कबीर जयंती - जीवन की सही राह दिखाते हैं कबीर के ये दोहे
संत कबीर जयंती ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा के दिन संपूर्ण भारतवर्ष में श्रद्ध एवं उत्साह के साथ मनाई जाती है. संत कबीर दास की जयंती इस वर्ष 14 जून 2022 को मंगलवर के दिन मनाई जाएगी. संत कबीर जो एक प्रसिद्ध कवि, संत और समाज सुधारक थे और 15 वीं शताब्दी के पास इनके विचारों की गहन छाप इतिहास में देखने को मिलती है. यह दिन न केवल भारत में बल्कि अन्य देशों में भी सभी वर्गों के लोगों द्वारा मनाया जाता है. कबीर दास की महान कविताएँ और रचनाएँ 'सर्वोच्च होने' की सुसंगतता और विशालता को दर्शाती हैं. पूरे देश में कबीरदास के अनुयायी उनकी स्मृति में कई प्रकार के कार्यक्रमों का आयोजन भी करते हैं.
आज के दिन बहुत से लोग उनके द्वारा लिखी गई महान कविताओं को पढ़ना पसंद करते हैं. इस दिन उनके अनुयायियों को उनकी महान शिक्षाओं के महत्व को समझाने के लिए संगोष्ठियों का आयोजन किया जाएगा. उनके अनुयायी मानते हैं कि कबीरदास आज भी सभी के लिए प्रासांगिक बनी रही हैं. इस महान कवि की जन्मस्थली वाराणसी शहर इस दिन को भव्यता से मनाता है. इस दिन, देश के कई क्षेत्रों में कबीर के मंदिरों में बेहतर उत्सव मना सकते हैं. उनकी कविताओं को पढ़ने के लिए स्कूल और कॉलेज छात्रों के लिए एक मंच तैयार किए जाते हैं और प्रतियोगिताओं का आयोजन भी होता है.
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गुरु कबीर दास जयंती का महत्व
संत कबीर दास का सभी धर्मों पर समान रूप से विश्वास रहा. भक्ति आंदोलन उनके कार्यों से अत्यधिक प्रभावित था. उनके कुछ प्रसिद्ध लेखन में अनुराग सागर, कबीर ग्रंथावली, बीजक, सखी ग्रंथ आदि शामिल हैं. उन्होंने 'कबीर पंथ' नामक एक आध्यात्मिक समुदाय की स्थापना की. आज, इस समुदाय के अनुयायियों की एक बड़ी संख्या विश्वभर में मौजूद है.
कबीर दास ने जीवन के सही अर्थ को लिखने और व्यक्त करने के लिए एक बहुत ही सरल भाषा का इस्तेमाल किया. दोहे लिखने के लिए हिंदी का प्रयोग किया जाता था, जो समझने में आसान होते हैं. उनके द्वारा लिखे गए दोहे केवल कला का एक नमूना नहीं हैं. वे जनता के लिए जीवन के महान विचारक भी थे उनके समय के लोगों ने उनकी वाणी कथन को सहर्ष स्वीकार किया. उन्होंने लोगों में जागरूकता फैलाने के साधन के रूप में दोहा लिखना शुरू किया. उनकी कविताओं और दोहों को स्कूल स्तर के पाठ्यक्रम में अपनाया गया है.
ऐसी वाणी बोलिए मन का आप खोये
औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए
भावा - कबीर जी कहते हैं कि इंसान को ऐसी भाषा बोलनी चाहिए जो सुनने वाले के मन को बहुत अच्छी लगे. ऐसी भाषा दूसरे लोगों को तो सुख पहुँचाती ही है, इसके साथ खुद को भी बड़े आनंद का अनुभव प्रदान करती है.
निंदक नियेरे राखिये, आँगन कुटी छावायें
बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुहाए
भाव - कबीर अनुसार निंदक अर्थात बुराई करने वाले लोगों को भी अपने साथ रखना चाहिए, क्यूंकि ऐसे लोग अगर आपके पास रहेंगे तो आपकी बुराइयाँ आपको बताते रहेंगे और आप आसानी से अपनी गलतियां सुधार सकते हैं. निंदक लोग इंसान का स्वभाव शीतल बना देते हैं.
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बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय
जो मन देखा आपना, मुझ से बुरा न कोय
भाव - कबीर दास कहते हैं मैं दूसरों की बुराइयां देखने में लगा रहा लेकिन जब मैंने खुद अपने भीतर झाँक कर देखा तो पाया कि मुझसे बुरा कोई नहीं है. हम लोग दूसरों की बुराइयां बहुत देखते हैं लेकिन अगर हम अपने मन के भीतर झाँक कर देखें तो पाएंगे कि हमसे बुरा कोई इंसान नहीं है.
गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागूं पाँय
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो मिलाय
भाव - कबीर जी ने गुरु के संदर्भ अत्यंत ही सुंदर वर्णन किया है इस दोहे में कहते हैं कि अगर हमारे सामने गुरु और भगवान दोनों एक साथ खड़े हों तो, किसे पहले नमन किया जाए ऎसे में वह कहते हैं कि गुरु ने अपने ज्ञान से ही हमें भगवान से मिलने का रास्ता बताया है इसलिए गुरु की महिमा भगवान से भी ऊपर है और गुरु के चरण स्पर्श एवं नमन सर्वप्रथम करने चाहिए.