श्री लक्ष्मी नारायण कथा के अनुसार एक बार जब दोनों की महत्ता में से किसकी महत्ता अधिक है, इस बात पर बहस बढ़ जाती है। तब भगवान नारायण इस तथ्य को समझाने के लिए एक परीक्षा का आयोजन करते हैं। आयोजन अनुसार भगवान नारायण ब्राह्मण का भेष बना कर एक गाँव में जाते हैं तथा वहां के मुखिया से कहते हैं की वह इस स्थान पर श्री नारायण का पूजन करना चाहते है।
मुखिया उनकी बात मान कर उन्हें एक निवास स्थान देते हैं,साथ ही उनके लिए कथा के स्थान का भी बंदोबस्त भी करता है। गांव के सभी लोग कथा मे प्रतिदिन शामिल होने लगते हैं, ऎसे देख मां लक्ष्मी जी अपनी स्थिति को नजरअंदाज होते देखती हैं तो वो भी भेष बदल कर एक वृद्ध स्त्री के रुप में वहां पहुंच जाती है। एक स्त्री जो कथा में जाने के लिए घर से निकल ही रही होती है, माता उससे पानी मांगती हैं, वो स्त्री उन्हें पानी पीने को देती है। परंतु, जैसे ही वृद्ध स्त्री(माता लक्षमी)उसे उसका बरतन वापिस करती हैं तो वह बरतन स्वर्ण धातु का हो जाता है।
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इस चमत्कार को देख कर स्त्री गांव के सभी लोगों को इस चमत्कार के बारे में बताती है। सुनकर सभी लोग कथा से उठ कर उस चमत्कार को देखने के लिए चले जाते हैं। धन के लोभ का इस स्वरुप को देखकर नारायण उस स्थान से चले जाने के लिए प्रस्थान करते हैं, तभी माता लक्ष्मी वहां आकर श्री नारायण को अपनी महत्ता स्वीकार करने की बात कहती हैं। भगवान नारायण मान जाते हैं की लक्ष्मी उनसे अधिक महत्व रखती हैं,एंव वहां से चले जाते हैं। मां लक्ष्मी उनके जाने से दुखी होकर जाने लगती हैं, माता लक्ष्मी को जाते देख गांव के लोग उन्हें रोकने लगते हैं। तब मां गांव के लोगो से कहती हैं की जहां नारायण कथा पूजन का वास नहीं होता है, वहां मेरा भी कोई स्थान नही हो सकता है। जिस स्थान पर लक्ष्मी और नारायण दोनों का पूजन होगा वहीं मैं स्थापित होगी। इस प्रकार माता लक्ष्मी ,भगवान नारायण जी के समक्ष इस बात को कहती हैं की आप के बिना मैं कुछ नहीं और मेरे बिना आप नही। हम दोनों एक दूसरे का स्वरुप हैं। ऎसे में जो भी भक्त श्री लक्ष्मी नारायण रुप का एक साथ पूजन करते हैं उस भक्त को सदैव प्रभु का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
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जाने पुजा के दौरान कौन से फूल चढाये:-
भक्त को इस पुजा मे सफेद फुल आवश्य चढ़ानी चाहिए।
जाने,लक्ष्मी नारायण पूजा में क्या नहीं करे।
श्री लक्ष्मी नारायण पूजा में कुछ बातों का विशेष रुप से ध्यान रखना चाहिए। इस व्रत का या पूजन का संकल्प करने पर किसी भी प्रकार के तामसिक भोजन एवं मांस मदिरा का सेवन भुलकर भी नहीं करना चाहिए।
इस दौरान किसी भी प्रकार के नशे के सेवन से दूरी बना कर रखनी चाहिए।
ब्रहमचर्य नियम का पालन करना चाहिए।
अपने आचरण में छल-कपट, लड़ाई-झगड़े एंव झूठ इत्यादि जैसे बुरी आदतों से दूरी बना कर रखनी चाहिए।
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