आज इस आर्टिकल में आप भगवान जगन्नाथ की प्रतिमा के रहस्य के साथ-साथ पूरी में होने वाली जगन्नाथ यात्रा का विस्तार से विवरण इस लेख में जाने वाले हैं। अतः आपसे निवेदन है किआस्था के साथ इस लेख को ध्यानपूर्वक पढ़ें। आइए जानते हैं, भगवान जगन्नाथ के बारे में विशेष तथ्यऔर जगन्नाथ पूरी रथ यात्रा के सन्दर्भ में ।
जगन्नाथ पूरी रथ यात्रा 2022 कब है और क्यों निकली जाती है
दोस्तों, ओडिशा के पुरी में 21 दिन चलने वाली चंदन यात्रा, नरेंद्र सरोवर से पहले ही शुरू हो गई है। इस यात्रा के साथ-साथ भगवान जगन्नाथ की यात्रा के रथ भी सुसज्जित होना शुरू हो चुके हैं। आपको बता दें जगन्नाथ रथ यात्रा के रथ 10 दिन पहले ही सजने सवरने शुरू हो चुके हैं। दोस्तों इस बार भगवान जगन्नाथ पूरी की रथ यात्रा अषाढ़ माह (जुलाई महीने) के शुक्त पक्ष के दुसरे दिन 12 जुलाई 2022 को भव्य आयोजन के साथ निकालने की यथासंभव कोशिश रहेगी। क्योंकि गत वर्ष कोरोना काल के चलते कुछ पुजारियों और कार्यकर्ताओं ने ही विश्व प्रसिद्ध पूरी यात्रा को संपन्न किया था। अगर कोरोना काल का संकट इसी तरह रहा तो शायद इस बार भी कुछ ऐसा ही हो।
हो सकता है इस बार भी भगवान जगन्नाथ बिना भक्तों के ही यात्रा करें। दोस्तों आपको बता दें जो भी भगवान जगन्नाथ पूरी रथ यात्रा में शामिल होते हैं। उनकी आस्था विश्वास और दृढ़ता इतनी मजबूत होती है। कि उन्हें कभी निराशा जीवन में दिखाई ही नहीं देती। ऐसे दिव्य क्षण में भक्तों का उपस्थित होना बहुत दुर्लभ है। परन्तु आस्था की शक्ति के आगे ईश्वर खुद मजबूर हो जाते है।
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जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा की विशेषता क्या है ?
दोस्तों, भगवान जगन्नाथ अर्थात भगवान श्री कृष्ण की प्रतिमा ही जगन्नाथ के नाम से विख्यात है। इस यात्रा में बलराम, श्रीकृष्ण और सुभद्रा के लिए, तीन अलग-अलग रथ निर्मित किए जाते हैं। इस यात्रा की विशेष बात यह है कि सबसे आगे भगवान श्री कृष्ण के दाऊ अर्थात बलराम का रथ होता है। बीच में बहन सुभद्रा का और अंत में जगन्नाथ अर्थात भगवान श्री कृष्ण का रथ होता है। इनकी मूर्तियों और रंग की पहचान इतनी आकर्षक है कि इन्हें देखते ही पहचान लिया जाता है। कि कौन सा रथ भगवान जगन्नाथ का है। अर्थात भगवान जगन्नाथ की प्रतिमा विशाल होने के कारण दूर से ही बड़ी दिखाई देती है।
इस रथ यात्रा में महत्वपूर्ण तथ्य यह है की भगवान जगन्नाथ का नंदीघोष रथ 45.6 फीट ऊंचा, बलरामजी का तालध्वज रथ 45 फीट ऊंचा और देवी सुभद्रा का दर्पदलन रथ 44.6 फीट ऊंचा होता है। बलरामजी के रथ को ‘तालध्वज’ कहते हैं, जिसका रंग लाल और हरा होता है। और बीच में चलने वाले सुभद्रा का रथ ‘दर्पदलन’ या ‘पद्म रथ’ के नाम से विख्यात है। तथा भगवान जगन्नाथ के रथ को ‘ नंदीघोष’ या ‘गरुड़ध्वज’ कहते हैं। इसका रंग लाल और पीला होता है।
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