हनुमान जन्मोत्सव या हनुमान जयंती, क्या है सही
राम भक्त हनुमान जी का जन्म चैत्र माह की शुक्ल पूर्णिमा को हुआ था। तब से यह दिन हनुमान जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस दिन से जुड़ा एक मुद्दा हर वर्ष खड़ा हो जाता है। लेकिन जैसे ही दिन बीतता है उसके बाद सभी लोग इस बारे में बात करना भूल जाते हैं। लोग अलग अलग तथ्य एक दूसरे के सामने रखते हैं परन्तु किसी को सही ज्ञान न होने के कारण कोई निष्कर्ष नहीं निकल पाता है। आज हम आपको इससे जुड़ी जानकारीयों के साथ इस प्रश्न का उत्तर बताने का प्रयास करेंगे
पवनपुत्र हनुमान, ऋषि व्यास, मार्कण्डेय ऋषि, अश्वत्थामा, परशुराम, राजा बलि, कृपाचार्य और विभीषण यह आठ ऐसी महान विभूतियां, ऋषि या भगवान है जो किसी न किसी वचन, नियम या श्राप से बंधे होने के कारण आज भी धरती पर सशरीर उपस्थित हैं। हिंदू इतिहास और पुरणों में भी इन आठ लोगों के चिरंजीवी होने का ज़िक्र मिलता है।
राशि अनुसार जाने, संकटमोचन हनुमान जी का भोग।
अश्वत्थामा बलिव्र्यासो हनूमांश्च विभीषणः।
कृपः परशुरामश्च सप्तएतै चिरजीविनः।।
सप्तैतान् संस्मरेन्नित्यं मार्कण्डेयमथाष्टमम्।
जीवेदद्वर्षशतं सोपि सर्वव्याधिविवर्जित ।।
यह श्लोक भी इसी बात के संदर्भ में है।
चैत्र पूर्णिमा के दिन हनुमान जन्मोत्सव मनाया जाता है कुछ लोग इसे हनुमान जयंती भी कहते हैं। इस बात पर यह सवाल खड़ा होता है कि जयंती उसकी मनाई जाती है जिसका निधन हो गया हो परंतु हनुमान जी तो चिरंजीवी है, वह अजर अमर है, वह आज भी धरती पर सशरीर वास करते हैं। इसलिए उनके जन्मोत्सव को जयंती नहीं कहना चाहिए। जन्मोत्सव और जयंती के शाब्दिक अर्थ एक ही होता है परंतु जिसप्रकार बाकी सभी देवताओं का जन्मोत्सव या प्रकाट्युत्सव उत्सव मनाया जाता है उसी प्रकार हनुमान जी का भी जन्मोत्सव मनाया जाना चाहिए। जैसे कि राम जन्मोत्सव को रामनवमी कहा जाता है कृष्ण जन्मोत्सव को जन्माष्टमी कहा जाता है। इसी प्रकार सभी देवी देवताओं और भगवानों के जन्मोत्सव को तिथि से जोड़कर ही जाना जाता है। इसलिए इस दिन को हनुमान जन्मोत्सव कहना उचित होगा ना कि हनुमान जयंती।
संकट मोचन वीर बजरंगी हनुमान को एक अल्प तक धरती पर रहने का वरदान मिला हुआ है। यह वरदान भगवान श्री राम और माता सीता से मिला था। पुराणों में भी उल्लेखनीय है कि माता सीता ने भगवान हनुमान जी को चिरंजीवि होने का आशीर्वाद दिया था। जिसके कारण वह आज भी धरती पर सशरीर मौजूद है।
जन्मकुंडली ज्योतिषीय क्षेत्रों में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है
पुरणों में मिलने वाले उल्लेख के अनुसार हनुमान जी कलियुग में गंधमार्दन पर्वत पर निवास करते हैं। इस बात से जुडी पुरणों में कथा भी मीलती है। यह कथा उस समय की है जब पांडव अपने अज्ञातवास पर थे। 1 दिन भीम अपने अज्ञातवास के दौरान सहस्त्रदल कमल लेने गंधमार्दन पर्वत के पास पहुंचे थे तो उन्होंने गंधमार्दन पर्वत के जंगलों में भगवान हनुमान को लेटे हुए देखा था। इसी के साथ पुराणों में यह भी उल्लेख मिलता है कि इसी समय हनुमानजी ने भीम का घमंड भी चूर किया था।
अधिक जानकारी के लिए, हमसे instagram पर जुड़ें ।
अधिक जानकारी के लिए आप Myjyotish के अनुभवी ज्योतिषियों से बात करें।