ज्येष्ठ पूर्णिमा व्रत का महत्व और लाभ
जेय्ष्ठ माह की पूर्णिमा तिथि को ज्येष्ठ पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है. पूर्णिमा का दिन हिंदू चंद्र माह के पहले शुक्ल पक्ष में होता है. शुक्ल पक्ष का अंतिम दिन पूर्णिमा का दिन होता है जब चंद्रमा अपने चरम पर होता है और इस दिन का बहुत महत्व रहा है. पूर्णिमा के दौरान, भक्त व्रत करते हैं. भक्त पूर्णिमा के दिन या पूर्णिमा से एक दिन पहले उपवास रखते हैं, श्री विष्णु की पूजा करने और प्रसादुअर्पित करने के पश्चात व्रत संपन्न होता है.
14 जून, मंगलवार पूर्णिमा व्रत तिथि और पूजा का समय
पूर्णिमा तिथि का समय 14 जून, 12:00 पूर्वाह्न - 14 जून, 05:21 अपराह्न तक व्याप्त रहेगी.
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ज्येष्ठ पूर्णिमा व्रत
ज्येष्ठ पूर्णिमा व्रत अत्यंत पवित्र समय माना जाता है क्योंकि मानना इस दिन किया जाने वाला पूजन व्रत जीवन में सौभाग्य और उत्तम स्वास्थ्य लाता है. इस समय के दौरान विशेष रूप से भगवान विष्णु एवं चंद्र देव की पूजा की जाती है. भगवान विष्णु के लिए विशिष्ट पूजा को सत्य नारायण पूजा के रूप में भी जाना जाता है. वैसे तो सत्य नारायण पूजा किसी भी दिन की जा सकती है, लेकिन ऐसा माना जाता है कि पूर्णिमा के दौरान इसे करने से सभी पर भगवान विष्णु के अवतार नारायण की कृपा होती है. ज्येष्ठ पूर्णिमा व्रत का पालन करने से कई स्वास्थ्य लाभ भी मिलते हैं. पूर्णिमा के दिन, शरीर और मन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है.
इस दिन, भक्त एक दिन का व्रत धारण करते हैं और सुखी जीवन प्राप्ति हेतु भगवान विष्णु और भगवान शिव दोनों की पूजा करते हैं. इस दिन को वट पूर्णिमा भी मनाया जाता है और वट सावित्री व्रत भी मनाया जाता है. वट पूर्णिमा हिंदू महिलाओं द्वारा मनाए जाने वाले सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है, खासकर जो विवाहित होती हैं. विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और लंबी उम्र के लिए वट पूर्णिमा व्रत रखती हैं.
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ज्येष्ठ पूर्णिमा का हिंदू धर्म में बहुत महत्व है, ऐसा माना जाता है कि इस दौरान पृथ्वी पर गर्मी की अधिकता होती है और कई नदियां सूख भी जाती हैं या उनका जल स्तर कम हो जाता है. इसलिए इस काल में मनाये जाने वाले त्यौहार हमें जल के महत्व के बारे में बताते हैं. ऐसा माना जाता है कि इस दिन पवित्र नदियों में डुबकी लगाने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. इस दिन पर विशेष रुप से जल का दान भी किया जाता है. जल लोगों को पिलाया जाता है.