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विभिन्न अशुभ योग
कुंडली में गुरु साथ राहु या केतु हो तो चांडाल योग होता है। कुंडली में दूसरे, पांचवें तथा नवें भाव में राहु, केतु अथवा शनि ग्रह की उपस्थिति जातक को पितृ दोष वाला बनाती है। वहीं पांचवें में अकेला राहु बैठा हो तो पितृ दोष के साथ नाग योग भी होता है। सूर्य के साथ मंगल का योग कुंडली में अंगारक योग देता है। इसके अलावा मंगल के साथ राहु या केतु भी अंगारक योग का कारण बनता है। सूर्य के साथ राहु अथवा केतु कुंडली में सूर्य ग्रहण योग देता है, जबकि चंद्र ग्रह के साथ राहु अथवा केतु कुंडली में चंद्र ग्रहण योग बनाता है।
कुंडली में शनि और राहु मिलकर दारिद्र्य योग बनाते हैं। अगर कुंडली में चंद्रमा किसी भी भाव में अकेला बैठा हो तथा उसके आगे-पीछे कोई भी ग्रह न हो तथा उस पर किसी दूसरे ग्रह की दृष्टि भी न पड़ रही हो तो ऐसी कुंडली वाला जातक केमद्रुम योग से पीड़ित रहता है।
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अशुभ योग का निवारण
कुंडली में किसी भी अशुभ योग की जानकारी होने पर जातक को शीघ्र ही उसके निवारण का उपाय कर लेना चाहिए। इसके लिए मंत्र जप, संबंधित वस्तुओं का दान, औषधि स्नान, रत्न धारण करना तथा उस दोष को दूर करने के लिए बताए गए उपचार को अपनाया जा सकता है। कुंडली में अशुभ योग का पता चलने पर कभी भी घबराना नहीं चाहिए बल्कि अपने ईष्ट देव उपासना और नाम जप के साथ-साथ अपने कर्मों को भी शुभ बनाए रखना चाहिए।
कुंडली में स्थित अशुभ योगों के प्रभाव से बचने का आसान रास्ता अपने बड़े-बुजुर्गों की करना और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करना है।
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